- 70 के दशक में पहली बार फखरुद्दीन अली अहमद ठहरे थे राजपुर की इन वादियों में
- आजादी से पहले वायसराय भी बढ़ाते रहे हैं राजपुर आशियाने की शोभा
देहरादून। देहरादून स्थित राष्ट्रपति के आशियाने में ठहरने वाली द्रौपदी मुर्मु देश की पांचवीं राष्ट्रपति हैं। इससे पहले यहां राष्ट्रपति के रूप में फखरुद्दीन अली अहमद, केआर नारायणन, प्रणब मुखर्जी व रामनाथ कोविंद ठहर चुके हैं।
देहरादून के राजपुर रोड स्थित द प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड स्टेट का इतिहास काफी रोचक है। ब्रिटिश गवर्नर जनरल या वायसराय जहां भी दौरे पर जाते थे, वहां उनके रहने के लिए शाही प्रबंध किया जाता था।
बॉडीगार्ड की वजह से इस क्षेत्र को बारीघाट भी बोला जाता था। आजादी के बाद राष्ट्रपतियों ने पहले शिमला को ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए चुना, लेकिन बाद में शिमला के विकल्प के रूप में देहरादून का बॉडीगार्ड चुना था। देहरादून के राजपुर रोड में 175 एकड़ में फैला यह आशियाना कुछ वर्ष पहले ही चर्चाओं में आया। आज जहां राष्ट्रपति आशियाना है वहां से पहले रेत बजरी का उठान होता था।
यहां की रेत बजरी, अच्छी मानी जाती थी और लोग मकान बनाने में इसका प्रयोग करते थे। बाद में कैनाल रोड के विस्तार और आबादी बढऩे से बारीघाट (बाडीगार्ड) लुप्त हो गया। यहां बॉडीगार्ड की स्थापना तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 1773 में की थी।
कुछ वर्ष बाद लार्ड कैनिंग ने इसे बॉडीगार्ड का नाम दिया।
जो द प्रेसिडेंट बडीगार्ड में परिवृत्त हो गया। अब इसे राष्ट्रपति आशियाना कहते हैं। यहां अंग्रेजों के जमाने में एक बंगला था और तब यहां गवर्नर जनरल व वायसराय रुका करते थे। उस दौर में देहरादून तक मोटर मार्ग नहीं होने की वजह से वायसराय घोड़ा और बग्गी से बडीगार्ड तक पहुंचे थे।
पहली बार इस बॉडीगार्ड को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद 1976 में ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए चुना था। राष्ट्रपति का कार्यक्रम बनने के बाद उसकी साफ-सफाई और रखरखाव किया गया।
तभी से इसको राष्ट्रपति आशियाना के रूप में जाना जाता है। लंबे अंतराल के बाद 1998 में राष्ट्रपति केआर नारायणन यहां रुके। इसको राष्ट्रपति आशियाना के रूप में बड़ी पहचान 2016 में मिली।
तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यहां आये थे, यहां उनका प्रवास तीन दिन तक रहा था। इसके ठीक दो साल बाद 26 मार्च 2018 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी यहां आये। अब एक बार फिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उनका लाव-लश्कर के आने से आशियाने की खामोशी टूटकर यहां चहल-पहल शुरू हुई है।