तो कामतापुर नया राज्य बनेगा!

गुवाहाटी। इन दिनों एक बार फिर अलग कामतापुर राज्य की चर्चा गर्म है। दावे तो यहां तक किए जा रहे हैं। कि कामतापुर राज्य की मांग केंद्र सरकार ने मान ली है। उल्लेखनीय है कि अलग कामतापुर की मांग करने वाले जीवन सिंह फिलहाल आत्मसमर्पण कर चुके हैं और इन दिनों गुवाहाटी में असम पुलिस के जिम्मे में हैं।

कामतापुर राज्य की चर्चा जीवन सिंह के उस बयान से शुरू हुई थी, जो उन्होंने आत्मसमर्पण करने से पहले दिया था। उन्होंने दावा किया था कि अलग कामतापुर राज्य का गठन बस कुछ ही समय की बात है।

केएलओ प्रमुख सिंह ने अलग कामतापुर राज्य की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने के लिए केंद्र को धन्यवाद दिया था। सिंह ने अपने संदेश में दावा किया था कि 28 अगस्त,1949 को एक विलय-समझौते के बाद ग्रेटर कूचबिहार या कामतापुर राज्य भारत का हिस्सा बन गया।

उन्होंने यह उम्मीद भी जताई थी कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मुद्दे पर पूरा सहयोग करेंगी। हालांकि तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व जीवन सिंह की इस तरह की टिप्पणियों को महत्व नहीं दे रही है।

ममता बनर्जी के रुख से ऐसा नहीं लगता कि वे इस मुद्दे पर किसी भी तरह के समझौते के मूड में हैं? प्रस्तावित कामतापुर राज्य को पश्चिम बंगाल में कूचबिहार, दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, उत्तरी दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिलों से अलग करने का प्रस्ताव है और असम में ग्वालपाड़ा,धुबड़ी,बंगाईगांव और कोकराझाड़ जिले, बिहार में किशनगंज जिला और नेपाल का झापा जिला भी इसमें शामिल है।

यदि कामतापुर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर दौड़ाएं तो पता चलेगा कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। कामतापुर पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग के कुछ जिलों और उनसे लगने वाले असम के कुछ जिलों पर विस्तृत भू-भाग का पारंपरिक नाम है।

इस क्षेत्र की एक विशेष सांस्कृृतिक और ऐतिहासिक पहचान है जिनको लेकर कामतापुर नामक एक अलग राज्य बनाने की मांग है। अलग राज्य के आंदोलन का नेतृत्व केएलओ के मुखिया जीवन सिंह करते आ रहे हैं। प्राचीन कामतापुर राज्य ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी के पश्चिमी भाग में स्थित था।

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि चिलपटा वन में नलराजर गढ़ इसकी सर्वप्रथम राजधानी थी। लंबे काल के विकास व घटनाक्रम के बाद राजधानी बदलकर पहले मयनगुड़ी, फिर पृथु राजर गढ़, फिर सिंगीजनी और अंत में गोसानीमरी कर दी गई, जो 7वीं शताब्दी से एक महत्वपूर्ण नदी-बंदरगाह थी।

650 ईसवी से 1498 ई काल तक कामतापुर पूर्व भारत में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य था। 1498 में जब कामतापुर पर निलाम्बर नामक नरेश का राज था, परंतु बंगाल सल्तनत के अलाउद्दीन हुसैन शाह ने यहां आक्रमण किया और राजधानी गोसानीमरी को ध्वस्त कर दिया। अब सवाल उठता है कि क्या वर्तमान परिस्थिति में कामतापुर राज्य का गठन हो सकता है।

क्या इसके लिए पश्चिम बंगाल, असम और बिहार सरकार तैयार हो जाएगी। फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा है। इस मुद्दे पर ममता बनर्जी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर प्रस्तावित कामतापुर राज्य में वे सारे भू-भाग शामिल हैं, जो प्रस्तावित बोड़ोलैंड के हिस्से बताए जाते हैं।

इसलिए फिलहाल नहीं लगता कि कामतापुर राज्य अस्तित्व में आएगा, परंतु हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि जीवन सिंह के साथ भारत सरकार ने कुछ वादा जरूर किया और उसी वादे के आधार पर श्री सिंह की वापसी तय हुई है, परंतु केंद्र ने उनके साथ क्या वादा किया है, उसका खुलासा अब तक नहीं हुआ है।

दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने जीवन सिंह को गुवाहाटी भेजकर उनके सहयोगियों के साथ किसी शांति पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिया है,परंतु इस बात में कितनी सच्चाई है, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता, परंतु राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा उत्तर बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है और इस कार्य में जीवन सिंह अहम भूमिका निभाएंगे, परंतु भाजपा जीवन सिंह के माध्यम से अपने साम्राज्य का कैसे विस्तार करेगी, फिलहाल यह सब भविष्य के गर्भ में है।

