सुशील उपाध्याय
नयी दिल्ली। लाइन ऑफ कंट्रोल पर रात भर बारिश होती रही। मुनावर नदी में पानी उफान पर दिख रहा है, उसके किनारे फैल गए हैं और पानी की गति भी बीते दिनों की तुलना में ज्यादा है। बारिश के बावजूद सेना का कोई काम नहीं रुकता। बॉर्डर पर पेट्रोलिंग के लिए टीमें रवाना हो गई हैं, सुरक्षा चैकियों पर खाने पहुंचाने की तैयारी चल रही है। सब कुछ गतिमान है, लेकिन सब कुछ स्थिर जैसा। मेरे अफसर मित्र भी एक उच्च स्तरीय मीटिंग के लिए ब्रिगेड मुख्यालय चले गए हैं। उनके संकेतों से पता चला है कि कोई महत्वपूर्ण लीड मिली है, लेकिन मेरे साथ विवरण साझा नहीं किया जा सकता। वे अपने दो अधीनस्थ अफसरों को जिम्मा सौंप गए हैं कि मैं उनके साथ बॉर्डर पर सेना के काम करने का ढंग और उनकी चुनौतियों को समझ सकूं। दोनों अफसर इतने अधिक ऊर्जावान और फुर्तीले हैं कि उनके साथ कदम ताल मिलाए रखना मुश्किल हो रहा है।
बताया गया कि हम लोगों को मुनावर नदी के साथ-साथ जाने वाली सड़क, जोकि पगडंडी जैसी है, उससे गुजरना है। यह हर तरफ से एक खुला हुआ इलाका है इसलिए सभी ने बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट पहन लिए हैं। हेलमेट और जैकेट का वजन 5-6 किलो से ज्यादा है। इसे पहन कर जब बख्तरबंद गाड़ी में बैठते हैं तो दम घुटने जैसा एहसास होता है, लेकिन मोर्चे पर मौजूद अफसरों और फौजियों के लिए यह लगभग वैसा ही है जैसे कि हम सब रोजमर्रा की जिंदगी में कोट या जैकेट पहन कर बाहर निकलते हैं। कुछ देर की यात्रा के बाद इस सेक्टर के सबसे ऊंचे पॉइंट पर पहुंुच गए। उसके नीचे बंकर है और ऊपर की तरफ बुलेट प्रूफ शीशे का एक बड़ा स्ट्रक्चर बना हुआ है। वस्तुतः यह पूरा ढांचा ही बुलेट प्रूफ है। इसके बाहर की तरफ गोलियों के अनेक निशान मौजूद हैं। यहां किस जगह पर बैठे रहना है और कहां खड़े होना है, इसके बहुत स्पष्ट नियम-कायदे बनाए गए हैं ताकि दुश्मन की अनामंत्रित गोली किसी की जान ना ले ले।
इस ठिकाने पर पाकिस्तान की सुरक्षा चैकियों, वहां मौजूद फौजियों, उनके पास उपलब्ध हथियारों का इतना बारीक विवरण दर्ज है कि लगाता है, जैसे किसी ने उस तरफ से प्रामाणिक डाटा भेजा हो। मेरे जेहन में सवाल है कि क्या उनके पास भी हमारे बारे में इतना ही विवरण होगा। दोनों अफसर मेरी बात का जवाब एक हल्की-सी मुस्कुराहट में देते हैं क्योंकि उन्हें ठीक से पता है कि मुझे क्या बताया जाना है और क्या नहीं बताया जाना है। पर, मेरा दिमाग कहता है कि उनके पास भी ऐसा ही विवरण होगा क्योंकि दोनों तरफ का इंटैलीजेंस का जाल काफी मजबूत है। नई टेक्नोलाॅजी ने भी गोपनीय सूचनाओं को एकत्र करने में बड़ी सहायता मुहैया कराई है।
