नईदिल्ली। हिमाचल प्रदेश के बारे में पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि यहां भाजपा को दोबारा जीतकर आने में कोई परेशानी नहीं होगी। अब पार्टी के बागियों ने इस अनुमान पर नये सवाल खड़े कर दिये हैं। कई बड़े नेताओं का टिकट कटने के बाद वे अब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। इनमें से अनेक नेताओं का अपना वोट बैंक है।
ऐसे में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के लिए दूसरे दलों के लोग कम और बागी प्रत्याशी ही बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं। विधानसभा क्षेत्र कांगड़ा से कुलसुभाष चौधरी ने 25 तारीख को नामांकन भरने का एलान कर दिया है। अगर वह अपना नामांकन पत्र दाखिल करते हैं तो इससे पवन काजल की राह मुश्किल हो सकती है।
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में भाजपा के चार बागी नेताओं ने निर्दलीय नामांकन भर कर पार्टी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। विधानसभा क्षेत्र फतेहपुर से कृपाल परमार ने आजाद नामांकन भर कर भाजपा प्रत्याशी राकेश पठानिया के समक्ष खुली चुनौती पेश कर दी है।
वहीं, विधानसभा क्षेत्र इंदौरा से मनोहर धीमान ने नामांकन दर्ज कर भाजपा की मौजूदा विधायक रीता धीमान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जस्वां प्रागपुर हल्के से संजय पाराशर ने नामांकन भर कर विक्रम ठाकुर के समीकरणों को बिगाड़ दिया है। इसके अलावा ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र छोड़कर देहरा से चुनाव लड़ने वाले रमेश के सामने देहरा के मौजूदा विधायक होशियार सिंह के रूप में पहाड़ जैसी विशाल चुनौती रहेगी।
विधानसभा क्षेत्र कांगड़ा से कुलसुभाष चौधरी ने 25 तारीख को नामांकन भरने का ऐलान कर दिया है। अगर वह अपना नामांकन पत्र दाखिल करते हैं तो इससे पवन काजल की राह मुश्किल हो सकती है। हिमाचल की देहरा विधानसभा क्षेत्र में विधानसभा चुनाव को लेकर एक बार फिर होशियार सिंह सुर्खियों में है। होशियार सिंह का भाजपा से टिकट काटने के बाद उन्होंने निर्दलीय नामांकन भर दिया है।
होशियार सिंह अपनी भाजपा की टिकट काटने की वजह मीडिया को मान रहे हैं। जब टिकट काटने पर रमेश धवाला ने दबाव बनाया तो इसकी कवरेज मीडिया ने की। खबर भाजपा हाईकमान के कानों तक पड़ी और भाजपा का टिकट होशियार सिंह से छिटककर फिर रमेश धवाला के पास आ गया।
इस तरह से आगामी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े जिला कांगड़ा में भाजपा की मुश्किलें लगातार बढ़ती दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस पार्टी में भी बगावत की आशंकाएं दिखाई दे रही थीं, मगर शीर्ष नेतृत्व के दखल और टिकट आवंटन से इन बागी चेहरों को मैनेज कर लिया।
मगर काफी मान मनोव्वल के बाद भी भाजपा अपने बागी नेताओं को मना नहीं पाई। इसका सीधा सीधा असर चुनावी भाजपा के नतीजों पर देखने को मिल सकता है। देखना दिलचस्प होगा कि इस बगावत का भाजपा और कांग्रेस को कितना नुकसान झेलना पड़ता है।