धर्मपाल धनखड़
बीता साल 2022 राजनीतिक वादों मामले में बहुत महत्वपूर्ण रहा। आजादी के 75वें साल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने देशवासियों को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। ऐसा दिखाया गया मानो 2022 खत्म होने तक देश में कोई समस्या नहीं बचेगी। पूरी तरह एक नया भारत होगा और वह विश्व का सरताज होगा। वादे और संकल्प तो बहुत किये।
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष यानी साल 2022 तक 75 संकल्प पूरा करने के वादे 2019 में किये थे। इन्हें दरकिनार भी कर दे, तो भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो 2014 के बाद से लगातार एक के बाद एक बड़े-बड़े सपने दिखाते रहे, जो 2022 तक पूरे होने थे। प्रधानमंत्री ने फरवरी 2016 में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था। लेकिन क्या दोगुनी हुईं? जवाब है नहीं हुई।
2015-16 में एक कृषक परिवार की औसत आय 96 हजार 703 रूपये सालाना थी। जो 2022-23 में बढ़कर यानी दोगुनी 1 लाख 93 हजार 406 होनी चाहिए थी। इसके पूरा होने के लिए कोरोना महामारी को सबसे बड़ा कारण ठहराया जाता है। नेशनल सेंपल सर्वे आफिस यानी एन एस एस ओ के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2012-13 से 2018-19 के बीच किसानों की आय में लगभग 21 फीसदी बढ़ोतरी। यानी सालाना साढ़े तीन फीसदी आय बढ़ी।
यदि कोरोना महामारी से पहले की बढ़ोतरी दर भी कायम रहती तो भी किसानों की आय दोगुनी कर पाना किसी भी सूरत में संभव नहीं था। इसीलिए कर्ज में डूबे किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला लगातार जारी है। एनसीआरबी के मुताबिक 2014 से 2020 तक के छह साल में 43 हजार 181 किसानों ने खुद करके अपनी जान गवां दी।
इसके साथ ही 2022 तक भारत की इकोनॉमी को पांच ट्रिलियन अमेरिकन डालर की बनाने का दूसरा बड़ा सपना देशवासियों को दिखाया गया। 2021-22 में भारत की जीडीपी करीब 3.1 ट्रिलियन अमेरिकन डालर की थी। विदेश व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। इसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार भी घट रहा है। वहीं 2021 में देश पर 47 लाख करोड़ का कर्ज था, जो अब बढ़कर 51-52 लाख करोड़ हो गया है।
ऐसे हालात में हमारी जीडीपी पांच ट्रिलियन अमेरीकी डालर की कब बनेगी। इसका कहीं कोई जिक्र नहीं? प्रधानमंत्री ने देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अगले 25 साल को अमृतकाल घोषित कर दिया गया। यानी अब सीधे 2047 के लक्ष्यों की घोषणाएं करनी शुरू कर दी है। अब तो प्रधानमंत्री ही नहीं बड़े कार्पोरेट्स भी देश की अर्थव्यवस्था को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। अनिल अंबानी ने कहा कि अगले पच्चीस साल में देश की इकोनॉमी 30 ट्रिलियन डॉलर की हो जायेगी। यानी भारत दुनिया का सबसे अमीर देश बन जायेगा। इसी प्रकार पिछले दिनों दुनिया के सबसे बड़े अमीरों में शुमार हुए गौतम अडानी ने इससे भी आगे बढ़कर देश की इकोनॉमी के 40 ट्रिलियन अमेरीकी डालर होने का दावा कर दिया। गौरतलब है कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी नीत सरकार बनने के बाद से गौतम अडानी की संपत्ति सबसे तेजी के साथ बढ़ी है। इसके साथ ही कोरोना में जहां गरीबों की संख्या में गुणात्मक इजाफा हुआ और दूसरी तरफ चंद अरब पतियों की संपत्ति भी कई गुणा बढ़ गयी। कहने का तात्पर्य ये है कि देश में अमीर और गरीब के बीच का अंतर बहुत ज्यादा बढ़ गया। साथ ही मध्यम वर्ग व निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम हुई और गरीबों की संख्या बढ़ गयी। ये तो रहा अर्थव्यवस्था का हाल।
मेक इन इंडिया के तहत देश के 80 करोड़ लोगों को 2022 तक कौशल प्रदान करके रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था। रोजगार के सपने की हकीकत ये है कि आज 80 करोड़ से ज्यादा लोग सरकार की ओर से मुफ्त दिये जाने वाले पांच किलो अनाज के मोहताज हो गये हैं। 2022 के आख़िरी दिनों में पांच किलो मुफ्त अनाज योजना को दिसंबर, 2023 तक बढ़ा दिया गया।
यहां ये भी उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के दौर में दुनिया भर के देशों ने अपने नागरिकों के लिए विभिन्न प्रकार की छूट दी थी, वे रियायतें अब खत्म की जा चुकी हैं। केवल भारत ही ऐसा देश है जहां कोरोना महामारी के दौर में शुरू की गयी मुफ्त अनाज योजना ना केवल जारी है, बल्कि एक साल तक और जारी रखने का निर्णय ले लिया गया है। वो इसलिए कि पांच किलो मुफ्त अनाज योजना वोट दिलवाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुई है।