फिलहाल दोनों अफसर बारिश से पैदा हुई स्थितियों को लेकर थोड़े चिंतित हैं क्योंकि भारत की एक पोस्ट मुनावर नदी के पश्चिम में है। नदी में पानी के बढ़ाव के बाद पश्चिम में मौजूद पोस्ट तक कोई आकस्मिक मदद पहुंचाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। साथ ही, तेज बारिश और नदी में पानी बढ़ने से दुश्मन फायदा उठाने की कोशिश करता है। सीधी-सी बात है कि सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा अलर्ट रहना होगा। पाकिस्तान की फितरत है कि वो असामान्य मौसमी परिस्थितियों का लाभ उठाने की कोशिश करता है। ऐसे कोशिशों को कश्मीर में अक्सर ही देखा जा सकता है। सामने खुले मैदान को देखकर मैं बार-बार इस रोमांच का शिकार हो रहा हूं कि यदि भारत इस पूरे इलाके पर कब्जा कर ले तो उसमें क्या दिक्कत है ? चूंकि मेरा दिमाग किसी फौजी की तरह ट्रेंड नहीं है इसलिए मुझे हर चीज जरूरत से ज्यादा उत्साहित कर रही है, लेकिन जब पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इस इलाके पर कब्जा करने की राह में मौजूद सैन्य और तकनीकी पहलू पता चले तो मेरी इच्छा ने अपनी पूर्णता से पहले ही दम तोड़ दिया।
दोनों अफसरों ने बताया कि उस तरफ पाकिस्तान की फौज को पहाड़ियों की ओट हासिल है। ऐसे में यदि भारतीय फौज आगे बढ़ती है तो वह खुले मैदान में दुश्मन का शिकार बन सकती है। यह स्थिति लगभग वैसी होगी जैसे कि कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर हुई थी। दुश्मन पहाड़ पर मौजूद था और भारतीय सैनिक नीचे की तरफ से हमले का मुकाबला कर रहे इसलिए फौज का पूरा जोर इस बात पर रहता है कि अपने नियंत्रण वाले इलाके का ज्यादा बेहतर और प्रभावपूर्ण ढंग से प्रबंधन करे। साथ ही, दुश्मन की किसी भी हरकत का सही समय पर कड़ा जवाब दे सके। (हालांकि, भारत नीतिगत स्टैंड के कारण भी कभी अपनी तरफ से लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करने का प्रयास नहीं करता।) पर ध्यान रहे, यह सब किसी कंप्यूटर नियंत्रित एक्टिविटी की तरह नहीं हो सकता। कब, कौन-सी और कैसी परिस्थितियां उपस्थित होंगी, उन्हें सामने रखकर ही फैसला करना होता है, दुश्मन का दिमाग पढ़ना होता है और इससे भी बड़ी बात यह है कि अपने दिमाग को इतना तेज रखना होता है कि वह दुश्मन की जेहनी काबिलियत से आगे निकल जाए। सच यही है कि बाॅर्डर केवल गोलियों और बंदूकों से ही सुरक्षित नहीं होता। दुश्मन से निपटने के लिए गोली से कहीं ज्यादा जरूरत बेहतरीन दिमागों की होती है। (ये संगत का असर है कि मैं भी पाकिस्तान के लिए बार बार दुश्मन संज्ञा का प्रयोग कर रहा हूँ, जबकि किसी लेखक के लिए ऐसे प्रयोग की कोई बाध्यता नहीं है. )
इस सिक्योरिटी पोस्ट के ठीक सामने नदी के उस पार भारत की पोस्ट पर तिरंगा लहरा रहा है। उससे कुछ दूरी पर है पाकिस्तान का झंडा दिखता है। इस तरफ से दोनों झंडों के बीच बहुत ज्यादा दूरी नहीं दिख रही है, लेकिन यह अनुमान एक भ्रम जैसा है। दोनों झंडों के बीच वास्तविक दूरी काफी अधिक है, लेकिन रोचक बात यह है कि इधर के फौजियों की आवाजें उधर और उधर के फौजियों की आवाजें इधर सुनी जा सकती हैं। कभी-कभी गालियां भी दी या ली जाती हैं और एक-दूसरे पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए उनकी गोपनीय सूचनाओं को सार्वजनिक तौर पर बता दिया जाता है। मसलन, एडवांस पोस्ट का किस अफसर ने दौरा किया और कौन-से अफसर को कहां स्थानांतरित किया गया है।
