कोच्चि। केरल हाई कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में अगर मकसद ये है कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो, तो पुरुषों को लॉक अप में बंद कर देना चाहिए। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन की एकल पीठ ने कहा कि महिला छात्रावास के आसपास कर्फ्यू लगाने से कुछ नहीं होगा।
उन्होंने टिप्पणी की, पुरुषों को लॉक अप में बंद करो, मैं (यह) कह रहा हूं क्योंकि वे उपद्रव फैलाते हैं। रात 8 बजे के बाद पुरुषों के लिए कर्फ्यू लगाओ। महिलाओं को बाहर निकलने दो।
उन्होंने यह भी कहा कि केरल अभी भी पुरातन मानदंडों से मुक्त नहीं हुआ है, यह रेखांकित करते हुए कि पुरानी पीढ़ी को इस तरह के निर्णय लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
कब तक हम अपने छात्रों को बंद रख सकते हैं? सोचिए, केरल आगे नहीं बढ़ा है और हमारे छात्रों को बंद रखने की जरूरत है। तो ऐसा ही हो, अगर समाज यही चाहता है। ये फैसले उन लोगों को न लेने दें जो अलग पीढ़ी के हैं। जैसा कि कहा जाता है, हर पीढ़ी एक नए देश की तरह होती है, हमें नई पीढ़ी पर कानून रखने का कोई अधिकार नहीं है, न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा।
कोर्ट ने पांच महिला एमबीबीएस छात्रों और मेडिकल कॉलेज कोझिकोड के कॉलेज यूनियन के पदाधिकारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की। इन महिलाओं ने 2019 में जारी एक सरकारी आदेश (जीओ) को चुनौती देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि रात 9.30 बजे के बाद बिना किसी कारण के छात्रावास की महिलाएं बाहर नहीं जाएंगी।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि वह समाज से इसके बारे में सोचने का आह्वान कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर इस मुद्दे को चर्चा के लिए लोगों के सामने रख रहे हैं।
हमने कोविड के समय सब चीज को बंद कर दिया। घरों के भीतर होने वाले अपराध सबसे ज्यादा हैं। हमेशा महिलाओं पर हमला होता है। मैं समझता हूं कि मानसिक स्वास्थ्य नीचे चला गया है। शहर को खोल दो, लेकिन इसे सुरक्षित बनाओ। इसलिए राज्य के पास यह सुनिश्चित करने का मुद्दा है कि कम से कम परिसर सुरक्षित हो। माता-पिता ‘डर’ जाते हैं, उन्हें लगता है कि अगर 9.30 बजे के बाद बच्चों को छोड़ दिया गया तो वे खराब हो जाएंगे।’
उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालत को प्रतिबंध लगाने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि अनुच्छेद 19 ही सबकुछ नहीं है। हालांकि, इस तरह के प्रतिबंध सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से लागू होने चाहिए न कि एक लिंग के लिए।
हम छात्रावास के लिए नियम रखते हैं लेकिन पुरुषों के लिए इसे शिथिल करते हैं। इससे यह आभास होता है कि लड़कियां ही सबसे बड़ी समस्या हैं। मैं बस इतना ही कह रहा हूं। मैं सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूं, सरकार समाज का का प्रतिबिंब है। जब सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनकी बेटियों को कैंपस के अंदर ही रखा जाए, तो सरकार ना कैसे कर सकती है?