रांची। नवजात चूहों के दिमाग में ही इंसानी दिमाग के कोष ट्रांसप्लांट किये गये थे। इन कोषों का विकास चूहों के अंदर ही हुआ। इस वजह से दिमाग के अंदर क्या कुछ जटिताएं होती हैं, उसे बेहतर तरीके से समझने का अवसर जेनेटिक वैज्ञानिकों को मिला।
आम तौर पर शरीर का सबसे जटिल अंग होने की वजह से इंसानी दिमाग पर अधिक जानकारी नहीं मिल पायी है और वह ऐसी अवस्था का अंग है, जिससे छेड़छाड़ भी नहीं की जा सकती है। इसलिए चूहों के अंदर जब ऐसे इंसानी दिमागी कोष विकसित हुए तो उन्हें गहराई से समझने और उनके क्रियाकलापों का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधदल ने इस काम को अंजाम दिया है। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले इंसानी चमड़ी के कोषों को हासिल करने के बाद उसे इंसानी दिमाग के अलग अलग कोषों के साथ विकसित किया। इससे वे दिमागी कोष के जैसा ही बन गये जो कॉरटेक्स की शक्ल का बना।
यह इंसानी दिमाग के सबसे बाहरी हिस्सा जैसा है। इसके बाद चूहों के नवजात शिशुओं के दिमाग के अंदर इन कोषों को ट्रांसप्लांट किया गया। इस वजह से ट्रांसप्लांट किये गये कोष इन चूहों के अंदर स्वाभाविक तौर पर विकसित हुए। यह देखा गया कि इन इंसानि कोषों ने चूहों के दिमाग के अंदर करीब एक तिहाई हिस्सा घेर लिया है।
यह पहले से ही पता है कि इंसानी दिमाग के कॉरटेक्स का इलाका हमें अनुभूति, याददाश्त, सीखने की प्रवृत्ति, भावना और तुलनात्मक अध्ययन करना सीखाता है। इस वजह से चूहों के अंदर भी यह इंसानी कोष उनके अंदर न्यूरॉन के स्तर पर संपर्क स्थापित करने में सफल रहे।
इस शोध दल के प्रमुख डॉ सेरेगियू पासका ने बताया कि ऐसा करने का मकसद इंसान के अंदर होने वाली जटिल दिमागी बीमारियों के निदान का रास्ता तलाशना था। वरना अब तक इस दिशा में बहुत अधिक जानकारी अब तक नहीं मिल पायी है। वैसे दिमागी कोष पर ऐसे प्रयोग से पहले ही जेनेटिक वैज्ञानिक दूसरे इंसानी अंगों को उगाने की दिशा में पहल कर चुके हैं।
डॉ पासका ने बताया कि वैसे तो यह काम पहले भी हुआ है लेकिन वह विकसित चूहों पर हुआ था। इस बार नवजातों के साथ यह प्रयोग ऐसा था जिसने इंसानी कोषों को उनके दिमाग के अंदर विकसित होने तथा दिमाग के दूसरे हिस्से तक जुड़ने का मौका प्रदान किया है।
इस कड़ी में वैज्ञानिकों ने एक चूहे के अंदर जो किस्म के कोष प्रतिस्थापित किये। इनमें से एक हिस्सा स्वस्थ्य इंसान के दिमाग का कोष था, जो दिमाग के एक तरफ डाला गया। दूसरी तरफ टिमोथी सिनड्रोम से पीड़ित एक रोगी के दिमागी कोष का हिस्सा डाला गया।
छह महीने के बाद यह देखा गया कि स्वस्थ कोष वाले हिस्से का विकास स्वाभाविक हुआ है जबकि बीमारी वाले कोष के न्यूरॉन बहुत छोटे आकार के बने हैं।
आम तौर पर जीवों पर होने वाले ऐसे प्रयोगों का आलोचना के बीच ही डॉ पासका ने कहा कि यह सभी चूहे अब तक सही सलामत है। इन चूहों के दिमाग पर इंसानी कोष की हलचल से कमसे कम कई जटिल दिमागी रोगों को समझने में अब आसानी होगी तो उनका समाधान भी निकलेगा। वैसे दुनिया के कई अन्य प्रयोगशालाओं में कृत्रिम तौर पर इंसानी दिमाग के कोष को सही तरीके से उगाने का काम भी चल रहा है। जिसका मकसद दिमागी रोगों के निदान का स्थायी समाधान खोजना है।