कई टुकड़ों में बंट जाएगा पाकिस्तान!

पाकिस्तान के लिए खतरा है खालिस्तानी मूवमेंट


सुशील उपाध्याय 
आने वाले बरसों में पाकिस्तान पांच से छह टुकड़ों में बंट जाएगा, यह बात अनेक लोगों को रोमांच से भर देती है और एक बड़ी ब्रेकिंग हेडलाइन जैसी दिखती है। इस रोमांच की जड़ में नफरत का खाद पड़ा हुआ है। लेकिन खास बात यह है कि इस बात को कोई भारतीय नहीं कह रहा है, बल्कि पाकिस्तान के जाने-माने (और भारत में कुख्यात माने जाने वाले) इस्लामिक स्कॉलर डॉ इसरार अहमद कह रहे हैं।

ये वही इसरार अहमद (अब दिवंगत) हैं, जिनके यूट्यूब चैनल और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारतीय एजेंसियों ने घृणा फैलाने का आरोप लगाया था। डॉ इसरार मूलतः चिकित्सक हैं, लेकिन दुनिया भर के मुसलमानों में उनकी पहचान इस्लामिक दार्शनिक और व्याख्याकार के रूप में है। यह स्वाभाविक ही है कि वे दुनिया भर में मुसलमानों का राज देखना चाहते हैं और खुद को भारत के मुसलमानों का भी बड़ा खैरख्वाह मानते रहे हैं।
यह तो उनके परिचय का एक पहलू हुआ, उनका दूसरा परिचय एक ऐसे स्कॉलर के रूप में भी है जो स्थापित विचारों के विपरीत अपनी बात कहता है। वे संभवतः पाकिस्तान में अकेले ऐसे स्कॉलर रहे हैं, जिन्होंने खालिस्तान की मुहिम को पाकिस्तानी सपोर्ट का खुले तौर पर विरोध किया और यह विरोध इसलिए नहीं किया कि वे भारत को एकजुट रखना चाहते हैं, बल्कि उन्होंने अपने विरोध के पीछे कुछ दूसरे आधार प्रस्तुत किए हैं।

यूट्यूब पर डॉ इसरार अहमद का एक लेक्चर उपलब्ध है, जिसमें वे कहते हैं कि खालिस्तान बनने से पाकिस्तान के सामने एक बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा और जिस दिन खालिस्तान वजूद में आएगा, उस दिन पाकिस्तान का वजूद गहरे संकट से घिरा होगा।
इस विचार के पीछे उनका तर्क है कि सिखों के जो भी पवित्र स्थल हैं, ननकाना साहिब, पंजा साहिब, गुरुद्वारा जनम-स्थान, करतारपुर साहिब, ये सब के सब पाकिस्तान में है। इतना ही नहीं, सिखों का हीरो रणजीत सिंह पाकिस्तान की धरती से ही जुड़ा हुआ है। इसी तरह से भगत सिंह, हरि सिंह नलवा और दूसरे सिख नायक भी इसी धरती पर पैदा हुए हैं, जिसे पाकिस्तान कहा जा रहा है।

उनका तर्क है कि भारत में पंजाब से बाहर पटना साहिब, नांदेड़ साहिब आदि स्थल पंजाब से इतनी अधिक दूरी पर हैं कि उनके खालिस्तान में शामिल होने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन पाकिस्तान में मौजूद सिखों के धार्मिक स्थल भारतीय पंजाब से ज्यादा दूरी पर नहीं है। इसलिए ये उम्मीद करना झूठी दिलासा होगी कि इन स्थानों को लेकर सिखों के मन में उम्मीद पैदा नहीं होगी और वे इन्हें लेने की कोशिश नहीं करेंगे।
दूसरी बात ये कि सिख युद्ध कौशल में बहुत ही दक्ष कौम है। वे आसानी से हार नहीं मानते और उनका युद्ध लड़ने का बहुत लंबा इतिहास है। पाकिस्तानी भले ही इस विचार से खुश होते हों कि वे भी भारत को वैसे ही तोड़ देंगे जैसे कि भारत ने 1971 में पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए थे। डॉ इसरार अहमद कहते हैं कि यदि कभी खालिस्तान बना तो इसकी असल कीमत पाकिस्तान ही चुकाएगा।

और तब सिखों की राजधानी अमृतसर नहीं, बल्कि लाहौर होगी। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि खालिस्तान का न बनना ही उसके हित में है और मुसलमानों का हित भी इसी में सुरक्षित है कि सिख अलग देश न बना सकें।
यदि लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और उदार विचारों की दृष्टि से देखें तो डॉ. इसरार अहमद हर तरह से कट्टरपंथी हैं, लेकिन उनकी एक खूबी है कि वे पाकिस्तान के उस इतिहास को स्वीकार करते हैं जो भारत के साथ जुड़ा हुआ है और दूसरी बात यह है कि वे पाकिस्तान के भविष्य को लेकर बेहद आशंकित हैं।

