नैनीताल। डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1974 के तहत निर्धारित अवधि के बाद विवाहित लड़की को अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी दी जाये या नहीं और यदि हां तो इसको कब से प्रभावी माना जाय? इस यक्ष प्रश्न पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय की बड़ी बेंच अपना फैसला सुनायेगी।
उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के बाद शुक्रवार को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया। यह यक्ष प्रश्न उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता नम्रता शर्मा की ओर से दायर याचिका के बाद खड़ा हुआ है।
दरअसल नम्रता शर्मा की ओर से वर्ष 2019 में एक याचिका दायर कर मृतक आश्रित में अनुकंपा के आधार पर नौकरी का दावा किया गया था। उच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए निस्तारित कर दिया था कि याचिकाकर्ता पहले स्वास्थ्य विभाग के समक्ष प्रत्यावेदन प्रस्तुत करे।
इस दौरान उच्च न्यायालय की कार्डिनेट बेंच ने वर्ष 2019 में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी कर विवाहित लड़की को भी डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1974 के तहत ‘परिवार’ की परिभाषा में शामिल कर दिया था।
यानी अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हकदार माना था। अदालत ने विवाहित पुत्री को परिवार की परिभाषा में शामिल नहीं करने को लिंग के आधार पर भेदभाव माना था।
इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से वर्ष 2021 में पुन: याचिका दायर करते हुए अनुकंपा के आधार पर दावा किया गया और कहा गया कि विभाग की ओर से उसके प्रत्यावेदन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उसकी मां गौरी शर्मा का देहावसान सन् 2008 में स्वास्थ्य विभाग में सेवा के दौरान हो गया था। हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से पहले नौकरी लेने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की पीठ ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और 15 दिसंबर, 2021 को इस प्रकरण को बड़ी बेंच को यह कहते हुए संदर्भित कर दिया कि डाइंग इन हार्नेस रूल्स के प्रावधान पांच के तहत क्या निर्धारित अवधि के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी का दावा स्वीकार किया जा सकता है या नहीं? यदि हां तो वह कब से प्रभावी माना जायेगा? क्या यह उच्च न्यायालय के आदेश के पूर्व से प्रभावी होगा या बाद में? इसके बाद उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की बड़ी बेंच के समक्ष यह मामला शुक्रवार को सुनवाई के लिये रखा गया।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की पीठ ने सुनवाई के बाद दोनों प्रश्नों पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।
सरकार की ओर से पूर्व से प्रभावी विकल्प का विरोध करते हुए कहा गया कि वर्ष 2019 से पूर्व से प्रभावी करने पर सरकार के समक्ष असहजता की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अब अदालत को इन प्रश्नों पर निर्णय देना है।