146 वें जन्मदिवस पर विशेष, ब्रह्मा बाबा से मिलकर होती थी परमात्म अनुभूति!

डा. श्रीगोपालनारसन एडवोकेट
ब्रहमाबाबा यानि दादा लेखराज ने देश  दुनिया को परमात्मा की अनुभूति का बोध कराया। विकारो से घिरी इस दुनिया को सत्कर्मो के द्वारा संवारने की शुरूआत ब्रह्माबाबा ने सबसे पहले अपनी जन्मभूमि हैदराबाद सिंध जो अब पाकिस्तान में है, से सन 1936 में की थी। लेखराज कृपलानी अर्थात ब्रह्माबाबा का जन्म 15 दिसंबर सन 1884 को सिन्ध, हैदराबाद (अब पाकिस्तान में) उनके लौकिक पिता खूबचंद कृपलानी के घर में हुआ था, जो ग्रामीण पाठशाला में हेडमास्टर थे।उनकी माँ का देहान्त, उनकी अल्पायु में ही हो गया था। जब वे 20 साल के हुए तो पिता खूबचंद का भी देहान्त हो गया।  लेखराज ने कुछ वर्ष तक अपने काका की अनाज़ की दूकान पर काम किया।  बड़े होकर उन्होंने हीरे परखने की व आभूषण बेचने की कला सीखी और समय के साथ कलकत्ता के नामचीन हीरे के व्यापारी बन गए।  उनका व्यापार मुंबई तक भी पंहुचा। समाज में भी उनका बड़ा मान था, व उनको लोग आदर से लखी दादा कहते थे।  60 वर्ष की आयु में ईश्वरीय बोध होने पर परमात्म मिशन चलाने के लिए उन्होंने ओम मण्डली नाम से एक ट्रस्ट बनाकर  अपनी समस्त सम्पत्ति जो उस समय भी लाखों रुपयों की थी,उस ट्रस्ट में निहित कर दी थी।
इस ट्रस्ट में वे भी कभी ट्रस्टी नही रहे,केवल नारी शक्ति के नेतृत्व को  ही उनके द्वारा स्वीकारा गया।यानि नारी शक्ति को इस आध्यात्मिक मिशन का नेतृत्व सौंप कर उन्होंने यह सिद्ध किया कि आधी आबादी भी देश और समाज का ही नही अध्यात्म का भी नेतृत्व कर सकती है।इसी सोच के चलते यह संस्था आज दुनिया के 140देशों तक नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की प्रचार प्रसार करने में सफ़ल रही है।
5 मई सन 1950 को पाकिस्तान से भारत के आबू पर्वत पर स्थानान्तरित हुई यह संस्था अब प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के रूप में भारत भूमि से संसार भर को शान्ति का पैगाम देने का काम कर रही है।यह संस्था एक जीवन्त सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की प्रयोगशाला कही जा सकती है। जिसके माध्यम सें विश्व के नवनिर्माण व चरित्र निर्माण का कार्य बड़ी तेजी के साथ हो रहा है।आज भी मधुरता व वैराग्य के इस अनूठे संगम स्थल पर आकर देश विदेश के आध्यात्मिक जिज्ञासु सहज ही आकर्षित हो जाते है।
ब्रहमाकुमारीज संस्था की सोच है कि महान आत्मा बनने के  लिए आत्मिक शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है, चूंकि जितना आत्मिक स्थिती का अभ्यास होगा उतनी ही बुद्धिस्थिर और शुद्ध होगी।
आत्मिक व आणविक शक्तियों के समन्वय से एक सुखमय व शान्तिमय दुनिया की स्थापना ही ईश्वरीय विश्वविद्यालय का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। तभी तो आत्मा की शक्ति को पहचानने और उसके
आत्म शान्त स्वरूप को समझने की सीख यहां बार-बार दी जाती है।यहां आध्यात्मिक व्याख्यान में बताया जाता है कि अब्राहम,
पैगम्बर, क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर स्वामी और शंकराचार्य धर्मात्माएं तो है किन्तु परमात्मा नहीं। क्योंकि परमात्मा वही है जो अजन्मा हो, निराकार हो, ज्योति स्वरूप हो। मुस्लिम धर्म
में भी अल्लाह को नूर कहा गया है। तभी तो अल्लाह को नूर ए इलाही भी कहते है। जो हिन्दूओं के लिए दिव्य ज्योतिबिंदु है। इसी तरह क्राइस्टो के लिए लाईट ऑफ गॉड  है। जो एक प्रकाश पुंज की तरह है। हजरत मूसा ने भी परमात्मा को ज्योति स्वरूप स्वीकारा है। तो गुरूनानक ने भी परमात्मा को एक ओंकार निराकार माना है। यानि धर्म कोई भी हो सबका मानना यही हैं कि ईश्वर, अल्लाह, गौड, वाहे गुरू सतनाम, रूप ज्योति बिन्दु है जो गुणों का सिन्धु है जो सत्यम शिवम सुन्दरम् है और जो पतित से हमें पावन बनाता है उसी परमात्मा से आत्मबोध कराने के लिए राजयोग का श्रेष्ठ मार्ग बताया गया है। ‘परमात्मा’ शब्द की व्याख्या करते हुए बताया गया कि जो सर्वमान्य हो, जन्म मरण से परे हो, जिनके माता- पिता-गुरू न हो, जो स्थिति, गुण, कर्तव्य में सदा परम हो और सर्वज्ञाता व सर्वदाता हो।
दादा लेखराज यानि प्रजापिता ब्रह्मा बाबा शिव परमात्मा के साकार माध्यम ब्रह्मा द्वारा उच्चारे हुए महावाक्यों के आधार पर जिनका आलौकिक और आध्यात्मिक पुनर्जन्म हुआ वे ही ब्रह्मा कुमारी और ब्रह्माकुमार कहलाये गए और उनके द्वारा स्थापित आध्यात्म आधारित
