सुशील उपाध्याय
हम दुश्मन है इसलिए हमारे दिमाग बंद हैं। और हमारे दिमाग बंद हैं इसलिए हम दुश्मन हैं। हमारी प्रतिस्पर्धा दुनिया की सबसे खराब चीजों को लेकर है। दोनों को हथियार इकट्ठा करने का जुनून है। भारत इसलिए खुश है क्योंकि वह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है और पाकिस्तान की खुशी भी इसी बात में है कि सैन्य रूप से वह दुनिया के सबसे दस सबसे शक्तिशाली देशों में से है। और उसके पास भारत की तुलना में परमाणु बम भी ज्यादा हैं। अब इस ट्रैक से थोड़ा अलग हटकर सोचिये।
यदि दोनों देश अपने रक्षा बजट का महज आधा हिस्सा यानी 40 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च कर दें तो क्या होगा! यकीनन, चमत्कार हो जाएगा। लेकिन, निकट भविष्य में इस चमत्कार की कोई उम्मीद नहीं है। मुश्किल यह है कि दोनों देशों में केवल विपक्ष के नेता अच्छे संबंधों के बारे में बोलते हैं और सत्ता का स्वर हमेशा दुश्मनी की शब्दावली को पसंद करता है।
पाकिस्तान का एक स्वर इन दिनों काफी चर्चा में है। मुख्यधारा के मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी उन्हें खूब सुना जा रहा है। ये हैं मिफ्ताह इस्माइल। वर्ष 2022 में जब इमरान खान को हटाकर शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने मिफ्ताह इस्माइल को वित्त मंत्री बनाया। मिफ्ताह इस्माइल कुछ महीने ही वित्त मंत्री रहे, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई कड़े फैसले लिए और इन फैसलों को चलते उनकी विदाई भी हो गई।
असल में मिफ्ताह इस्माइल का सुर पाकिस्तान की कट्टर राजनीति से थोड़ा अलग तरह का है। पिछले दिनों मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बारे में काफी खरी बातें कही। उनकी बातें तथ्यों पर आधारित हैं, लेकिन ये पाकिस्तान में पसंद नहीं की गई और स्वाभाविक तौर पर भारत में उनकी सराहना हुई।
उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि आज भारत की पूरी दुनिया में इज्जत हो रही है। भारत 450 अरब डॉलर का निर्यात करता है। 150 अरब डॉलर का तो केवल आईटी का निर्यात करता है। दोनों देशों ने शुरुआत तो साथ में की थी। यहाँ तक कि 1990 तक कई मामलों में पाकिस्तानी उनसे आगे होते थे।
लेकिन, अब स्थिति क्या है ? पाकिस्तान के 50 फीसद बच्चे, जो स्कूल जाने लायक हैं, वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। हमें खुद से सवाल करना चाहिए कि अपने मुल्क के साथ कर क्या रहे हैं ? हर काम में सेना का दखल है और उसके सामने राजनीतिक नेतृत्व कमजोर है।
इस्माइल के तर्कों को शायद ही कोई गलत कह सके। वे कहते हैं कि हिन्दुस्तान के पास 600 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है और पाकिस्तान के पास 10 अरब डॉलर भी नहीं है। हद तो यह है कि बांग्लादेश के पास भी पाकिस्तान से ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है।
भारत से मुकाबले की बात छोड़िये, आज पाकिस्तान बांग्लादेश से भी पिछड़ा हुआ है। एक बांग्लादेशी की औसत उम्र पाकिस्तानियों से पाँच साल ज्यादा है। हर बांग्लादेशी पाकिस्तानियों से तीन साल ज्यादा वक्त स्कूल/कॉलेज जाता है।
जब पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नहीं बना था तो वहाँ की आबादी पश्चिमी पाकिस्तान से ज्यादा थी। तब 161 सीटें पूर्वी पाकिस्तान में थीं और 138 पश्चिमी पाकिस्तान में। आज की तारीख में बांग्लादेश की आबादी 17 करोड़ है और पाकिस्तान की जनसंख्या 23 करोड़ पर पहुँच गई है।
किसी की हिम्मत नहीं है कि पाकिस्तान में जनसंख्या नियंत्रण की बात कर दे। आप जरा सी बात करेंगे तो इस्लाम खतरे में आ जाता है। और जब भारत से मुकाबले की बात करते हैं तो यह भूल जाते हैं कि 75 साल में भारत की आबादी करीब चार गुना बढ़ी है, जबकि पाकिस्तान की छह गुना।
ऐसे में किस तरह उम्मीद की जाएगी कि पाकिस्तान भारत के मुकाबले समृद्ध बना रह सकेगा। पाकिस्तान में चाहे सेना की हुकूमत हो या राजनीतिक हुकूमत हो, किसी ने इस समस्या सुलझाने की कोशिश नहीं की। जनसंख्या विस्फोट को कौन सुलझाएगा ? बच्चों को स्कूल में कौन भेजेगा ? अस्पताल कौन बनवायेगा ?
