जो गांधी के ना हुए, हमारे क्या होंगे!


सुशील उपाध्याय।
पाकिस्तानी मूल के प्रोफेसर इश्तियाक अहमद दुनिया के उन गिने-चुने लोगों में से हैं जो भारत-पाकिस्तान के रिश्ते को भावुक हुए बिना तार्किक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। जिन्ना पर लिखी गई उनकी किताब केवल कायदे आजम के बारे में ही नहीं, बल्कि महात्मा गांधी के बारे में भी बहुत कुछ कहती और बताती है। (इस किताब पर वैली ऑफ वर्ड्स, देहरादून के वर्ष 2021 के समारोह में भी चर्चा हो चुकी है।) गांधी जयंती के आसपास बहुत सारे लोगों के जेहन में यह प्रश्न होता है कि जिस गांधी को इसलिए मार दिया जाता है कि वह मुसलमानों और पाकिस्तान के हिमायती हैं, आखिर उस गांधी के बारे में पाकिस्तान क्या सोचता है!
यह देखना काफी अफसोसजनक है कि पाकिस्तान के स्कूली पाठ्यक्रम और विश्वविद्यालय स्तर की किताबों (ये सभी सामग्री अब इंटरनेट/ऑनलाइन मीडिया पर उपलब्ध हैं।) में गांधी जी को हिंदुओं का नेता बताया गया है, जो बेहद चालाक, कुटिल हैं और मुसलमानों को भ्रमित करके उन्हें हिंदुओं के अधीन रखने की साजिश करते दिखाई देते हैं। वस्तुतः भारतीय इतिहास में गांधी जी इस मामले में बहुत अनोखी शख्सियत हैं कि हर कोई उनका विरोध करता दिखाई देता है। पाकिस्तान के हिमायती उनका विरोध करते हैं अंग्रेज उन्हें बेहद टेढ़ा आदमी मानते हैं कट्टर हिंदू, उन्हें हिंदुओं के दुश्मन की तरह देखते हैं, कांग्रेस के भीतर का उग्र तबका उन्हें नापसंद करता है। मुसलमानों का एक बड़ा फिरका उन्हें कट्टर हिंदू मानता है और मौजूदा दौर में भी ऐसी कोशिशें लगातार दिखाई देती हैं जब उन्हें विलेन की तरह प्रस्तुत किया जाता है।
मोटे तौर पर यह सच है कि पाकिस्तान दुनिया के उन इक्का-दुक्का देशों में से एक है, जहां गांधी जी को न महात्मा माना जाता है, ना ही विचारक और ना ही कोई राष्ट्र पुरुष। गांधी वहां पूरी तरह त्याज्य हैं। उनकी किसी भी स्तर पर कोई स्वीकार्यता नहीं है। पाकिस्तान ने अपने इतिहास से उन सब चीजों को हटाने की कोशिश की है जो किसी भी तरह से गांधी जी की मौजूदगी को प्रमाणित करती हों। बंटवारे के समय पश्चिमी पाकिस्तान में ऐसी अनेक जगह थी जो गांधीजी के नाम पर थी या वहां उनकी मूर्ति लगी हुई थी। लाहौर और कराची में ऐसे कई ठिकाने थे जो गांधी जी की स्मृति का हिस्सा थे, लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद कराची के कंपनी बाग का नाम बदल दिया गया, चैंबर ऑफ कॉमर्स से उनका नाम हटा दिया गया। कुछ अतिवादियो ने गांधी जी की प्रतिमा को तोड़ दिया। बाद में इस प्रतिमा को भारत के उच्चायोग ने ठीक करा कर अपने परिसर में स्थापित किया।
जानकार बताते हैं कि अब पाकिस्तान में दो ही जगह ऐसी हैं, जहां गांधी जी की मूर्ति मौजूद है। इनमें से एक जगह भारत का उच्चायोग है और दूसरी जगह इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तान का हिस्ट्री म्यूजियम है। यहां जिन्ना और गांधी जी को एक जगह पर एक-दूसरे के साथ बहस करते दिखाई गया है। इस जगह पर भी गांधी जी सारे भारत के नेता नहीं, बल्कि हिंदुओं के नेता के तौर पर प्रस्तुत किए गए हैं। प्रो. इश्तियाक अहमद अपनी किताब में बताते हैं कि जो व्यक्ति नए बने पाकिस्तान में हिंदुओं और शेष भारत में मुसलमानों की जान बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए था, उसे पाकिस्तान के भीतर मुसलमानों का विरोधी साबित किया जाना न केवल दुखद है, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत भी है। असल में पाकिस्तान के भीतर गांधी का विरोध तर्कों और तथ्यों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह विरोध पाकिस्तान की सत्ता-दृष्टि को मजबूती प्रदान करता है।
