प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने नये किस्म के पदार्थ की रचना की

रांची । अब ऐसा पदार्थ भी सामने आ सकता है जो दिखने में प्लास्टिक के जैसा ही होगा लेकिन उसमें सारे गुण धातु जैसे होंगे। इस पदार्थ को प्रयोगशाला में तैयार किया गया है और प्रारंभिक परीक्षण में इसके सफल होने के बाद शोधदल इसे और विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में इस खोज के बारे में जानकारी दी गयी है। बताया गया है कि इस पदार्थ के आणविक कण एक दूसरे से उलझे हुए हैं। फिर भी यह किसी धातु के जैसा आचरण कर सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने यह काम हुआ है।

अब इसके बन जाने से बिजली के काम काज में भी इसका बेहतर इस्तेमाल किये जाने की पूरी उम्मीद है। पत्रिका में इसे कैसे तैयार किया गया है उसकी विस्तृत जानकारी दी गयी है जो जटिल वैज्ञानिक भाषा में है। इस एक खोज ने कंडक्टिविटी यानी सुचालकता के सारे पूर्व सिद्धांतों को फिर से ध्वस्त कर दिया है।
किसी भी धातु को सुचालक इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके अणु एक खास तरीके से सजे होते हैं।

प्लास्टिक की संरचना ही धातु से अलग होती है, इसलिए वह सुचालक की श्रेणी में नहीं आता है। वैसे अब प्लास्टिक की संरचना में बदलाव कर अत्यंत मजबूत पदार्थ भी बनाये गये हैं लेकिन तब भी वे सुचालक की श्रेणी में नहीं आये थे।

इस शोध के बारे में वैज्ञानिकों ने आम आदमी की समझ में आने लायक स्थिति को बयान किया है। उनके मुताबिक पानी में एक कार चल रही है और वह पानी के अंदर भी सत्तर किलोमीटर की रफ्तार से चल रही है, इस नये खोज को कुछ ऐसा ही समझा जा सकता है।

प्लास्टिक के जैसा होने की वजह से उसे बड़ी आसानी से किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। दूसरी तरफ धातु जैसी मजबूती होने की वजह से यह काफी समय तक के लिए टिकाऊ भी है। यह बात शिकागो यूनिवर्सिटी के एसोसियेट प्रोफसर जॉन एंडरसन ने कही है।
इसके बन जाने से अत्याधुनिक तकनीकी निर्माण के काम में इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल होने की उम्मीद है। बिजली और इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में धातु की सुचालकता की आवश्यकता होती है। इसी वजह से तांबा, सोना और अल्युमिनियम जैसे धातु पिछले पचास वर्षों से प्रयोग में लाये जा रहे हैं। इनकी मदद से आईफोन, सोलर पैनल या टीवी भी बनाया जाता है।

अब यह तकनीक भी इससे बदलने वाली है। नया पदार्थ धातु के जैसा सुचालक होने के साथ साथ प्लास्टिक के जैसा लचीला भी हो सकता है। प्रयोगशाला में निरंतर इस पर काम होने के बाद यह पाया गया कि यह अपने ऊपर एक परत बना लेती है।

इसी वजह से इसके अंदर की आणविक संरचना बदलती रहती है लेकिन वह सुचालक के तौर पर काम करता रहता है क्योंकि हर परिस्थिति में एक अणु अपने बगल वाले अणु से जुड़ा रहता है। धातु को किसी खास सांचे मे बनाने के लिए उन्हें पहले पिघलाना पड़ता है फिर खास आकार दिया जाता है।

इसमें वह परेशानी भी नहीं होगी। इस नये पदार्थ की विशेषता यह भी है कि इसे सामान्य तापमान पर भी अलग अलग आकार में ढाला जा सकता है।

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