वास्तव में मिफ्ताह इस्माइल बड़े सवाल उठा रहे हैं। ये ऐसे सवाल हैं जो अब भारत में भी नहीं उठाए जाते, जिसे आमतौर से उदार लोकतंत्र माना जाता रहा है।
वे कहते हैं कि पाकिस्तान महज एक फीसद रिपब्लिक है। पाकिस्तान में बस ड्राइवर का बेटा बस ड्राइवर ही बनता है। तालीम केवल एक फीसद लोगों को मिलती है। माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर और गूगल, इन सब के सीईओ भारत से आए हैं। ये आईआईटी से निकल कर आए हैं। अपने गठन के बाद से ही पाकिस्तान में सरकारें बदलती रहती थीं और उस दौर में भारत में नेहरू आईआईटी और एम्स बनवा रहे थे। आज पाकिस्तान के बच्चों को आईटी के बारे में क्या पता है! लोग करते हैं कि मिफ्ताह इस्माइल वामपंथियों की तरह बाते करता है।
मैं वामपंथी नहीं हूं, लेकिन सच कहना वामपंथी होना होता है तो मैं हूं। कम से कम सरकार तालीम और सेहत सबको मुहैया कराए। इस काम को कोई बाहर का व्यक्ति नहीं करेगा और न ही इसके लिए हिंदुस्तान को जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा। बाकी मुक्त बाजार को अपना काम करने दीजिए।
मिफ्ताह इस्माइल की सोच अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन दोनों देश व्यापार के मामले में एक-दूसरे को बहुत नीचे रखते हैं। व्यापार के क्षेत्र में दोनों की प्राथमिकताएं कहीं से भी मैच नहीं करती। वे कहते हैं कि भारत से प्याज और टमाटर लेना चाहिए, फल लेने चाहिए, जो सस्ता मिलता है, सब लेना चाहिए।
और अपना सामान भारत को भी देना चाहिए. पाकिस्तान द्वारा टमाटर और प्याज ना लेने से हिन्दुस्तान हमें कश्मीर नहीं दे देगा। भारत हमसे सात गुना ज्यादा सेना पर खर्च करता है।
उसकी इकॉनोमी का साइज बहुत बड़ा है। हमारा कोई मैच नहीं है। कराची और लाहौर में जितने विमान जाते हैं, उनसे मुंबई और दिल्ली में उतरने वाले विमान की तुलना कर लें तो सच्चाई पता चल जाएगी। हिन्दुस्तान की आज दुनिया में बहुत इज्जत है। इस पैमाने पर पाकिस्तान कहीं नहीं ठहरता। और अपनी स्थिति के बारे में पाकिस्तान को खुद ही सोचना है, किसी और को नहीं।
वस्तुत मिफ्ताह इस्माइल के इस इंटरव्यू में कई महत्वपूर्ण संकेत हैं, जिनसे भारत भी सबक ले सकता है। भारत के मीडिया को देखिए तो साफ दिखता है कि दोनों देशों के बीच कृत्रिम दुश्मनी को हमेशा बनाए रखना है। साथ ही, लोगों के जेहन में यह बात हमेशा ताजा रखनी है कि पाकिस्तान एक दुश्मन देश है और हमारा उसके साथ कोई रिश्ता नहीं बन सकता। लेकिन, उसी पाकिस्तान में मिफ्ताह इस्माइल जैसी आवाजें भी हैं जो सच को सच की तरह कह रही हैं।
ये सच है की भारत ओर पाकिस्तान दोनो देशों को रक्षा बजट पर अधिक ना खर्च करके शिक्षा ओर स्वास्थ्य पर करना चाहिए.