भगवान राम व श्रीकृष्ण भी मनाते थे दीपावली!

शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुख संपदाम्।
दुष्ट शक्तिः विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते।।

डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

हिंदू धर्म मे दीपावली पर्व शुद्ध रूप से सामाजिक एवं भौगोलिक पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसको द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण भी मनाया करते थे। त्रेता युग में भगवान राम ने भी दीपावली का मनाया था और इससे पहले सतयुग में दीपावली को मनाया जाता था।

दीपावली का वास्तविक नाम है, शारदीय नवसस्येष्टि पर्व जिसका अर्थ है शरद ऋतु में आई हुई फसल का यज्ञ अर्थात् खरीफ की फसल तिलहन, दलहन, अनाज यथा धान, मक्का, चना, मसूर, जौ, उड़द, सोयाबीन, अरहर आदी का प्रेम से स्वागत करना, पूजा करना, सबसे पहले इन नई फसलों को प्राप्त करने के बाद इसे परमात्मा व देवताओं को भोग लगाना। भोग लगाने की विधि यज्ञ है।

जो अग्नि देवताओं का मुख है। अग्नि को दी हुई आहुति परमात्मा व सभी देवताओं को प्राप्त होती है। इससे परमात्मा व सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं और जन कल्याण करते हैं। हमारी संस्कृति त्याग और दान की संस्कृति है। हम नई फसल से नए-नए पकवान खीर, हलवा, मिठाई लड्डू बताशा आदि बनाते है। अपने माता-पिता, गुरु- आचार्य, बड़े-बुजुर्ग, रिश्तेदार, असहाय, निर्बल, अनाथ, हमारे सेवक, कर्मचारी, पड़ोसी, हमारे रक्षक पुलिस, सेना को देकर यथायोग्य ग्रहण कराते है। सामाजिक स्तर पर कर्म के अनुसार किसान और व्यापारी इस पृथ्वी पर समृद्धि लाते हैं और अभाव को दूर करते हैं इनका सदकार्य ही यही है-
पशुनां रक्षणं दानं इज्या२ध्ययनमेव च।
वणिक् पथं कुसीदं च वैश्यस्य कृषिमेव च।।
अर्थात – पशुओं का पालन एवं रक्षण तथा दान देना, यज्ञ करना, स्वाध्याय करना इस नियमित अङ्ग और व्यापार- वस्तुओं का आयात निर्यात और पैसों का निवेश करना यह व्यापारी एवं किसान के कार्य है।परंतु किसान की उपेक्षा करके कभी किसी समाज की शुभ दीपावली नहीं हो सकती। कुछ लोग लक्ष्मी का अर्थ, नोट करेंसी को मानते है ।लेकिन जब नोट नहीं थे, तब लक्ष्मी नहीं थी क्या? लक्ष्मी तब भी थी।

तब तांबे, सोने, चांदी के सिक्के चलते थे। एक समय ऐसा भी था जब सिक्के नहीं थे, तब क्या लक्ष्मी नहीं थी? अवश्य थी। फिर लक्ष्मी क्या है लक्ष्मी है धान, अनाज। यही विशुद्ध रूप से लक्ष्मी है और इस लक्ष्मी को देने वाला किसान है।इसलिए इस दीपावली में आसपास के गरीब किसानों का संबल बने उनके पास जायें ,हो सके तो उनके कर्ज को हल्का या कम करने का प्रयास करें। उनके बच्चों को मिठाई कपड़ा इत्यादि दें।यह उनपर पर दया नही,बल्कि उनका अधिकार समझ कर दे।

दीपावली के पर्व

धनतेरस – लोक में ऐसा प्रचलन है कि इस दिन स्वर्ण, चांदी, तांबे की खरीदी करना शुभ होता है। इसलिए लोग जमकर आभूषण इत्यादि खरीदते हैं। आइए! समझते हैं धनतेरस क्या है। धनतेरस में दो शब्द है पहला है धन जिस का सामान्य अर्थ लगाया जाता है पैसा रुपया सोना चांदी आदि और तेरस का अर्थ है त्रयोदशी धनतेरस के दिन त्रयोदशी तिथि होती है।

