भू-धंसाव से संकट में घिरा जोशीमठ नगर का अस्तित्व

अस्तित्व बचाने को छटपटा रही धार्मिक व ऐतिहासिक नगरी

गोपेश्वर। धार्मिक तथा ऐतिहासिक नगरी जोशीमठ भू धसाव के कारण अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है। इसके चलते कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू नहीं हुई तो इस पौराणिक नगरी का अस्तित्व सिमट कर रह जाएगा।
दरअसल बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब के मुख्य पडाव जोशीमठ का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। उत्तराखंड के खूबसूरत नगरों में सुमार जोशीमठ पर भू धंसाव की मार पडऩे से यह ऐतिहासिक नगरी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए छटपटा रही है।

जोशीमठ के सिंहधार, सुनील, मनोहरबाग, गांधीनगर, नृसिंह मंदिर, जीरोबैंड, रविग्राम तथा टीसीपी बाजार इलाके में ज्यादातर मकानों में भू धंसाव के कारण दरारें पडऩे से कई लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ गई है। मकानों के साथ ही घरों के आंगन भी अंदर ही अंदर धंसने शुरू हो गए हैं।

जोशीमठ की सडक़ें पहले ही धंसाव की जद में आने के कारण देश विदेश से आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोग हिचकोले खाकर आवाजाही करने को विवश हैं। जोशीमठ अपना ऐतिहासिक महत्व समेटे हुए है। कत्यूरी राजाओं की राजधानी 7 वीं से 10 वीं सदी तक जोशीमठ में ही स्थापित रही। इसके चलते ही शंकराचार्य ने भी 8 वीं सदी में यहां आकर धार्मिक और सांस्कृतिक विशिष्टता प्रदान कर इस नगरी की ख्याति को बढाया।

देश के 4 पीठों में से एक ज्योतिष्पीठ के साथ ही बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब का भी यह प्रमुख पडाव है। फूलों की घाटी का दीदार करने के लिए हर साल देशी और विदेशी पर्यटक तो यहां के प्रवास पर आते ही हैं। विश्व प्रसिद्ध औली हिमक्रीडा केंद्र से जोशीमठ देश दुनिया का प्रमुख नगर भी बन गया है। सामरिक तौर पर भी जोशीमठ का अपना विशिष्ट स्थान है।

चीन सीमा को जाने वाला मार्ग जोशीमठ से ही नीती तथा माणा घाटियों को निकलता है। जोशीमठ में सेना का ब्रिगेट हेडक्वार्टर तो है ही अपितु आईटीबीपी की बटालियन भी यहीं स्थित है। बीआरओ का भी जोशीमठ में ही आफिस है। बदरीनाथ यात्रा का पडाव होने के चलते नृसिंह मंदिर इस नगरी की धार्मिक विशिष्टता को भी प्रदर्शित करती है। इसके बावजूद भू धंसाव के चलते जोशीमठ के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
जोशीमठ के अस्तित्व पर 7 की दशक में ही मार पडऩे लगी थी।वैज्ञानिकों तथा रिसर्चरों की माने तो अलकनंदा से जोशीमठ नगर की तलहटी पर कटाव की वजह से जोशीमठ का अस्तित्व में खतरे में पड़ता जा रहा है।

नालियों का निर्माण न होने के कारण भी भू धंसाव विकराल रू प धारण करता जा रहा है। कंक्रीट के जंगल लगातार खड़े होने के कारण भी अवैज्ञानिक निर्माण से ही जोशीमठ पर आपदा की मार पड़ गई है। तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना की टनल भी जोशीमठ के बीचों बीच जमीन के भीतर निर्मित होने से यह ऐतिहासिक नगरी एक तरह से भीतर ही भीतर खोखली हो गई है। विष्णुप्रयाग परियोजना के निर्माण से जोशीमठ नगरी पूरी तरह हिल चुकी है।

