विस की नियुक्तियों की जांच हाईकोर्ट के जज की निगरानी में कराने की मांग
नियमावली में निर्धारित प्रक्रिया है, इसमें कहीं भी विशेषाधिकार का मामला नहीं
देहरादून। भाकपा (माले) ने विधानसभा अध्यक्ष से राज्य गठन के बाद अब तक विधानसभा सचिवालय में हुई नियुक्तियों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच, किसी राज्य से बाहर की एजेंसी से, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में कराए जाने का आदेश देने की मांग की है।
माले के गढ़वाल सचिव इेंश मैखुरी ने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा है कि नियुक्तियों से जुड़ी जिस तरह की अर्जियां सामने आई हैं, उनसे यह संदेह और गहरा होता है कि इन नियुक्तियों में पारदर्शिता का नितांत अभाव रहा है और यह मनमाने तरीके से की गयी हैं।
दो पूर्व विस अध्यक्षों प्रेम चंद्र अग्रवाल और गोविंद सिंह कुंजवाल ने स्पीकर का विशेषाधिकार बताते हुए बड़ी संख्या में नियुक्तियां बिना प्रतियोगी परीक्षाए कराए करना स्वीकारा है।
इेंश मैखुरी ने कहा कि नियुक्ति करने को अध्यक्ष का विशेषाधिकार बताना, सरासर गलत बयानी है। विधानसभा में नियुक्तियों के लिए-उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 है। इस नियमावली में 2015 और 2016 में संशोधन हुए, इस नियमावली की धारा 5 में पदमाप निर्धारण समिति की व्यवस्था है।
इेंश मैखुरी ने कहा कि नियुक्ति करने को अध्यक्ष का विशेषाधिकार बताना, सरासर गलत बयानी है। विधानसभा में नियुक्तियों के लिए-उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 है। इस नियमावली में 2015 और 2016 में संशोधन हुए, इस नियमावली की धारा 5 में पदमाप निर्धारण समिति की व्यवस्था है।
पदमाप समिति की अनुशंसा और वित्त विभाग से परामर्श के बाद अध्यक्ष , पदों बढ़ने या घटाने का निर्णय कर सकते हैं। यह नियमावली में निर्धारित प्रक्रिया है, इसमें कहीं भी विशेषाधिकार का मामला नहीं है।
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 की धारा 6 में कहा गया है कि नियुक्तियां या तो सीधी भर्ती या पदोन्नति अथवा सेवा स्थानांतरण, प्रतिनियुक्ति एवं विलीनीकरण द्वारा की जाएंगी। तदर्थ भर्ती का कोई प्रावधान ही नहीं है।
उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) की नियमावली 2011 की धारा 6 में कहा गया है कि नियुक्तियां या तो सीधी भर्ती या पदोन्नति अथवा सेवा स्थानांतरण, प्रतिनियुक्ति एवं विलीनीकरण द्वारा की जाएंगी। तदर्थ भर्ती का कोई प्रावधान ही नहीं है।
जबकि जानकारी के अनुसार विधानसभा में अधिकांश भर्तियां तदर्थ ही की गयी हैं। यह नियमावली का सीधा उल्लंघन है। पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का बयान आया है कि उन्होंने योग्यता के अनुसार अपने बेटे और बहू को विधानसभा में नियुक्ति दी। उनके बयान से स्पष्ट है कि विधानसभा में निर्धारित नियुक्ति प्रक्रिया की अवहेलना करके, मनमाने तरीके से नियुक्ति दी गयी है। अगर ऐसा न होता तो पूर्व अध्यक्ष कुंजवाल स्पष्ट करते कि उनके बेटे और बहू ने प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर नियुक्ति पायी है।