उन्होंने अपने कई व्याख्यानों में कुछ ऐसी रिपोर्टों का जिक्र किया है जिनमें दावा किया गया है कि भारत, पश्चिमी ताकतें, इजराइल और इस्लाम के दुश्मन, ये सब मिलकर पाकिस्तान को 5 से 6 हिस्सों में विभाजित करने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने साल 2006 कि कुछ रिपोर्टों का हवाला दिया है जिनमें कथित तौर पर यह कहा गया है कि साल 2020 से पाकिस्तान के विभाजन के एजेंडे को लागू किया जाएगा।

इस एजेंडे के तहत एक सिंधु देश बनाया जाएगा जिसमें मौजूदा सिंध का ज्यादातर हिस्सा शामिल होगा। इसी के साथ मिलता हुआ एक दूसरा देश लियाकताबाद नाम से होगा। इसमें पाकिस्तानी हैदराबाद और कराची जैसे इलाके शामिल होंगे।
बलूचिस्तान भी एक अलग देश होगा, जिसमें पूरा बलूचिस्तान प्रांत सम्मिलित किया जाएगा। साथ ही पाकिस्तानी और भारतीय कश्मीर को मिलाकर एक और अलग देश बनाया जाएगा, जो परोक्ष तौर पर अमेरिका की कॉलोनी होगा।

इस कॉलोनी के जरिए अमेरिका चीन और भारत, दोनों को नियंत्रित करेगा। शेष बचा हुआ हिस्सा पाकिस्तान के नाम से बाकी जाएगा। यह पूरी तरह से लैंडलॉक्ड होगा जैसे कि अफगानिस्तान है। (हालांकि, इसे समुद्र से कनेक्ट करने के लिए एक गलियारा दिया जाएगा!) इसके अलावा पश्चिमी ताकतें यह संभावना भी खोज रही है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा के आसपास के कबायली इलाके को मिलाकर भी एक अलग देश बनाया जाए।
डॉ इसरार अहमद की थ्योरी यह है कि पाकिस्तान को कई टुकड़ों में बांटकर इस्लाम के खिलाफ चल रहे अभियान को अंतिम परिणति तक पहुंचाया जाना है। चूंकि पाकिस्तान के बंटवारे का सबसे बड़ा फायदा भारत को होगा इसलिए भारत भी इस मुहिम में अमेरिका, इजराइल और इस्लाम विरोधी अन्य पश्चिमी ताकतों के साथ मिला हुआ है। वे इस और विस्तार देकर बताते हैं कि मुसलमानों के खिलाफ यहूदियों की मुहिम में अब हिंदू भी खुलेतौर पर शामिल हो गए हैं।

ईसाई तो पहले ही ही यहूदियों के साथ मिले हुए हैं। भले ही, डॉ इसरार अहमद की यह प्रस्थापना फिलहाल थोड़ी काल्पनिक और हवाई लगती है, लेकिन इतिहास में पीछे जा कर देखिए तो पता चलता कि इसमें भी कुछ न कुछ संभावना मौजूद है।
1906 में जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी तो शायद ही किसी ने यह सोचा हो कि अपनी स्थापना के करीब 25 साल बाद यही संस्था भारत के विभाजन का आधार तय करने लगेगी और अपनी स्थापना के ठीक 40 साल बाद मुस्लिम लीग एक अलग देश बनवाने में सक्षम हो जाएगी। यदि इस पैमाने पर डॉ इसरार अहमद के इन विचारों को देखा जाए तो यह उम्मीद की जा सकती है कि भले ही 2020 से पाकिस्तान के विभाजन की योजना लागू न हो, लेकिन अगले कुछ वर्षों में पाकिस्तान को बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से सटे कबायली इलाके से हाथ धोना पड़ सकता है। हालांकि कश्मीर के मामले में ऐसी कोई संभावना दूर तक नहीं है कि भारत अपने हिस्से को आसानी से पाकिस्तानी हिस्से के साथ मिलाकर अमेरिका को सौंप देगा। वैसे भी, इस हिस्से में अब चीन के भी बहुत गहरे हित हैं इसलिए यह इतनी आसानी से संभव नहीं होगा।
जहां तक अलग सिंधु देश की बात है तो सिंध को पाकिस्तान से अलग किए जाने का आंदोलन जिये सिंध आंदोलन कई दशक तक चलता रहा है और भारत पर आरोप लगता रहा है कि वह बांग्लादेश की तरह ही सिंध को भी पाकिस्तान से अलग करना चाहता है। डॉ इसरार अहमद इस बात पर जोर देते हैं कि पाकिस्तान का वजूद इस्लाम की बुनियाद पर ही टिका रह सकता है, लेकिन उस वक्त वे भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के भीतर कोई एक इस्लाम नहीं है, बल्कि वहां इस्लाम के नाम पर देवबंदी, बरेलवी, सुन्नी शिया, अहमदी, हनफी, सनफी…..और भी न जाने कितने फिरके मौजूद हैं। इन सब फिरकों में भी पंजाबी, सिंधी, बलोच, पख्तून, मुहाजिर लोगों के अपने अलग-अलग गुट हैं। इसलिए पश्चिमी देशों और भारत को दोष दिए बिना भी विभाजन के खतरे खुद पाकिस्तान अपने भीतर ही लिए बैठा हुआ है।

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