चांद के बारे में हम यही जानते आये हैं कि यह अत्यधिक ठंडा इलाका है। इसी वजह से वहां इंसानी बस्ती कैसे स्थापित की जाए, इस पर लगातार शोध और अनुसंधान जारी है।
वैज्ञानिकों की परिकल्पना वहां परीक्षण के दौर पर इंसानों के लिए रहने लायक इलाका तैयार करना है। सारे शोध इसी क्रम में हो रहे हैं और यह भी देखा गया है कि वहां ऑक्सीजन कैसे पैदा किया जा सके।
इसके सफल होने पर अंतरिक्ष अभियानों के लिए चंद्रमा ही एक बेस स्टेशन के तौर पर काम करने लगेगा। अब पहली बार यह जानकारी आयी है कि वहां कुछ ऐसे इलाके भी हैं, जहां का तापमान इंसानों के लायक हो सकता है।
यदि ऐसा सही साबित हुआ तो आने वाले दिनों में चंद्रमा पर इंसानों की बस्ती स्थापित करने का अभियान काफी तेज हो जाएगा। इस बात की जानकारी नासा के अंतरिक्ष यान से उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से मिली है। इस बारे में प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका जर्नल जिओफिजिकल रिसर्च लेटर्स में सूचना प्रकाशित हुई है।
नासा के लुनार रिकॉंसिनेंस ऑरबिटर के मिल वाली सूचनाओं का कंप्यूटर विश्लेषण किया गया है। इसी आधार पर यह नयी जानकारी हमारे सामने आयी है। यह बताया गया है कि वहां के कुछ गड्ढों में ऐसा वातावरण हो सकता है। वरना आम तौर पर चंद्रमा का तापमान दिन में 127 डिग्री और रात को शून्य से 173 डिग्री नीचे चला जाता है। इसी तापमान की वजह से वहां का माहौल इंसानों के रहने के लायक नहीं समझा गया था।
इतनी अधिक तापमान का बदलाव आम इंसानी शरीर नहीं झेल सकता है। जिन गड्ढों के बारे में यह रिपोर्ट जारी की गयी है, उनकी खोज तो वर्ष 2009 में ही हो गयी थी। अब पता चलता है कि वहां के अंदर के तापमान में इतना अधिक उतार चढ़ाव नहीं होता। तापमान में कम बदलाव होने के साथ साथ इन गड्ढों के अंदर सूर्य के विकिरण का प्रभाव भी तुलनात्मक तौर पर बहुत कम होता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (लॉस एंजेल्स) के शोधकर्ता टेलर होरवाथ ने कहा है कि इनमें से कई गड्ढे तो वहां लावा के प्रवाहों के धंस जाने की वजह से पैदा हुए हैं। नासा को गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोआ पेट्रो के मुताबिक इतना पता चल गया है कि वहां के तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं होता है।
यह भी अनुमान है कि अगर किसी एक ऐसे गड्ढे के बारे में जानकारी मिल गयी तो वहां मौजूद ऐसे दो सौ के करीब गड्ढों के अंदर का माहौल भी एक जैसा ही होगा। यह सभी चांद की धरती पर बने एक गुफा के जैसे हैं, जहां बाहर का प्रभाव बहुत कम होता है।
वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि इन्हें अभी सिर्फ ऊपर से ही देखा गया है। किसी रोबोट रोबर के जरिए उसके अंदर झांका गया तो कोई विशाल आकार का गुफा भी होने का पता चल सकता है। यह तय है कि जो गुफा ज्यादा गहरा और फैला हुआ होगा, वहां तापमान का हेरफेर उतना कम होगा।
गुफा में इंसानी प्रवास का इतिहास तो पृथ्वी पर ही मौजूद है क्योंकि प्रारंभिक काल में इंसान यहां की गुफाओं में ही रहा करता था। एक थर्मल कैमरे की मदद से जब एक गड्ढे की जांच की गयी तो यह पाया गया कि वहां की गहराई का तापमान 17 डिग्री बना रहता है। जो इंसान के रहने के लिए पर्याप्त अनुकूल है।