देहरादून में ईडी कार्यालय पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन

देहरादून। कांग्रेस पार्टी की शीर्ष नेता एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन किये जाने के विरोध में गुरुवार को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व में प्रदेश कार्यालय से क्रास रोड स्थित ईडी कार्यालय तक विशाल रैली निकालते हुए विरोध-प्रदर्शन किया। साथ ही, सांकेतिक गिरफ्तारी दी।

माहरा ने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार राजनैतिक प्रतिशोध और द्वेष की भावना से प्रेरित होकर सरकारी एजेंसियों के माध्यम से पार्टी नेताओं के उत्पीडन कर रही है, जिसकी कांग्रेस घोर निन्दा करती है। उन्होंने कहा कि पहले पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ ईडी की कार्रवाई इसका परिचायक है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र की स्थापना देश की आजादी के आन्दोलन के समय हुई, जिसे अंग्रेजों द्वारा ‘‘भारत छोड़ो आंदोलन’’ के दौरान प्रतिबंधित कर दिया गया था। जिसे महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक त्रासदी बताया था। उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट में फंसे नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र की सहायता के लिए कांग्रेस पार्टी ने ऋण दिया। इस ऋण की राशि में से नेशनल हेराल्ड ने अपने कर्मचारियों के वेतन आदि का भुगतान करने के लिए किया तथा बाकी राशि सरकारी देनदारियों के भुगतान के लिए इस्तेमाल की गई।

माहरा ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी में बैठे लोग और उनके हितैषी, जो नेशनल हेराल्ड को दिए गए इस 90 करोड़ रुपये के ऋण को अपराधिक कृत्य के रूप में मान रहे हैं, ऐसा वह विवेकहीनता और राजनैतिक दुर्भावना से ग्रसित होकर कह रहे हैं। जिसे पार्टी कार्यकर्ता कतई बर्दास्त नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि भाजपा छोड़ चुके कई नेता ऐसे हैं जिन नेताओं के खिलाफ ईडी में मामले तो दर्ज हैं परन्तु कार्रवाई नहीं हुई, केवल कांग्रेस के नेताओं को टारगेट किया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा ऋण देना भारत में किसी भी कानून के तहत आपराधिक कृत्य नहीं है।

फिर, कांग्रेस पार्टी द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को समय-समय पर ऋण देना कैसे एक आपराधिक कृत्य माना जा सकता है? इस ऋण का विधिवत लेखा-जोखा भारत के चुनाव आयोग को प्रस्तुत भी किया गया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने 06 नवम्बर 2012 के अपने एक पत्र के माध्यम से सुब्रमण्यम स्वामी को यह स्पष्ट करते हुए लिखा था कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खर्च को प्रतिबंधित या नियंत्रित करता हो।

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