सदा परमात्म याद में रही राजयोगिनी बीके विमला दीदी!

क्या भूलू क्या याद करूँ
दीदी मैं तुम्हे बस याद करूँ
परमात्म ज्ञान तुमने कराया
जीना मुझे तुमने सिखाया
अपनत्व तुम्हारा ममत्व जैसा
व्यक्तित्व तुम्हारा देवत्व जैसा
कोमल मन की मल्लिका तुम थी
ईश्वरीय सेवा में सबसे अव्वल थी
निरहंकारी सदा ही रहती
ईश्वरीय याद में खोई रहती
योग लगाते ही फरिश्ता बन जाती
परमधाम से संदेशा लाती
मुझमें ईश्वरीय प्रेम तुमने जगाया
विकारों से मुझे मुक्त कराया
चारित्रिक उन्नति का कारण तुम हो
मेरे जीवन की उद्धारक तुम हो।
जब तक मेरे लौकिक माता पिता रहे तब तक मुझे ब्रह्माकुमारीज संस्था के बारे में कोई जानकारी नही थी कि यह संस्था किस तरह का योग कराती है और ईश्वरीय ज्ञान क्या है?लेकिन जब मेरी लौकिक मां प्रकाशवती ने सन 2012 में 13 फ़रवरी को इस दुनिया से अलविदा कहा तो मां के प्रति बेहद के लगाव ने मुझे बीमार बना दिया था।बहुत से डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई ज्यादा लाभ नही हुआ ,उल्टे कुछ डॉक्टर गम्भीर बीमारी की आशंका दर्शाकर मुझे डराने भी लगे थे।
इसी बीच ब्रह्माकुमारीज के रुड़की सेवा केंद्र पर बीके तारा दीदी के माध्यम से मेरा जुड़ाव व परिचय प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय  से हुआ।इस संस्था से सबसे पहले जो भी  जुड़ता है ,उन्हें सात दिन का राजयोग पाठ्यक्रम पूरा करना होता है,लेकिन मुझे बिना पाठ्यक्रम व ब्रह्माकुमारीज संस्था की समुचित जानकारी दिए बिना ही तत्कालीन केंद्र इंचार्ज बीके विमला दीदी ने माउंट आबू में हो रहे नेशनल मीडिया कांफ्रेंस में भेज दिया।मेरे साथ मेरी युगल सुनीता जिन्होंने राजयोग का सात दिवसीय पाठ्यक्रम पूरा कर लिया था,भी गई।
वही मेरे पत्रकार साथी जो अब दिवंगत हो चुके है ,एसएस सैनी व उनकी युगल सुनीता सैनी,भी साथ मे गए थे,लेकिन मैं उक्त ईश्वरीय ज्ञान के इस प्राथमिक पाठ्यक्रम से अनजान ही रहा।विमला दीदी ने हमारे साथ कोई गाईड भी माउंट आबू नही भेजा।लेकिन आबू रोड रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद हमे एहसास ही नही हुआ कि हम वहां नए हो।
जब हम मीडिया कांफ्रेंस में सफलता पूर्वक भाग लेकर लौटे तो हमने अपना अनुभव मुरली क्लास ,जो ब्रह्माकुमारीज की नियमित ईश्वरीय पढाई है,में सुनाया।अनुभव सुनकर विमला दीदी बहुत खुश हुई और हमसे बोली, अब आप परमात्मा शिव बाबा के बच्चे बन गए हो ,शिव बाबा ने आपका हाथ पकड़ लिया है,इस हाथ को कभी मत छुड़ाना।
तब से  मैं मुरली क्लास में जाने लगा।कभी कभी विमला दीदी स्वयं भी मुरली सुनाती थी,लेकिन ज्यादातर वे क्लास में सबसे पीछे बैठकर ,कौन आया है,कौन नही आया,नही आया तो क्यो नही आया?यह सब ध्यान रखती थी।कोई भाई या बहन तीन चार दिन क्लास में न आए तो उन्हें फोन कराकर क्लास में न आने का कारण पूछती थी।विमला दीदी हर भाई बहन के दुःख सुख की ऐसी साथी थी कि सब उनके सामने अपने मन की बात कह देते थे।विमला दीदी सबको एक बड़ी बहन और एक मां की तरह पालना देती थी।कभी क्लास में और कभी मुझे व्यक्तिगत रूप में भी शिव बाबा व ब्रह्माबाबा से जुड़े अपने अनुभव सुनाती थी।विमला दीदी जब मुझे ‘गोपाल भाई’ कहकर पुकारती तो लगता था ,मेरी दूसरी रूहानी मां मुझसे बात कर रही हो।विमला दीदी ईश्वरीय सेवा में कैसे समर्पित हुई, यह किस्सा उन्होंने कई बार सुनाया।