न्यायालय की बड़ी बेंच सजा के निलंबन और जुर्माने पर रोक जैसे अहम मामले में करेगी फैसला

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की बड़ी बेंच सजा के निलंबन और जुर्माने पर रोक जैसे अहम मामले में फैसला करेगी। न्यायालय के आदेश की आज मिली प्रति के अनुसार न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की युगलपीठ ने सजा निलंबन और जुर्माने पर रोक से संबंधी एक मामले में 22 जुलाई को सुनवाई करने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया है।

दरअसल मामला तब चर्चा में आया जब उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ सजा के निलंबन व जमानत संबंधी एक मामले में सुनवाई कर रही थी। उधमसिंह नगर के सितारगंज निवासी अब्दुल जहीद की ओर से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के तहत हत्या के मामले में सजा निलंबित करने और जमानत देने की मांग की गयी थी। खटीमा के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अब्दुल जहीद और दो अन्य को हत्या के मामले में सजा सुना दी थी। इसके बाद निचली अदालत के फैसले को याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

अदालत ने साक्ष्यों के आलोक में अब्दुल जहीद के अलावा संजीदा और अब्दुल सईद की सजा को निलंबित कर दिया और उन्हें जमानत पर छोड़ने के निर्देश दे दिये। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय मिश्रा तथा न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि क्या अपीलीय न्यायालय को जुर्माने की राशि पर रोक लगाने का अधिकार है या नहीं, वह भी तब जबकि मुआवजे के रूप में देने को नहीं कहा गया हो? न्यायमूर्ति मिश्रा ने सत्येंन्द्र मेहरा बनाम झारखंड सरकार के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि अपीलीय न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 389 के तहत सजा और जुर्माने को निलंबित करने का अधिकार है।

जबकि इसी मामले में न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने अलग राय रखते हुए सत्येंद्र कुमार बनाम झारखंड सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि सजा के निलंबन से स्वत: ही जुर्माने पर रोक नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त मामले में सजा के निलंबन पर रोक लगाने के निर्देश दिये हैं जबकि जुर्माना पर रोक नहीं लगायी है।

इस मामले में दोनों न्यायाधीशों की राय अलग-अलग होने पर अंत में इस मामले को इसी साल 08 मार्च, 2022 को बड़ी बेंच के समक्ष सुनवाई के लिये भेज दिया गया। न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की युगलपीठ ने इस मामले में 22 जुलाई को सुनवाई करने के बाद अंत में निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

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