रांची।आज से करीब 670 साल पहले जबर्दस्त महामारी फैली थी। इसे पश्चिमी देशों में बुबोनिक प्लेग के नाम से जाना जाता है। इस महामारी की चपेट में आने की वजह से लाखों लोगों की मौत हुई थी क्योंकि उस समय इससे मुकाबला करना की कोई दवा या वैक्सिन भी उपलब्ध नहीं थी।
अब कोरोना महामारी को झेलकर निकली दुनिया को पहली बार यह पता चल रहा है कि उस पूर्व की महामारी की वजह से हमारे अंदर जेनेटिक बदलाव हुए थे। इसी वजह से कई लोग इस प्लेग की जानलेवा वायरस से लड़ते हुए जीवित रहे थे।
बाद में इसी बदलाव ने इंसान के अंदर एक नये किस्म की प्रतिरोधक शक्ति का विकास कर दिया है। इस पर हुए शोध के बारे में विस्तार से जानकारी प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका जर्नल नेचर में प्रकाशित की गयी है। इससे पहले इस पर इस किस्म का गहन शोध नहीं किया गया था।
पता चला है कि उस वक्त जो विषाणु इंसानों के लिए जानलेवा बन गये थे, वे अब भी परिवर्तित स्वरुप में विद्यमान है। इस बीच इंसानों की प्रतिरोधक शक्ति इससे लड़ने के काबिल हो चुकी है। इस वजह से इसका हमला होने के बाद भी लोगों को दूसरे किस्म की बीमारी होती है लेकिन अब प्लेग एक महामारी के तौर पर नहीं फैल पायी है। सन 1300 के आस पास पूरी दुनिया में यह रोग फैला था।
अब माना गया है कि उस दौरान मरने वालों ने भी रोग के प्रतिरोधक को विकसित करने की दिशा में जेनेटिक तौर पर योगदान दिया था। इस दौरान प्लेग के विषाणु भी परिवर्तन के दौर से गुजरते रहे थे। इस के दौर का क्रोन बीमारी अथवा रिम्युटोयड आर्थराइटिस इसके नमूने के तौर पर देखा जा सकता है। यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के शोध दल ने इस पर काम किया है। इनलोगों ने इस महामारी से मरे लोगों के सामूहिक कब्र पर जाकर भी जेनेटिक और डीएनए के नमूने एकत्रित किये हैं।
इस बारे में जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के प्रोफसर लूइस बैरेरियो ने कहा कि उस काल में हुई मौतों की वजह से ही हमारी प्रतिरोधक शक्तियां विकसित हो पायी हैं। इस शोध के बारे में लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टिटयूट के विशेषज्ञ जेम्स ली ने कहा है हमारे डीएनए में प्राचीन इतिहास भी शामिल होता है।
इसलिए इस शोध को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है। ली खुद इस शोधदल के हिस्सा नहीं थे। वैज्ञानिकों ने माना है कि इस किस्म की महामारी के दौर में भी इंसान की जेनेटिक संरचना में बदलाव आता है। लेकिन तकनीकी तौर पर इसे प्रमाणित करना संभव नहीं है। वैसे बता दें कि इस प्लेग की महामारी का दौर करीब चार साल तक चला था। वर्ष 1346 से 1350 तक की इस महामारी काल में लाखों लोग मारे गये थे।
जहां पर इस बीमारी से मारे गये लोगों को एक साथ दफनाया गया था, वहां से शोध दल ने जिनोम की जानकारी हासिल की है। इस स्थान पर एकसाथ 206 नरकंकाल पाये गये हैं, जो सभी प्लेग की वजह से मरे थे। वहां की जांच से शोध दल इस नतीजे पर पहुंचा है कि इस महामारी के बाद इंसानों में चार जेनेटिक बदलाव भी हुए हैं। इसी बदलाव की वजह से बाद में इस विषाणु ने अगली पीढ़ी को अपना शिकार बनाने में सफलता नहीं पायी। कोरोना के दौर में इस शोध से अब फिर से इस महामारी के दौरान विकसित होने वाली प्रतिरोधक शक्तियों से इंसान की आतंरिक संरचना में होने वाले बदलाव पर चर्चा होने लगी है।