हालांकि, अब वह पीढ़ी वजूद में नहीं है जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी थी या इस लड़ाई को देखा था। अब दोनों देशों में आजादी के बाद पैदा हुए लोग ही सत्ता और व्यवस्था के केंद्र में हैं इसलिए कई बार नई पीढ़ी उस इतिहास से रूबरू होने की कोशिश करती है जो वास्तव में सच है। भले ही जिन्ना और गांधी जी वैचारिक रूप से एक-दूसरे से बहुत दूर थे, लेकिन महात्मा गांधी की शहादत पर जिन्ना का वक्तव्य यह बताता है कि दोनों के बीच में निजी कटुता नहीं थी। तब जिन्ना ने कहा था, ‘‘गांधी के ऊपर हुए बेहद कायराना हमले के बारे में जानकर मैं बेहद दुखी हूं। हमारे राजनीतिक विचारों में चाहे जितना विरोध रहा हो, लेकिन यह सच है कि वे हिंदू समुदाय में पैदा होने वाले महानतम नेताओं में से एक थे। इस घटना से मैं काफी दुखी हूं। गांधी की हत्या से भारत को जो नुकसान हुआ है। उसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकेगी।’’
यह बात अपने आप में इतिहास का इतना बड़ा विरोधाभास है कि एक तरफ गांधी जी को हिंदुओं का नेता बताया जाता रहा है और दूसरी तरफ उनके अपने लोगों द्वारा उन्हें मुसलमानों के हिमायती के तौर पर प्रस्तुत किया जाता रहा है। देश के बंटवारे के बाद गांधी जी इस जिद पर अड़े हुए थे कि ‘‘मैं लाहौर जाना चाहता हूं। मुझे वहां जाने के लिए किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत नहीं है। मुझे मुसलमानों पर भरोसा है। वे चाहे तो मुझे मार सकते हैं। पाकिस्तान की सरकार मेरे आने पर कैसे रोक लगा सकती है ? अगर सरकार मुझे नहीं आने देगी तो उसे मुझे मारना होगा।’’ प्रोफेसर इश्तियाक अहमद कहते हैं कि पाकिस्तान में गांधी जी को लेकर दो तरह की छवि देखने को मिलती है। पाकिस्तान के हिस्से में आए पंजाब प्रांत में गांधी जी को एक कुटिल व्यक्ति के रूप में देखा जाता है और सरकार ने भी उनकी इसी छवि को बनाए रखने की हर संभव कोशिश की है। यहां की किताबों में और यहां तक कि इतिहासकारों ने भी गांधीजी के कामों की इरादतन अनदेखी की है। उनकी निगाह में गांधी मुसलमानों के खिलाफ था, पाकिस्तान का दुश्मन था, मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहता था, मूर्तिपूजक था, मुसलमानों को भारत माता की पूजा के लिए मजबूर करना चाहता था और गांधी पक्का हिंदू बनिया था।
प्रोफेसर इश्तियाक अहमद के मुताबिक, सच यह है कि यदि उस वक्त भारत में गांधी जी जैसे नेता न होते तो मुसलमानों को और डरावनी स्थितियों का सामना करना पड़ता। इसके साथ दूसरा सच यह है कि यदि पाकिस्तान में गांधी जी जैसा कोई नेता होता तो यहां के हिंदुओं को बदतर हालात का सामना नहीं करना पड़ता। जहां तक गांधी जी और कायदे आजम की तुलना की बात है तो दोनों के बीच में कोई भी ऐसा सामान आधार मौजूद नहीं है, जिसे सामने रखकर दोनों की तुलना की जा सके। बंटवारे के वक्त जब गांधी जी देशभर में पैदल घूम कर दंगे रुकवाने की कोशिश कर रहे थे, उस वक्त मोहम्मद अली जिन्ना खुद को गवर्नर जनरल बनवाने और पाकिस्तान की नई सरकार के गठन की तैयारी में लगे हुए थे। किसी भी स्तर पर ऐसा नहीं दिखता कि उन्होंने पाकिस्तान में हो रहे दंगों को रोकने या उन्हें नियंत्रित करने की कोई सार्थक कोशिश की हो।
गांधी जी की जैसी छवि पाकिस्तान के पंजाब में है, वैसी छवि खैबर पख्तूनख्वा मैं नहीं है। वहां हमेशा ही गांधी के प्रति अपनेपन का भाव रहा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि गांधी जी और सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान एक दूसरे के प्रति बहुत गहरे आदर का भाव रखते थे। इस सूबे में यह भाव किसी ने किसी स्तर पर अब भी मौजूद है। हालांकि इस वक्त हिंदुस्तान के भीतर गांधीजी को लेकर जिस तरह के सवाल उठाए जाते हैं और उन्हें कई बार राक्षस के चेहरे वाला (कोलकाता में हिंदू महासभा के पंडाल में महिषासुर को गांधी जी के चेहरे जैसा दर्शाया गया, बाद में विरोध होने पर इसे बदला गया।) दिखाया जाता है, उसे देखकर कुछ पाकिस्तानी जरूर सोचते होंगे कि जब भारत के लोगों ने अपने बाबा-ए-मुल्क को नहीं बख्शा तो भारत के अखंड रहने पर वे मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार करते? यह तर्क उन तमाम लोगों को राहत देता है जो यह कहते हैं कि अच्छा हुआ देश का बटवारा हो गया, वरना कोई आधी लंगोटी वाला हिंदू मुसलमानों के दरवाजे पर खड़ा होकर पेशाब कर रहा होता।

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