इंदिरा गांधी का विरोध कर नेता बने थे शरद यादव!

डॉ श्रीगोपालनारसन
सात बार लोकसभा और चार बार के राज्यसभा सांसद के साथ ही केंद्रीय मंत्री तक रहे शरद यादव अब हमारे बीच नही है।उनका 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर निधन हो गया है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अनेक बड़े नेताओं ने शोक व्यक्त है। शरद यादव कुछ समय से बीमार चल रहै थे। राजनीति में शरद यादव का आना भी एक इत्तेफाक ही था।
सन 1974 में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ ,तभी मध्य प्रदेश में जबलपुर से कांग्रेस सांसद की अचानक मृत्यु हो गई और जयप्रकाश नारायण ने उपचुनाव में कांग्रेस के मुकाबले  युवा छात्र शरद यादव को संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतार दिया।
27 वर्षीय शरद यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार को हराने दिया,यह हार एक तरह से इंदिरा गांधी की थी,जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने के लिए कड़ी मेहनत की थी। यही से शुरू हुआ था शरद यादव का राजनीतिक सफ़र।बीते पांच दशकों में शरद यादव समाजवादी और पिछड़ी जातियों की राजनीति के चैंपियन बने रहे।एक जुलाई, सन 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई में जन्में शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल के साथ डिग्री हासिल की थी।
वे समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के जीवन से काफी प्रभावित रहे और बहुत जल्दी  युवा राजनीति में केंद्र बन गए। उन्होंने कई जन आंदोलनों में भाग लिया। सन 1970 के दशक में उन्हें मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया था, वे उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बिहार उनका राजनीतिक घर था।  वह उन कुछ लोगों में से एक थे जिन्होंने सन 1990 में लालू प्रसाद को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने राम सुंदर दास को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का लगभग फैसला कर लिया था। शरद यादव ने तत्कालीन डिप्टी पीएम चौधरी देवी लाल को जनता दल के सीएम उम्मीदवारों के बीच चुनाव कराने के लिए राजी कर लिया था।
जमीनी राजनीति से आगे आए शरद यादव हमेशा धोती और कुर्ता पहनना पसंद करते थे।वह आपातकाल से उपजे उन जन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने कट्टर गैर-कांग्रेसवाद का समर्थक होकर राष्ट्रीय राजनीति में खुद के लिए जगह बनाई। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से ही उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने पढ़ाई में भी अपने प्रतिभा को सिद्ध किया ।
शरद यादव इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर थे। इसके अलावा उन्होंने रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज से स्‍नातक की डिग्री भी हासिल की थी।सन 1971 में शरद यादव पढ़ाई के दौरान ही राजनीति से जुड़ गए थे। वे जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, एचडी देवगौड़ा और गुरुदास दासगुप्‍ता के साथ की थी।
शरद यादव ने डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर शुरुआती दिनों में कई  आंदोलनों में भाग लिया था।इस दौरान वे कई बार जेल भी गए थे। शरद यादव सन 1974 के बाद सन 1977 में दोबारा सांसद चुने गए। इसके बाद सन1986 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए।
सन1989 में भी वे यूपी के बदाऊं लोकसभा सीट से जीतकर तीसरी बाद संसद पहुंचे। उसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।उन्हें केंद्रीय कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बनाया गया।सन 1991 से सन 2014 तक शरद यादव ने बिहार की सियासत में अपना जलवा बिखेरा। इस दौरान वे बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे।सन 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया।
सन 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने लालू यादव को पटखनी दी।सन1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। हालांकि इसके बाद जॉर्ज फर्नांडीस की मदद से उन्होंने सियासत में एक और झंडा गाड़ दिया और जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाकर सन 1998 में उसके अध्यक्ष बन गए। तभी नीतीश कुमार जनता दल छोड़कर शरद यादव की पार्टी में आ गए।
सन 2004 में वे दूसरी बार पहुंचे राज्यसभा पहुंचे।शरद यादव को सन 1999 में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया। इसके बाद वे एक सितम्बर 2001 से 30 जून 2002 तक केंद्रीय श्रम मंत्री रहे।एक जुलाई 2002 से 15 मई सन 2004 तक शरद यादव केंद्रीय उपभोक्ता मामले व खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रहे।सन 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012’ मिला।
हालांकि इसके बाद सन 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें बिहार की मधेपुरा सीट से हार का सामना भी करना पड़ा। यहीं से शरद यादव की सियासत का सूर्यास्त होना शुरू हो गया।फिर भी उन्हें राज्यसभा भेजकर उनकी राजनीति को बचाने की कोशिश की गई।सन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की एकजुटता में उनकी अहम भूमिका हो सकती थी,वे ख़ुद भी इसको लेकर उत्सुक थे, लेकिन स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया,50 साल की समाजवादी राजनीति का सफ़र उनकी अंतिम विदाई के साथ अब थम चुका है।ऐसे खांटी समाजवादी को शत शत नमन।

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