शैक्षणिक संस्था को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नाम दिया गया।
सन 1936 में शुरू हुई इस संस्था ने 1937 में आध्यात्मिक ज्ञान, मूल्य आधारित शिक्षा व सहज राजयोग की शिक्षा देने की दुनियाभर में शुरूआत की थी। इस संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका ब्रह्माकुमारी जगदम्बा सरस्वती थी। उनके बाद दादी प्रकाशमणि मुख्य प्रशासिका रही और फिर दादी जानकी के 104वर्षीय कन्धों पर इस विशाल संस्था की मुख्य प्रशासिका की जिम्मेदारी का भार तब तक टिका रहा जब तक कि उन्होंने शरीर नही छोड़ दिया।इसके बाद गुलजार दादी व वर्तमान में दादी रतनमोहिनी इस संस्था की मुख्य प्रशासिका है।
ब्रह्माबाबा के समय ब्रह्माकुमारी और ब्रह्माकुमार की संख्या सैकड़ों में हुआ करती थी परन्तु आज यह संख्या लाखों में पहुंच गई है। दुनिया के 140देशों में अपनी साढ़े आठ हजार से भी अधिक शाखाओं में करीब 15 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन आध्यात्मिक व
नैतिक मूल्यों की शिक्षा ग्रहण करते हुए राजयोग का अभ्यास करते है।इस संस्था व यहां के राजयोगियो की स्वीकार्यता है कि परमात्मा एक है और वह निराकार एवं अनादि है। जो विश्व की सर्वशक्तिमान सत्ता है और ज्ञान का सागर है। परमात्मा विश्व की सर्व आत्माओं का निराकार माता-पिता है। परमात्मा के साथ सम्बन्ध की स्मृति और परमात्मा के प्रति प्रेम को राजयोग कहा जाता है। संस्था का सन्देश है कि राजयोग का अभ्यास साधक को आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति प्रदान कर संस्कारवान बनाता है तथा उसका चारित्रारिक उत्थान होता है जिससे साधक को
आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति व सकारात्मक ऊर्जा मिलती है । जिससे साधक को आध्यात्मिक व शारीरिक लाभ मिलता है जैसे मानसिक तनाव से मुक्ति-नकारात्मक संकल्पों की समाप्ति और शिव बाबा में समर्पण की शक्ति प्राप्त होती है।
यह संस्था साधक को सहनशीलता, धैर्य, नम्रता, मधुरता व संतुष्टि का पाठ पढ़ाती है और पुरूषार्थ की शिक्षा देती है। ईश्वरीय विश्वविद्यालय की इस शिक्षा को वैश्विक स्वीकृति तो मिलने के साथ ही संस्था की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी प्राप्त हुई। तभी तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एनजीओ के रूप में मान्यता देते हुए यूनीसेफ एवं आर्थिक व सामाजिक परिषद का परामर्शदाता सदस्य बनाया हुआ है। साथ ही संस्था को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति पदक पुरस्कार समेत विभिन्न देशों के पांच राष्ट्रीय स्तर के शांति दूत पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। जो इस बात का प्रमाण है कि संस्था का ‘‘ओउम शान्ति’’
मन्त्र दुनिया भर को शान्ति का संदेश देने में सफल सिद्ध हो रहा है।बेहतर विश्व के लिए संस्था ने अकादमी नाम से उच्च शिक्षा प्राप्ति का आधुनिक संस्थान भी विकसित किया है। मूल्य-निष्ट शिक्षा के लिए यहां 20 प्रभाग बनाये गए है। जिनमें शिक्षा, समाजसेवा, व्यवसाय एवं उद्योग,  कला एवं संस्कृति, खेल, ग्राम्य विकास, जनसंचार माध्यम, कानून, चिकित्सा, यातायात, सुरक्षा, धार्मिक, वैज्ञानिक एवं अभियन्ता, महिला, राजनीतिज्ञ, युवा विकास व प्रशासक सेवा प्रभाग शामिल है।जीवनकला, वैश्विक दृष्टिकोण, समकालीन नैतिक और सांस्कृतिक अभि संरचना के प्रगतिशील तत्वों पर आधारित अकादमी के पाठ्यक्रम बनाये गए है। जिसके माध्यम से समाज में हो रही गिरावट को रोकने की कौशिश की जा रही है। अकादमी का लक्ष्य है कि इन पाठ्यक्रमों के माध्यम से एक सत्य एवं श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सके और मनुष्य में भौतिक, आध्यात्मिक एवं भावात्मक पक्षों का सुन्दर समन्वय हो। इस अकादमी में सकारात्मक चिन्तन, तनावमुक्ति, आत्म उत्थान, आध्यात्मिकता का अनुप्रयोग, स्वप्रबन्धन व नेतृत्व प्रशिक्षण पाठ्यक्रम 3 से 30 दिन तक की समय सीमा में पूरे कराये जाते है। शिव शक्यिों के केन्द्र माउण्ट आबू को शिव बाबा का घर भी कहा जाता है। बडी संख्या में दुनियाभर से लोग यहां आकर  अध्यात्मिक शान्ति की अनुभूति करते है ।
(लेखक ब्रह्माकुमारीज के राजयोग प्रशिक्षु है) 

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