वे बताया करती कि वे पहली बार जब माउंट आबू व्यक्त ब्रह्माबाबा के सामने गई तो उन्हें आबू रोड से बैलगाड़ी में बैठकर माउंट आबू जाना पड़ा था।कई भाई बहन उस समय पैदल ही आबू रोड़ से  माउंट आबू आते जाते थे।26 किमी के इस पहाड़ी व बहुत ऊंचाई के रास्ते मे आने जाने के साधन कम थे और पांडव भवन यानि ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय भी ज्यादा बड़ा नही था।ब्रह्माबाबा सभी भाई बहनों का भरपूर खयाल रखते थे।वे सबसे बाद में सोते थे और सबसे पहले उठ जाते थे।विमला दीदी को ब्रह्माबाबा जब बच्ची कहकर बुलाते तो वे खुशी के मारे झूम उठती थी। ब्रह्माकुमारी विमला दीदी का जीवन राजयोग के प्रति समर्पण की जीती-जागती मिसाल रहा। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से खुद को इतना परिपक्व, शक्तिशाली, विशेष और आदर्शवान बना लिया था कि उनका एक-एक वाक्य महावाक्य बन जाता था।उन्होंने राजयोग से मन को इतना संयमित, पवित्र, शुद्ध और सकारात्मक बना लिया था कि वह जिस समय चाहें, जिस विचार या संकल्प पर और जितनी देर चाहें, स्थिर रह सकती थी।विमला दीदी बताती थी कि राजयोगी वही है, जिसके बोल सदा मीठे रहे, जिसे परमात्मा से प्यार हो और जीवन में जिनके दिव्य गुण विद्यमान हों।वे भगवान को साथी बनाने की प्रेरणा देती थी। उनका मानना था कि अपने आपको ईश्वरीय सेवा के प्रति समर्पित कर दो तो सब समस्याएं स्वतः खत्म हो जाएंगी।वे कहती थी कि कुछ भी हो जाए इंसान को अपनी सच्चाई नहीं छोड़नी चाहिए। उनका कहना था कि ईश्वर की मदद लेकर,ईश्वर का साथ लेकर ईश्वर को अपना बना लेना ही अपना जीवन सफल करना है। जितना हो सके ,उतना साइलेंस का अभ्यास बढ़ाओ, क्योंकि साइलेंस की पावर सबसे बड़ी पॉवर होती है।ऐसी सबकी स्नेही, तपस्वी, शिव बाबा के सानीदय में ब्रह्माबाबा के कमल हस्तो से पली,  रुड़की सेवाकेन्द्र की संचालिका बीके विमला दीदी का एक वर्ष पहले पुराना शरीर त्यागकर ईश्वरीय गोद लेना ,आज भी स्मृति पटल पर छाया है ।उनका अन्तिम संस्कार उनकी देह को भव्य रथ में सजाकर  रुड़की शहर की परिक्रमा के बाद, मालवीय चौक रुड़की मे ईश्वरीय विधि विधान के साथ किया गया था। देहरादून सेवा केंद्र प्रभारी बीके मंजू दीदी ने उन्हें मुखाग्नि दी थी। उस समय विमला दीदी की  शारीरिक आयु 84 वर्ष की थी |उन्होंने लगभग 60 वर्षों से अधिक समय तक  ईश्वरीय सेवा की। विमला दीदी ने देहरादून, नाहन, डाकपत्थर, ऋषिकेश, हरिद्वार,अम्बाला, पटियाला, बरेली, लखनऊ आदि अनेक सेवाकेन्द्रों पर अपनी ईश्वरीय सेवाए दी । वे लगभग 40 वर्षों  से रुड़की सेवाकेन्द्र पर रहकर  अपनी सेवाए देती रही । उन्होंने अपनी बीमारी पर हर बार विजय पाई ,यहां तक की कोरोना को भी हरा दिया था।लेकिन अंततः जहां सबको जाना है वहां के लिए वे भी प्रस्थान कर गई।राजयोग की वरिष्ठ शिक्षिका बीके विमला दीदी का जीवन सदैव रूहानियत व ईश्वरीय याद में रहा, वे देह अभिमान से सदैव दूर रही और सबको चरित्र निर्माण की सीख देती रही।विमला दीदी को परमधाम गए एक वर्ष हो गया है लेकिन उनकी याद अभी भी ताजा है और हमेशा रहेगी।
(लेखक ब्रह्माकुमारीज मीडिया विंग के आजीवन सदस्य है)                       
डॉ श्रीगोपाल नारसन 

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