सुशील उपाध्याय
पाकिस्तान से जुड़ी हुई कोई भी बात बस उतनी ही पुरानी है, जितनी पुरानी घर में मौजूद दादाजी की यादेें। महज 75 साल पहले के इतिहास के पन्नों को उठा कर देखिए तो कई तरह के आश्चर्य घेर लेते हैं।
पाकिस्तान के गठन की घोषणा के बाद भारत ने बाबू श्रीप्रकाश को वहां उच्चायुक्त नियुक्त किया था। वे अपने संभावित दायित्व और कार्यालय की स्थापना संबंधी कामों को देखने के लिए पाकिस्तान की प्रस्तावित राजधानी कराची गए थे। बाबू श्रीप्रकाश का उस वक्त का एक वक्तव्य देखिए तो यकीन करना मुश्किल होगा।
यदि कोई आज इस तरह का वक्तव्य दे दे तो उच्चायुक्त पद से उसकी तत्काल बर्खास्त की हो जाएगी। बाबू श्रीप्रकाश ने कराची में पत्रकारों से कहा कि आजादी की लड़ाई में मोहम्मद अली जिन्ना का बड़ा योगदान है और वे इस लड़ाई में हमारे साथ रहे हैं।
बाबू श्रीप्रकाश के वक्तव्य को आज के हालात के साथ जोड़ कर देखिए तो साफ पता लगता है कि हम एक-दूसरे से कितना दूर आ गए हैं! भारत के मनोनीत उच्चायुक्त केवल यहीं पर नहीं रुके, बल्कि यह तक कह गए कि मोहम्मद अली जिन्ना पर पाकिस्तान के अलावा भारतीय जनता भी भरोसा करती है।
इसलिए उनका पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनना सुखद है। केवल जिन्ना के बारे में ही नहीं, बल्कि उस समय पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाने वाले लियाकत अली खान के बारे में भी लगभग ऐसी ही बातें कही थी।
बाबू श्रीप्रकाश कहते हैं कि लियाकत अली खान सज्जन पुरुष हैं और उनके अपने प्रदेश यानी संयुक्त प्रांत के रहने वाले हैं इसलिए उनके साथ काम करना काफी सहज होगा। लियाकत अली खान का संबंध उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से था।
जब बाबू श्रीप्रकाश इन तमाम बातों का उल्लेख कर रहे हैं तो वे किसी को खुश करने के लिए ये सब बातें नहीं कह रहे थे, वरन उन जड़ों की तरफ इशारा कर रहे हैं जिन्हें भले ही दो हिस्सों में बांट दिया गया था, लेकिन वह एक ही तरह की मिट्टी से घोषित हुई थी। आज भले ही इस बात पर आश्चर्य होता हो, लेकिन प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध है कि लगभग इसी तरह की बातें पाकिस्तान की लेजिसलेटिव असेंबली में बंगाली नेता किरण शंकर राय भी कह रहे थे।
ये वो दौर था जब दोनों तरफ के लोग देश के विभाजन के बावजूद अपने रिश्तों में समानता का तंतु ढूंढते थे, लेकिन फिर वह दौर आया जब समानता की बजाए विरोध के बिंदुओं को ज्यादा प्रमुखता से उभारा जाने लगा और कालांतर में विरोध के यह बिंदु एक स्थाई प्रतिद्वंद्विता और दुश्मनी में बदल गए।
इस बांझ प्रतिद्वंद्विता के अनेक उदाहरण हमारे आसपास फैले हुए हैं। कुछ साल पहले पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर के इलाके में अपना करीब 400 फीट ऊंचा झंडा लगाया।
इस झंडे के सामने भारत के 360 फीट के झंडे की ऊंचाई कम लगने लगी। इसके जवाब में भारत ने और अधिक ऊंचा झंडा
लगातार चुनौती दे दी। पाकिस्तान ने यह झंडा अपने मुल्क की किसी खास पहचान को स्थापित करने के लिए नहीं लगाया, बल्कि उसे भारत के सामने अधिक ऊंचाई पर लिखने की जिद थी और यदि ऐसा नहीं था तो फिर पाकिस्तान को इसी तरह के झंडे ईरान, अफगानिस्तान और चीन की सीमा पर भी लगाने चाहिए थे, जो कभी नहीं लगाए गए।
अब स्थिति यह है कि दोनों देश इन झंडों पर हर साल कई करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं।