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। पर त्रयोदशी को स्वर्ण आदि आभूषण खरीदने से क्या लाभ और शुभ? क्या साल भर ज्वेलरी की दुकानें बंद रहती है? क्या दूसरे दिन खरीदना अशुभ है? बिल्कुल भी नहीं फिर धनतेरस का क्या मतलब? धन का सबसे पहला अर्थ है – शरीर, पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया माया तो दूसरे स्थान पर है। पहली संपत्ति तो हमारा शरीर है। आपसे कोई अपका एक हाथ मांग ले बदले में कई लाख रुपए देने की बात कहे तो आप कदापि नहीं मानेंगे। इसका मतलब पहला धन तो आपका शरीर ही है।

इससे बड़ा कुछ नहीं है अब आप पूछेंगे? इसका धनतेरस से क्या मतलब है? आयुर्वेद के बहुत बड़े ज्ञाता ऋषि हुए हैं। धन्वंतरि और उन्होंने अपनी बात प्रारंभ की है। शरीर रूपी धन से। उन्होंने शरीर को सबसे बड़ा धन बताया है। इसलिए पहला धन तो शरीर है यदि आप स्वस्थ रहें निरोग है तो संपत्ति और भी कमा सकते हैं। कहावत तो आपने सुनी है जान है तो जहान है तो बताइए आपको पहला धन पवित्र आत्मा और शरीर हुआ ना।

आपका सुंदर स्वास्थ्य ही आपका धन है। धन्वंतरि के स्मरण में हम त्रयोदशी को “धनतेरस” मनाते हैं। शरद ऋतु में शरीर का ध्यान रखना यह आयुर्वेद के अनुसार भी बहुत जरूरी है। क्योंकि शरद ऋतु में ध्यान रखा गया शरीर पूरे साल भर स्वस्थ रहता है।

जीवेम शरदः शतम् इस मंत्र के भाग में शरद शब्द का उल्लेख है अर्थात् हम सौ वर्ष तक जिए हम सौ शरद ऋतु देखें। शरद ऋतु की उपेक्षा करके कोई व्यक्ति सौ वर्ष तक नहीं जी सकता। इसीलिए हमारा पहला धन शरीर है। ध्यान रहे! हमारा पहला धन शरीर है परंतु व्यक्ति संपत्ति कमाने के लिए इस अमोल शरीर और मानव जन्म को दांव पर लगा देता है। फिर शरीर ठीक करने के लिए पूरी संपत्ति को गवां देता है।

इसलिए आइए असली धन को समझें और धनतेरस ऐसे ही मनाएं। कालांतर में लोगों ने स्वर्ण आभूषणों को बड़ा धन मान लिया।
लक्ष्मी पूजा – लक्ष्मी पूजा दीपावली जो मुख्य पर्व है इस दिन आप लोगों को दो बार यज्ञ हवन करना होगा। एक बार प्रातः काल घर में और दूसरी बार आपके प्रतिष्ठान व्यवसाय ऑफिस दुकान फैक्ट्री आदि में। जहां पर बैठ करके आप अपना कार्य करते हैं। दीपावली से पहले ही आप अपने घर की साफ-सफाई, रंगरोगन, आदि कर लें। क्योंकि वर्षा ऋतु अभी गई है और साफ-सफाई की बड़ी आवश्यकता है।

रात्रि को पवित्र मन से शयन करें। पर्वों पर और अमावस्या, पूर्णिमा और अष्टमी इन पर्व तिथियों पर कम से कम पति और पत्नी का सहवास वर्जित है,एवं पाप है। इस दिन पवित्र रहे प्रातः काल 4 बजे उठे प्रार्थना करें। योग प्राणायाम करें। सभी मिलकर के आनंदोत्सव से मिठाइयां पकवान बनाए घर में यज्ञ हवन करें।