इसलिए 2024 तक इसे हर हाल में चालू रखा जायेगा। 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज मुफ्त देने पर सरकार को करीब दो लाख करोड़ रूपये खर्च करने पड़ेंगे। इसके विपरीत पिछले पांच साल में मुट्ठी भर कार्पोरेट्स के दस लाख करोड़ रुपये के बैंक कर्ज बट्टे खाते में डाल दिये गये। यानी एक तरफ गिनती के कार्पोरेट्स और दूसरी तरफ 80 करोड़ लोग हैं। देश में रोजगार की स्थिति ये हैं कि पिछले आठ साल में आठ लाख नौकरियां भी सरकार नहीं दे पायी। और अब 2023 तक दस लाख नौकरियां देने की बात कर रही है। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था।
रोजगार देना तो दूर पिछले आठ साल में करीब साढ़े चार करोड़ लोगों की नौकरियां खत्म हो गयी।
साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्रत लिया था कि 2022 तक हर गरीब को पक्का मकान दिया जायेगा। इसके लिए शहरों में 1 करोड़ 23 लाख मकान बनाने का लक्ष्य रखा जबकि बने केवल 62 लाख। वहीं गांव में 2 करोड़ 77 लाख मकान बनाने थे, लेकिन बन पाये 1 करोड़ 94 लाख। यानी ये व्रत भी पूरा नहीं हो पाया।
साल 2019 में पूरे देश को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया। एन एफ एच एस-5 के आंकड़ों के मुताबिक आज भी देश के 19 फीसदी परिवारों के पास टायलेट नहीं हैं। शहरों में 11 फीसदी और गांवों 7 फीसदी ऐसे परिवार हैं जो सांझा टायलेट का इस्तेमाल करते हैं। वहीं एक वादा 2022 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाने का था।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 99 फीसदी घरों तक बिजली पहुंचा दी गयी है, लेकिन 24 घंटे बिजली देने का वादा अभी बहुत दूर है वो भी ग्रामीण इलाकों में। इसी प्रकार 2022 तक हर घर को पीने का साफ पानी नल से पहुंचाने का सपना दिखाया गया। शहरों में पीने का साफ पानी तो नहीं, हां पानी की सप्लाई जरूर पहुंच गयी। लेकिन पानी की मात्रा अपर्याप्त है और पीने लायक होने की कोई गारंटी नहीं। ग्रामीण इलाकों में तो अभी 57 फीसदी घरों तक ही नल का पानी पहुंच पाया है।
ऐसा ही एक वादा नया भारत बनाने के लिए मुंबई से अहमदाबाद तक बुलेट ट्रेन चलाने का था। जो 2022 तक पूरा होना था। लेकिन विभिन्न कारणों से परियोजना लेट होती गई और अब इसके पूरा होने की कोई तारीख सरकार की तरफ से नहीं रखी गयी है।
इसी तरह का एक सपना भारत के लोगों को अंतरिक्ष में भेजने का दिखाया गया था। वह भी हवाई चप्पल वालों को हवाई जहाज से यात्रा करवाने के सपने की तरह सपना ही रह गया। 2014 में मोदी जी ने लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों को आदर्श गांव बनाने के लिए एक एक गांव गोद लेने को कहा था। उसके हिसाब से अब तक एक हजार से ज्यादा आदर्श गांव बन जाने चाहिए थे।
उस योजना का क्या हुआ और कितने गांव आदर्श बने, कोई अता-पता नहीं। इतना ही नहीं गोद लेने वाले 90 फीसदी सांसद तो उन गांवों तक पहुंचे ही नहीं। इसी प्रकार 2022 तक देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने का संकल्प मोदी जी ने लिया था। आज देश में एक भी ऐसा शहर नहीं है, जिसे स्मार्ट सिटी कहा जा सके।
मोदी जी ने 2014 में बनारस से चुनाव लड़ते समय कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है। जहरीली बना दी गयी मां गंगा को साफ करने और उसके पानी को पीने योग्य बनाने के लिए नमामि गंगा परियोजना शुरू की थी। लेकिन ना तो गंगा साफ होनी थी और ना ही हुई। कहने को अब गंगा नमामि योजना का दूसरा चरण शुरू हो चुका है, लेकिन जिन शहरों के गंदे नाले गंगा में गिरते थे वे आज भी गिर रहे हैं, तो फिर गंगा कैसे साफ होगी।
अब तक नमामी गंगे परियोजना पर करीब 13 हजार करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं। नमामि गंगा के नाम पर जिस तरह की बंदर बांट मची है उस पर बाद में पूरी रिपोर्ट देंगे। लेकिन फिल्हाल इतना ही कि गंगा की सफाई के लिए तमिलनाडु जैसे राज्य को भी सी आर एस फंड का 26 लाख रूपया आवंटित कर दिया गया। अब आप ही विचार कीजिए कि तमिलनाडु में 26 लाख रूपये से गंगा की सफाई कैसे हुई होगी। ये तो महज एक बानगी है। वादे और भी बहुत हैं, जो 2022 में पूरे होने थे, लेकिन पूरे नहीं हुए। उन पर भी बाद में चर्चा करेंगे। लेकिन फिलहाल ये सोचिए कि जब 2022 तक के सपनों और वादों का ये हाल है तो 25 साल के अमृतकाल के नाम पर जो सपने दिखाए जा रहे हैं, जो वादे किये जा रहे हैं।
जो बड़े-बड़े लक्ष्य रखें जा रहे हैं। उनका क्या होगा! तब तक ना सपने देखने वाले रहेंगे, ना दिखाने वाले। पूरी पीढ़ी गुजर जायेगी। ना सवाल पूछने वाले होंगे, ना जवाब देना होगा। शायद सत्ता के लिए यही वास्तविक अमृत काल है। और हम साल दर साल अमृतकाल के सपनों की गंगा में डूबते – उतराते रहेंगे।