यानी वजह, बेवजह चुनौती प्रस्तुत करने का भाव जरूरत से ज्यादा गहरा होता गया है। इस गहराते भाव को बढ़ाने में भारत ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी। अब खबर आई है कि भारत ने अपनी सीमा के पास पाकिस्तान की तुलना में कहीं अधिक ऊंचा झंडा स्थापित किया है।
दोनों तरफ के झंडे ऊंचे और ऊंचे होते जा रहे हैं, जबकि दोनों तरफ के लोगों की जिंदगी की दुश्वारियां किसी सूरत कम होती नहीं दिखती। ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में 23 करोड़ से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी और भुखमरी का शिकार हैं, जो देश की कुल आबादी का 17 फीसद से अधिक हैं। यानी हर छठा व्यक्ति बदहाली में जी रहा है। पाकिस्तान की स्थिति भारत से भी अधिक नाजुक है साल 2022 में आई बाढ़ ने हालात को और मुश्किल कर दिया।
आज वहां हर एक पांचवां आदमी भूखा सो रहा है, लेकिन दोनों तरफ के झंडे ज्यादा बड़े होते जा रहे हैं और सबके बीच यदि बाबू श्रीप्रकाश जैसे लोगों के वक्तव्य इतिहास की किताबों से निकालकर लोगों के सामने रखे जाएं तो लगता है कि झंडों की ऊंचाई भले ही कम रह जाए, लेकिन जेहन का उतना विस्तार जरूर बड़ा हो जाए ताकि हम सच को सच की तरह देख सकें। और सच यही है कि भारत के बंटवारे के बावजूद दोनों देशों को हमेशा ही एक दूसरे की जरूरत है और रहेगी भी। चूंकि बंटवारा कृत्रिम है इसलिए विरोध के आधार भी गढ़े हुए और कृतिम ही हैं।
दोनों देशों के रिश्तों के बीच एक बहुत ही परेशान करने वाला विरोधाभास है। वजह चाहे जो भी हो लेकिन भारत का राजनैतिक नेतृत्व पाकिस्तान के साथ कभी खुले तौर पर और कभी पर्दे के पीछे लगातार बात करता है। इसी तरह दोनों देशों का सैन्य तंत्र एक-दूसरे से लडते हुए भी आपस में संपर्क बनाए रखता है। यही स्थिति डिप्लोमेटिक लेवल पर भी होती है, लेकिन जब आम लोगों के बीच के रिश्ते को मजबूत करने की बात आती है तो वहां हमेशा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को सामने रखकर बंदिश से लगा दी जाती है। और दोनों देश एक-दूसरे की अकादमिक डिग्रियों को अवैध घोषित कर देते हैं। (शुक्र है कि इस आदेश को भूतलक्षी यानी रेट्रोस्पक्टिव लागू नहीं किया गया, वरना पाकिस्तान में में रह रहे हजारों अलीगढ़ी ग्रेजुएट और हिंदुस्तान में रहने वाले लाहौरी ग्रेजुएट अपनी डिग्रियों से हाथ धो बैठते!)
हाल के दिनों में पाकिस्तान की एक्ट्रेस माहिरा खान, जिन्होंने कई भारतीय फिल्मों में काम किया है, उनका एक इंटरव्यू काफी चर्चा में रहा। अपने इस इंटरव्यू में वे कहती हैं कि मेरे अब्बा के पासपोर्ट पर अब भी उनका जन्म स्थान दिल्ली लिखा हुआ है और वे ’दिल्लीवाला’ होने की अपनी इस पहचान के साथ बहुत गहरे तक जुड़े हुए हैं। और वे ही क्यों, खुद जनरल परवेज मुशर्रफ भी तो ’दिल्लीवाला’ पाकिस्तानी हैं।
दोनों देशों के सिनेमा जगत के लोगों के मुंह से ऐसी बातें अब धीरे-धीरे कम सुनाई देने लगी हैं। यह बात अलग है पाकिस्तान के ’परिजाद’ जैसे अनेक टीवी धारावाहिक भारत में इतनी बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं कि उनके सामने पाकिस्तानी दर्शकों की संख्या कम साबित होगी, लेकिन हम चर्चा किस बात की करते हैं और खुश किस बात पर होते हैं! फिलहाल चर्चा इस बात की है कि भारत हंगर इंडेक्स में पाकिस्तान से बहुत नीचे है और पाकिस्तानी मीडिया इस बात को लेकर खुश है कि देखो भारत में कितनी ज्यादा भुखमरी है। जब वे इस बात को प्रचारित करते हैं तो भूल जाते हैं कि ठीक इसी समय पाकिस्तान के सिंध में करोड़ों लोग बाढ़ की तबाही के बाद दाने-दाने को मोहताज हैं, लेकिन साझी चुनौतियों और साझे समाधान की बातें नफरत के बीजों के सामने बहुत बौनी और छोटी लगने लगती हैं।