विद्वानों को बुलाकर के हवन करवाएं। आपकी हवन सामग्री में बताशे धान मूंग मसूर दाल जो नई फसल है उसको मिलाएं और दीपावली शारदीय नव सस्येष्टि के मंत्रों से आहुतियां दें। परिवार के कल्याण के लिए समाज के कल्याण के लिए देश के कल्याण के लिए परमात्मा से प्रार्थना करें। साथ में यह भी कहें कि पहले सुधार मेरे से शुरू होगा।
लक्ष्मी पूजा – लक्ष्मी का अर्थ है जो आपके लक्ष्य की पूर्ति में आपका सबसे सहायक साधन हो, वह लक्ष्मी है। बिना शुद्ध लक्ष्य के शुद्ध लक्ष्मी भी प्राप्त नहीं होती है। इसलिए हमारा लक्ष्य भी ऊंचा और श्रेष्ठ होना चाहिए। अपने घर को सजाएं। घी के दीपक जलाएं। दिवाली वाले दिन अमावस्या तिथि होती है और यह अमावस्या 12 महीने में जो 12 अमावस्यायें आती है उसमें यह सबसे काली अमावस्या होती है।

सबसे प्रगाढ अंधकार वाली अमावस्या होती है। हम चाहते हैं कि हम घी के दीपक जला करके इस अंधकार को दूर करें। तमसो मा ज्योतिर्गमय हम अंधकार से प्रकाश की ओर चलें। हमारे मन से अंधकार मिटे, हमारे समाज से अज्ञान, अंधकार, अभाव दूर हो यही  दीपावली का संदेश है। दीप का अर्थ है दीपक और अवली का अर्थ है पंक्ति, जिस पर्व में दीपक की बड़ी-बड़ी पंक्तियां लगाकर घृत के दीपक जलाते हैं उसे “दीपावली” कहते हैं।
गोवर्धन पूजा- हमारे पूर्वजों ने हमारे पर्वों को कितना सुंदर सजाया है, कितना सामंजस्य बैठाया है। मैंने अभी कहा,लक्ष्मी का मतलब करेंसी नहीं है, हमारी फसल है।

अब आप बताइए बिना गो माता की पूजा के किसानों की सम्रद्धि कैसे हो सकती है या फिर “लक्ष्मी पूजा” कैसे हो सकती है। गोवर्धन अर्थात गौ माता का रक्षण पालन और संवर्धन। बिना गो माता के खेती कैसे हो सकती है? फसल अच्छी कैसे हो सकती है? विदेशी खाद फ़र्टिलाइज़र से आप सिर्फ बीमार पड़ेंगे। परंतु शुद्ध गाय के गोबर के खाद से खेती करने पर उसका कितना लाभ होता है आप जानते हैं।

इसलिए हम गौ माता की पूजा करनी चाहिए । क्योंकि हमारा पूरा समाज खेती पर निर्भर है और हमारी खेती गो माता पर निर्भर है। दूसरा पक्ष यह है कि आप दीपावली पर खूब मिठाईयां खाएंगे और बाटेंगे भी परंतु यह तो बताइए बिना दूध मावे के मिठाइयां बनेंगी कैसे? क्या डालडा और मिलावटी मावा की मिठाई खाएंगे?तो बताओ बिना गोवर्धन पूजा के आपकी दीवाली सफल कैसे होगी? इसलिए गौ माता का पालन करें। तभी आपकी गोवर्धन पूजा सफल है और तभी गौ माता का आशीर्वाद आप के परिवार को मिलेगा।
दीपावली पर पटाखा फोड़ने की एक सामाजिक परंपरा रही है और आज के समय में इस पर बड़ी बहस हो रही है। जिस तरह से दिल्ली सरकार ने इस पर बैन लगाया है,वह सही है। पटाखे से प्रदूषण होता है और बीमार लोगो व बच्चों के लिए यह घातक सिद्ध हो सकता है।समझदारी इसी में है दीपावली पर परमात्मा को याद करे,खुशियां मनाए व अपने अंदर की ज्योति को प्रकाशमान करे।

(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)

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