वहीं कुछ संगठनों का कहना है कि यदि सरकार अलग कामतापुर राज्य बनाती है तो उसे अलग बोड़ोलैंड और अलग बराकवैली का भी गठन करना पड़ेगा। कारण कि उनकी ओर से भी अलग राज्य की मांग बहुत पहले से की जा रही है।

ऐसे तैयार हुई जीवन सिंह को वापस लाने की तैयारी

कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (केएलओ) के स्वयंभू प्रमुख जीवन सिंह ने केंद्र के साथ सीधी शांति वार्ता के लिए म्यामां में अपने ठिकाने से कुछ सशस्त्र कैडरों के साथ भारत में प्रवेश किया। केएलओ प्रमुख जीवन सिंह सहित अन्य 10 सदस्यों ने असम राइफल्स के सामने 18 जनवरी 2023 को आत्मसमर्पण कर दिया।

विद्रोही समूह के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भारत सरकार की ओर से भेजे गए मध्यस्त दिलीप नारायण देब के नेतृत्व में उन्हें असम लाया गया। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2021 में असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने केंद्र के साथ शांति वार्ता में शामिल होने के लिए प्रतिबंधित संगठन को एक पत्र भेजा था। कई दौर की बातचीत के बाद सिंह ने प्रस्ताव पर सहमति जताई और एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें उन्होंने भारत लौटने और बातचीत में भाग लेने की इच्छा का उल्लेख किया। उन्होंने नगालैंड के माध्यम से भारत में प्रवेश किया।

जीवन सिंह उर्फ तामीर दास अलीपुरद्वार के कुमारग्राम ब्लॉक के रहने वाले हैं। वे कामतापुर राज्य की अपनी मांग के लिए दबाव डालने के लिए क्षेत्र में कई आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहे। उत्तर बंगाल से हजारों राजवंशी युवा, क्षेत्र का एक जातीय समुदाय, जिसके सदस्य खुद को मिट्टी के पुत्र मानते हैं, उनके संगठन में शामिल हो गए।

1990 के दशक के उत्तराद्र्ध से जब केएलओ के कार्यकर्ता बंगाल में उग्रवादी गतिविधियों में शामिल हो गए, तो विद्रोही अकसर पड़ोसी भूटान के घने जंगलों में गायब हो जाते थे। कुछ लोग बांग्लादेश में शरण ले लेते थे।

2004 की शुरुआत में स्थिति बदलने लगी जब रॉयल भूटान सेना ने केएलओ सहित भारतीय आतंकवादी समूहों को खदेडऩे के लिए ऑपरेशन फ्लश आउट शुरू किया, जिसने भूटान में डेरा डाले सभी आतंकियों को भागने पर मजबूर कर दिया। 2008 में सत्ता में आई शेख हसीना सरकार ने केएलओ जैसे भारतीय विद्रोही समूहों को भी खदेड़ दिया, जिन्होंने ढाका में राजनयिक गुलशन क्षेत्र को अपना ठिकाना बना लिया था।

दोनों देशों में आतंकवादी संगठनों के खिलाफ तीव्र खोज के परिणामस्वरूप केएलओ का विघटन हुआ क्योंकि अधिकांश कैडरों ने या तो आत्मसमर्पण कर दिया या उन्हें गिरफ्तार कर भारत को सौंप दिया गया। हालांकि, सिंह भागने में सफल रहे और बांग्लादेश में कुछ समय बिताने के बाद वे म्यामां में घुस गए। वह पिछले कुछ वर्षों से म्यामां से अलग राज्य के आह्वान के साथ संगठन को फिर से संगठित करने की कोशिश कर रहे थे ।

एक सूत्र ने कहा कि बंगाल सरकार पिछले कुछ वर्षों से केएलओ के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभा रही थी और कई केएलओ उग्रवादियों और लिंकमैन को विशेष कार्य बल द्वारा पकड़ा गया।

सूत्रों ने कहा कि सिंंह अपने उग्र वीडियो संदेशों के बावजूद-बंगाल सरकार के आक्रामक रवैये के कारण बैकफुट पर चले गए। उनके सामने शांति वार्ता में शामिल होने के लिए डॉ.हिमंत विश्वशर्मा के आह्वान को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उल्लेखनीय है कि केएलओ का गठन 1995 में हुआ था और इसका नेतृत्व जीवन सिंह कर रहे थे।

1999 में गिरफ्तारी के बाद कुछ दिनों बाद जीवन सिंह ने फिर से हथियार उठा लिया था। कोच राजवंशी समुदाय अपने ज्वलंत मुद्दों के समाधान और कामतापुर राज्य की पुन: स्थापना की मांग को लेकर 28 वर्षों से केंद्र सरकार के साथ संघर्ष कर रहा है। जीवन सिंह को भारत सरकार ने शांति वार्ता की पेशकश की है। भारत सरकार के प्रस्ताव के जवाब में जीवन सिंह और अन्य सदस्य असम पहुंचे।

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