देश के आजाद होने से पहले नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ का इलाका जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा था। तब इस इलाके के कस्बों को सड़कों से जोड़ा गया था। उन सड़कों के अवशेष नियंत्रण रेखा के उस पार भी दिखाई देते हैं। ध्वस्त हुआ पुल बताता है कि कभी कोई सेतू था, रिश्तों का और उम्मीदों का। लेकिन, अब भग्न अवशेष हैं। पाकिस्तान के नियंत्रण वाले चंब (छंब) कस्बे में एक पुराना शिव मंदिर है। इस शिव मंदिर के बारे में हाल ही में पाकिस्तान के एक यूट्यूबर ने एक स्टोरी फाइल की। इसके जरिये यह बताने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान और पाकिस्तानी फौज का कैरेक्टर दूसरे धर्मों के प्रति इतना अधिक उदार और संवेदनशील है कि मुस्लिम देश होते हुए भी चंब (छंब) कस्बे के शिव मंदिर को हर तरह से सुरक्षित रखा गया है। और यहां जो हिंदू परिवार हैं, उन्हें मंदिर में पूजा करने की पूरी आजादी। क्या सच में ऐसा होगा ? इसके जवाब में दोनों फौजी अफसर बताते हैं कि ये एक प्रोपेगेंडा टेक्निक होती है, जिसके जरिए कोई देश या सेना इमेज बिल्डिंग की कोशिश करती है। मुझे दोनों अफसरों के तर्क दमदार लगे और यह बात भी समझ में आई कि बॉर्डर और नियंत्रण रेखा के इलाके में किसी भी तरह की वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी का दूसरे पक्ष द्वारा किस तरह उपयोग किया जा सकता है।
यहां आसपास कई चीजें एक साथ चल रही है, फाइलों का मूवमेंट चल रहा है, हथियारों, वाहनों को भी आते जाते देखा जा सकता है और बंकर के किनारे पर बने किचन से आने वाली खाने की खुशबू को भी साफ महसूस किया जा सकता है। इसके साथ मैं अपनी उस बेचैनी को भी महसूस कर पा रहा हूं जो बुलेट प्रूफ शीशे के बाहर खड़े होकर खुली हवा में सांस लेने को आतुर है, लेकिन ऐसा फिलहाल तो संभव नहीं है। शायद निकट भविष्य में दोनों देशों का पॉलिटिकल और मिलिट्री नेतृत्व इस बात को समझ पाए कि हमें बंदूकों, टैंकों के सुरक्षा-साये से कहीं अधिक जरूरत मुक्त हवा की होती है। नदी सतत रूप से बह रही है, लेकिन आप इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि सिर और शरीर पर बुलेट प्रूफ कवच के बिना इसके किनारों पर खुले ढंग से चहल-कदमी कर पाएं।
मनावर नदी के पूर्वी हिस्से में मौजूद सुरक्षा चैकियों को आपस में जोड़ने वाली सड़क के पास में कुछ फौजी एक पूजा स्थल का निर्माण कर रहे हैं। यह पूजा स्थल भारतीय फौज के चरित्र का सर्वाधिक प्रामाणिक प्रतीक है। मंदिर की दीवारों में ईट लगाने वाला भी फौजी है, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और पूजा करने वाला भी फौजी है, भंडारे का प्रसाद बनाने वाला भी फौजी है और विभिन्न धर्मों की पूजा के बीच समन्वय स्थापित करने वाला भी फौजी ही है। मंदिर में एक तरफ गुरु ग्रंथ साहब मौजूद हैं और ठीक सामने की तरफ भगवान के विग्रह उपस्थित हैं। इसी परिसर के दूसरे हिस्से में नमाज पढ़ने की व्यवस्था की गई है। यकीनन, यहां कोई टकराहट नहीं है। टकराहट के सभी सूत्र और उनका उत्स सीमा के उस पार है। बारिश फिर शुरू हो गई है। फिर भी नदी बेफिक्र बह रही है। और बहे भी क्यों न, आखिर प्रकृति तो किसी कृत्रिम बंधन को स्वीकार नहीं करती चाहे वो सीमा किसी ने भी क्यों न बनाई हो।