अब तो अलकनंदा के समानांतर हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का निर्माण होने से इस नगरी के अस्तित्व पर चौतरफा मार पडऩे लगी है। इस तरह भू धंसाव के चलते एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी अब अपने अस्तित्व के लिए छटपटा रही है। ज्यादातर मकानों अथवा घरों में दरारें पडऩे के कारण मकानों को छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रह रहेम हैं। कई लोग तो अभी भी जर्जर होते जा रहे मकानों के भीतर ही गृहस्थी समेटे हैं।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति भी लगातार इस धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी के अस्तित्व को वैज्ञानिक उपायों के जरिए बचाने की जद्दोजहद में लगी है।

यही वजह है कि जिला प्रशासन के आग्रह पर आईआईटी रू डक़ी तथा वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस धार्मिक नगरी का बारीकी से जायजा लिया। वैज्ञानिकों की टीम ने पूरे इलाके का अध्ययन कर लिया है। इस बारे में सिफारिश की गई है कि जल्द से जल्द इस धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी को बचाने के लिए प्रभावी कार्रवाई अमल में लाई जानी चाहिए।
चमोली जनपद पूरी तरह भूकंपीय दृष्टि से जोन 5 में स्थित है। जोशीमठ के भी जोन 5 में स्थित होने के कारण इस ऐतिहासिक नगरी पर भूकंप की मार का खतरा हर समय मंडरा रहा है। करीब 17 हजार से अधिक आवादी वाले सीमांत नगर जोशीमठ में 40 करीब मकानों की बसागत भी है। इसके चलते इंसानी तथा मकानों का बोझ भी इस संवेदनशील नगरी पर बढ़ता जा रहा है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि गुजरे दशकों में जोशीमठ के धंसने की प्रक्रिया में कुछ ठहराव भी आता रहा किंतु पिछले साल फरवरी और अक्टूवर की तबाही ेने धंसाव की प्रक्रिया को गति दी है। उनके अनुसार 70 के दशक में भूस्खलन और भू धंसाव के चलते जोशीमठ पर खतरे के बादल मंडराने लगे थे।

इसके चलते 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया। मिश्रा कमेटी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्राकृतिक जंगलों को बेरहमी से तहस-नहस कर दिया गया। पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ के होने के चलते ही खतरे ने आमद दी है। करीब 2 हजार मीटर की ऊचांई पर जोशीमठ स्थित है। इसके बावजूद पेड़ अब 8 हजार फीट से पीछे हो रहे हैं। पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्खलन हो रहा है।

भवनों के निर्माण तथा सडक़ों के बनने से ब्लास्ट से भी इस नगरी के अस्तित्व पर खतरे की घंटी पहले ही बज चुकी है। अतुल सती के अनुसार रिपोर्ट पर अमल नहीं हुआ। इसके बजाय विस्फोटों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर बड़े निर्माण कार्य होते रहे। यही वजह है कि जोशीमठ के विस्तार से के साथ ही भू धंसाव की गति ने जोर पकड़ा है। भू वैज्ञानिकों और विशेषज्ञो की रिपोर्ट में नियंत्रित विकास की बात की गई है।

उनके अनुसार 1962 के चीन युद्ध के बाद जोशीमठ इलाके में सडक़ों का तेजी से जाल बिछा। सेटेलाइट तस्वीरों की मदद से डेंजर स्पॉट चयनित किए गए हैं। बताया जा रहा है कि जोशीमठ का ही रविग्राम हर साल 8५ एमएल की रफ्तार से धंस रहा है। जोशीमठ के पालिकाध्यक्ष शैलेंद्र पंवार का कहना है कि जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की कवायद जल्द शुरू की जानी चाहिए।

जोशीमठ पर बढ़ते मानवीय दबाव के चलते यदि अभी से ट्रीटमेंट के कोई कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य के खतरे कम नहीं हैं। अब देखना यह है कि ऐतिहासिक व धार्मिक नगरी जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार किस तरह के कदमों के साथ आगे बढ़ती है। इस पर ही जोशीमठ का भविष्य निर्भर करेगा।

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