सुशील उपाध्याय ।
क्या आप अपनी थीसिस लिखवाना चाहते हैं ? तो हाजिर है पीएचडी थिसिस राइटिंग सर्विस! यह सर्विस आपको सभी विषयों के विशेषज्ञ लेखक उपलब्ध कराएगी, आप पर साहित्यिक चोरी का भी कोई आरोप नहीं लगेगा, सामग्री की गुणवत्ता भी उच्च दर्जे की होगी, प्लेगरिज्म रिजल्ट चेक करने की रिपोर्ट भी साथ-साथ मिलेगी, डिलीवरी में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा, निर्धारित समय पर डिलीवरी की जाएगी।
आपको ये सारी सेवाएं बहुत किफायती मूल्य पर उपलब्ध कराई जाएंगी। आप हमें इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं या व्हाट्सएप पर अपनी बुकिंग करा सकते हैं।
इस विवरण को पढ़कर आप थोड़ा चौंक गए होंगे, बल्कि भौचक्के हो गए होंगे कि क्या कोई खुले तौर पर इस तरह की सेवा उपलब्ध करा सकता है या इन शब्दों में सार्वजनिक तौर पर ऐसी बात कह सकता है।
इन सब सवालों का जवाब सोशल मीडिया पर मौजूद शोध प्रबंध लेखन के विज्ञापन दे रहे हैं। ऐसा कोई अकेला विज्ञापन नहीं, बल्कि दर्जनों विज्ञापन और उन्हें जारी करने वाली एजेंसियां मौजूद हैं। ये एजेंसियां केवल थिसिस राइटिंग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि रिसर्च पेपर राइटिंग की सुविधा भी दे रही हैं। उन जगहों के पते और तौर-तरीके भी बता रही हैं, जहां सम्बंधित रिसर्च पेपर यूजीसी लिस्टेड जर्नल में प्रकाशित हो सकते हैं।
इस सेवा के लिए कितने पैसे लगेंगे, विज्ञापनों में इसका उल्लेख तो नहीं है, लेकिन जब आप व्हाट्सएप नंबर पर कॉल करते हैं तो वहां मौजूद तथाकथित एक्सपर्ट सारी दरों का विवरण उपलब्ध करा देता है। इस ब्यौरे से अंदाजा लगा लीजिए की उच्च शिक्षा की दुनिया में, खासतौर से रिसर्च की दुनिया में हम सभी कितने डरावने दौर में पहुंच गए हैं।
ऐसा नहीं है कि इस तरह का धंधा पहले नहीं होता था। पहले भी होता था। किसी दूसरे से अपनी थीसिस लिखवाना या कभी-कभार गाइड द्वारा थीसिस को रीराइट कर देना या किसी मजबूरी के मारे पढ़े-लिखे आदमी द्वारा शोध प्रबंध तैयार कर देना, ये सब घटनाएं पहले भी सुनने को मिलती थीं, लेकिन कभी इतने खुले तौर पर नहीं होती थी कि इनके विज्ञापन दिए जाने लगें। जो लोग इस तरह के कामों में लगे होते थे, वे खुद की पहचान को बहुत छुपा कर रखते थे। यहां-वहां से थीसिस लिखवाने वाले लोग भी अपनी थीसिस को खुद के शब्दों में ढालने की कोशिश जरूर करते थे ताकि आने वाले वक्त में कोई उन पर चोरी करने या किसी दूसरे से थीसिस लिखवाने का आरोप ना लगाए। पर, अब तो ‘खुल्ला खेल फर्रुखाबादी’ हो गया है। आपके पास पैसे हैं तो आप किसी भी टॉपिक पर तथाकथित एक्सपर्ट और प्रोफेशनल लोगों से अपनी थीसिस लिखवा सकते हैं और यदि आपने पहले से थोड़ा-बहुत कुछ काम किया है तो इस काम को रीराइट भी करा सकते हैं।
ये कौन लोग हैं ? इस काम की अनुमति इन्हें कहां से मिली? इनके साथ किन लोगों का गठजोड़ है ? ये कैसे अपनी पसंद के टॉपिक तय करा लेते हैं ? कहां से रिसर्च मैटीरीयल लेकर आते हैं ? कैसे कुछ ही हफ्तों में थीसिस तैयार करके देते हैं ? ये सब सवाल बेहद गंभीर हैं और उत्तर की मांग करते हैं। क्या इस धंधे में प्राइवेट सेक्टर के वे खिलाड़ी भी शामिल है जो निजी उच्च शिक्षण संस्थाओं से जुड़े हैं ? आखिर उच्च शिक्षा को रेगुलेट करने वाली संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं की निगाह इस तरह क्यों नहीं जा पा रही है!
शिक्षा जगत में अब खुलेआम यह कहा जा रहा है कि यदि आप पांच-छह लाख खर्च करने की हैसियत रखते हैं तो आपको घर बैठे अपने मनपसंद विषय में थीसिस और डिग्री दोनों प्राप्त हो जाएगी। एक शिक्षक होने के कारण मैं यही कामना करता हूं कि ऊपर कही गई बात केवल अफवाह हो। अगर ये बातें सच हैं, जैसा कि थीसिस लिखने के विज्ञापनों से लगता है तो यह अच्छे भविष्य की तरफ संकेत नहीं कर रही हैं। एक शिक्षक के रूप में हम जैसे लोगों और एक संस्था के रूप में विश्वविद्यालयों तथा यूजीसी को इस दिशा में तत्काल समुचित कदम उठाने की जरूरत है।