अगरतला । त्रिपुरा के कृषि विशेषज्ञों ने इस साल मानसून से पहले हुई बारिश के कारण उत्पादन के नुकसान की आशंका जताते हुए किसानों को ‘फसल चक्र’ स्थानीय जलवायु के अनुसार बदलने की सलाह दी है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में मार्च और जुलाई के बीच हुई असामान्य वर्षा ने फसल उत्पादन को प्रभावित किया है, हालांकि किसानों को मिश्रित कृषि पद्धतियों के कारण ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।
मॉनसून से पहले हुई वर्षा ने जहां असम और त्रिपुरा के मैदानी और निचले इलाकों में ग्रीष्मकालीन सब्जी को क्षतिग्रस्त किया, वहीं पूर्वोत्तर के पहाड़ी व ढलान वाले इलाकों में खेती में सहायता की।
मानसून से पूर्व हुई भारी बारिश से धान के खेतों को अमन और सीड बेड के लिए तैयार करने में भी मदद मिली, हालांकि असम में लंबे समय बाढ़ के कारण किसानों के सभी प्रयास असफल रहे। लगातार बारिश के कारण आई बाढ़ से अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फसलों जैसे भिंडी, लौकी, ककड़ी, मिर्च और टमाटर का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
अरुणाचल प्रदेश में जून महीने के दौरान असामान्य रूप से उच्च वर्षा (सामान्य से 64 प्रतिशत) धान की खेती के लिए नुकसान दायक साबित हुई। मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, पूर्वोत्तर की करीब 20-25 प्रतिशत वार्षिक बारिश प्री-मानसून के दौरान होती है लेकिन इस साल प्री-मानसून में यह 62 प्रतिशत से अधिक थी जो पिछले 10 वर्षों में सबसे ज्यादा है।
असम कृषि विश्वविद्यालय में कृषि मौसम विज्ञान विभाग के डॉ राजीव लोचन डेका के अनुसार, कृषि भूमि के जलमग्न होने से असम के बड़े हिस्से में गर्मियों की फसलें पूरी तरह से नष्ट हो गईं, जिससे क्षेत्र की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
डॉ डेका ने कहा, ‘‘असम कृषि विभाग ने उन जगहों पर सामुदायिक नर्सरी स्थापित करने की पहल की है जहां रणजीत सब-1, बहादुर सब-1, स्वर्ण सब-1, जलाश्री, जलकुवरी जैसी चावल की प्रजातियां बोई गयी हैं जो जलमग्न होने से प्रभावित नहीं होतीं।
उन्होंने कहा, ‘‘अगस्त में बाढ़ या सूखे जैसी स्थिति को देखते हुए, हमने कम अवधि के चावल की किस्मों जैसे लुइट और दिसांग की फसल लगाने की सलाह दी है, जिन्हें सितंबर के पहले सप्ताह तक उपज में गिरावट के जोखिम के बिना प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
आईसीएआर त्रिपुरा के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (जीकेएमएस) के तकनीकी अधिकारी धीमान दासचौधुरी के अनुसार, राज्य में मानसून से पहले हुई वर्षा लगभग 11 प्रतिशत अधिक थी जो सब्जियों के लिए नुकसानदेय है और धान की पौध उगाने के लिए अच्छी है।
दासचौधरी ने बताया कि त्रिपुरा में अब तक लगभग 25 प्रतिशत से भी कम बारिश होने से धान की खेती करने वालों के लिये समस्या खड़ी हो गयी है। मानसून में कम बारिश से सब्जियों की पैदावार और अच्छी खेती में मदद मिलती है।
उन्होंने कहा कि पहले पूर्वोत्तर के किसान मौसम के मिजाज को समझने के लिए अपने पारंपरिक ज्ञान पर निर्भर थे और अब भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की एक पहल जीकेएमएस ने धीरे-धीरे इस ज्ञान को आधुनिक और वैज्ञानिक बना दिया है।
अब, इस क्षेत्र के कम से कम 10 लाख किसान सीधे जीकेएमएस से जुड़े हुए हैं, जिससे वे सही समयानुसार मौसम अलर्ट प्राप्त कर रहे हैं जो कृषि उपज के नुकसान को कम करते हैं।