नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड मूल की महिलाओं को सरकारी सेवा में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग में मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण पर भी रोक लगा दी है। न्यायालय के इस आदेश से सरकार को एक महीने में यह दूसरा बड़ा झटका लगा है।
इससे पहले न्यायालय ने 24 अगस्त को अनारक्षित वर्ग में भी महिलाओं के लिए भी 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इस मामले को उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी सत्य देव त्यागी की ओर से चुनौती दी गयी।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की युगलपीठ में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उच्च न्यायालय ने पिछले महीने 24 अगस्त, 2022 को एक आदेश जारी कर सरकार के 24 जुलाई, 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी जिसमें उत्तराखंड मूल की महिलाओं के लिये सरकारी सेवा में क्षैतिज आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि उच्च न्यायालय के आदेश के चलते उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने 224 पदों की प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम में संशोधन कर दिया लेकिन आरक्षित वर्ग के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण को यथावत रख दिया। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि यह उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की ओर से इस पर भी रोक लगाने की मांग की गयी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता के अनुसार अदालत ने यूपीएससी के इस कदम पर भी रोक लगा दी है और यूकेपीएससी को 11 अक्टूबर तक जवाब देने के निर्देश दिए हैं। इस मामले में 11 अक्टूबर को सुनवाई होगी। गौरतलब है कि इस साल पवित्रा चौहान और अन्य की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर क्षैतिज आरक्षण संबंधी 24 जुलाई, 2006 के शासनादेश को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि यूकेपीएससी ने पिछले साल अगस्त में 224 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की थी। गत तीन अप्रैल, 2022 को परीक्षा संपन्न हुई और 26 मई 2022 को परीक्षा परिणाम घोषित कर कट आफ जारी कर उन्हें मुख्य परीक्षा से बाहर कर दिया। राज्य सरकार का यह कदम असंवैधानिक है और संविधान की धारा 14, 16 व 19 और 21 का उल्लंघन है।