बैकडोर भर्ती : आरोपियों की खैर नहीं

नियुक्तियों में गड़बड़ी मामले में उत्तरखंड के युवाओं में बढ़ रहा आक्रोश
जांच के लिए गठित वर्तमान कमेटी लीपापोती के सिवाय और कुछ नहीं करेगी

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग एवं विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी से भाजपा एक बड़ा तबका काफी आक्रोशित है। यह वह तपका है जिसकी मंशा वाकई जीरो टॉलरेंस है। इसके अलावा संघ भी काफी आहत है। संघ ने तो मेरठ में बैठक भी बुलाई और जो लोग इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त हैं, उन पर सख्त कार्रवाई करने का फैसला भी कर लिया है।

हां, यह जरूर है कि कम से कम विधानसभा में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी प्रकरण में देर-सबेर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और धामी सरकार में मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल पर गाज गिरना लगभग तय है। वहीं, संघ भी इससे अछूता नहीं रहा है। क्षेत्र प्रचारक युद्धवीर पर भी इसकी आंच आई है। युद्धवीर भी इससे बच नहीं सकते हैं। प्रदेश भाजपा के महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार भी शक के दायरे में हैं।
जानकारी के मुताबिक ये ऐसे लोग हैं जो महत्वपूर्ण पद पर हैं और अपनों की नियुक्तियां विधानसभा में करवाने में कामयाब रहे हैं। हालांकि, इसके अलावा भी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं जिन्होंने अपनों की एंट्री विधानसभा में करवाई है। वर्तमान विधायक सभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने जांच के आदेश दिए हैं।

पर यह जांच स्थानीय स्तर पर की जा रही है। उत्तराखंड के प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि जांच के लिए गठित वर्तमान कमेटी लीपापोती के सिवाय और कुछ नहीं करेगी। माना जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष ऋतू खंडूड़ी पर भी स्थानीय स्तर पर जांच का दबाव था इसलिए उन्होंने इस तरह का कदम उठाया है। विधानसभा में नियुक्तियों में धांधली में कई दृश्य स्पष्ट है। इसे समझने के लिए जांच की आवश्यकता ही नहीं है। धांधली हुई है और इसमें गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेम चंद्र अग्रवाल का कार्यकाल विशेष रूप से शामिल है।
कुंजवाल और अग्रवाल ने तो शुरुआती दौर में स्वीकार भी लिया है कि नियुक्तियां करना उनके अधिकार क्षेत्र में है। अब नियम क्या हैं, यह तो शीर्ष एजेंसी जब जांच करेगी तब ही पता चलेगा। भाजपा का एक वर्ग चाह रहा है कि इस पूरे एपिसोड की गहन छानबीन की जाए। इसको हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। पर आखिर पड़ताल कौन कराए। क्योंकि इसमें तो सभी दिग्गजों के अपने अपने लोगों की नियुक्तियां हुई है।

लेकिन जिस ढुलमुल गति से जांच कराई जा रही है उससे ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन भाजपा और संघ का शीर्ष नेतृत्व विधानसभा में अवैध ढंग से हुई इन नियुक्तियों से काफी क्षुब्ध हैं। क्योंकि संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को वर्ष 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव दिखाई पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत कभी नहीं चाहेंगे कि दोषी को बचाया जाए। रही कारण है कि संघ ने मेरठ बुलाई और संलिप्तों को फटकारा भी है। हां, एक्शन भी होगा। इसमें कोई शक नहीं है।

ठीक इसी तरह से अजेय कुमार पर कार्रवाई की बात चल रही है। धामी मंत्रिमंडल में शामिल प्रेम चंद्र अग्रवाल के नाम की भी चर्चा है कि इन सभी को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के भी अपने लोगों की नियुक्तियां विधानसभा में हुई है। असल में इन नियुक्तियों को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी कहीं न कहीं ऊहापोह में फंसा हुआ है।

उसके समक्ष कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है कि वह कहां-कहां से पहले इसमें संलिप्त दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखाए। वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं होता तो संभव था कि सारे मामले दबा दिए जाते या आनन फानन में जांच कमेटी बनाकर रफा दफा किए जाते। चूंकि विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों की गूंज से पूरा देश दहल गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी नाराज हैं। इसलिए एक्शन होगा। पर इस मामले में अब और ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए। यदि वाकई कोई दोषी है तो दंड तो मिलना ही चाहिए।

उम्मीद भी जताई जा रही है भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व एक्शन के पक्ष में है। क्योंकि यदि बड़ा एक्शन नहीं लिया गया तो वर्ष 2024 में मतदाताओं को भाजपा क्या बताएगी। क्योंकि इसका सबसे ज्यादा असर युवा वर्ग पर पड़ा है। बीते लोकसभा और विधानसभा चुनावों में युवाओं ने भाजपा का जमकर समर्थन किया और यह बात भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पता है।

ऐसे में यदि युवा वर्ग भाजपा से नाराज हो गया तो पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। आज युवा नौकरी की तलाश में जहां तहां भटक रहे हैं और उनका हक कुछ भाजपाई डकार रहे हैं। इससे युवाओं में असंतोष फैलेगा। इसलिए भाजपा हाईकमान एक्शन के मूड में है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि बड़े बड़े घाघ दिग्गजों पर कब गाज गिरती है।

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