डॉ श्रीगोपाल नारसन
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू के मनमोहिनी परिसर में हुए तीन दिवसीय न्यायविद महासम्मेलन में न्यायमूर्तियों ने भी माना कि न्याय प्रदान करने में परमात्मा सबसे बड़ा मददगार है।न्याय मूर्ति भी मानते है कि वे निमित्त मात्र है ,न्याय उन्हें निमित्त बनाकर परमात्मा ही करता है।इसलिए यदि हम परमात्म याद में रहकर न्यायायिक कार्य करते है तो बेहतर न्याय हो सकता है।
न्यायविदों के इस राष्ट्रीय सम्मेलन में बड़ी संख्या में न्यायमूर्ति न्यायाधीशों,वरिष्ठ अधिवक्ताओं व न्यायिक शिक्षाविदों ने भाग लिया ।जिन्होंने आध्यात्मिकता के साथ न्याय के प्रयोग को तरज़ीह दी।सम्मेलन में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुनीता यादव कहना था कि जब हम न्यायिक प्रक्रिया के तहत होते है तो उस समय सही दिशा और सत्य के रूप में न्याय की आवश्यकता होती है।
उनका मानना है कि परमात्मा का सान्निध्य सही रूप में यदि हो जाए तो हर किसी के साथ सही न्याय हो सकता है। परमात्मा का दरबार और स्थूल लोक का कोर्ट दोनों को ही महत्वपूर्ण बताते हुए न्यायाधीश सुनीता यादव ने ब्रह्माकुमारीज संस्थान में आयेाजित न्यायविदों के सम्मेलन में अपने अनुभव भी साझा किए।उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि कई केस बहुत ही उलझे हुए होते है।
जिनको सुलझाने में राजयोग के अभ्यास से एकाग्र होकर हम निष्कर्ष तक पहुंच सकते है। जब हम न्यायिक प्रक्रिया के तहत होते है तो उस समय सही दिशा और सत्य न्याय की आवश्यकता ही हमे न्याय में मदद करती है। उन्होंने माना कि परमात्मा का सान्निध्य सही रूप में यदि हो जाए तो हर किसी के साथ सही न्याय हो जाएगा।
कई बार लोगों की उम्मीदों के खिलाफ न्याय हो जाता है, लेकिन न्यायिक व्यवस्था संविधान और नियम कायदों से ही चलता है। इसलिए सब पहलुओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है।उन्होंने माना कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान का राजयोग ध्यान मनुष्य के जीवन में तरक्की का रास्ता खोलता है।
इसलिए हमें जीवन में राजयोग को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि ब्रह्माकुमारीज का शांत व सौम्य वातावरण देखकर ही महसूस होता है कि यहां कितना आध्यात्मिक सशक्तिकरण हैं।सम्मेलन में गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए जे देसाई ने कहा कि इस देश के हर वर्ग को न्याय मिले,यह बेहद आवश्यक है।
यह भी आवश्यक है कि हमारा समाज अपराध मुक्त बने। इस देश में हर एक को सुख शांति प्रेम से रहने, अपनी बात कहने, खुशी का इजहार करने, अपने संस्कार और धर्म के हिसाब से जीने का अधिकार है।जिसमे किसी को भी अनुचित हस्तक्षेप करने का अधिकार नही है।
उड़ीसा उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस पुजारी ने कहा कि जहां नारियों को सम्मान होता है ,वहां न्याय मिलना ओर सहज हो जाता है। वही देवता भी निवास करने लगते हैं ।श्रीमदभागवत गीता में भगवान कहते हैं जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मैं इस धरती पर अवतरित होकर अधर्म का विनाश करने के लिए न्याय देता हूं।
सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता पद्मश्री रमेश गौतम, विधि प्रभाग की उपाध्यक्ष बीके पुष्पा, महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके शारदा,विधि प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके लता ने भी राजयोग के अभ्यास से न्याय की सुगमता को अपने उद्बोधन से सिद्ध किया।इस बाबत न्यायमूर्ति रामसूरत राम मौर्य का भी मानना है कि खुशी सिर्फ भौतिक विकास से नहीं मिलती।
सच्ची खुशी आंतरिक विकास से प्राप्त होती है। जबकि न्यायमूर्ति विजय लक्ष्मी के शब्दों में,’ आत्मा के ऊपर छाई कालिमा को कैसे धोया जाय यही महत्वपूर्ण है।’वही न्यायमूर्ति सुधीर नारायण अग्रवाल ने बड़े ही सहज शब्दों में लोगों को खुशी पाने और ईश्वर से जुड़ने का रास्ता बताते है। ईश्वरीय व न्याय सेवा कार्य पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति विवेक सिंह भी मानते है कि मानव सेवा ही सच्ची सेवा है।
वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका पुष्पा दीदी खुशी पाने का जतन बताती है और कहती है कि खुशी बाहर की परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती। हम अपने आप को जानकर ही हम हमेशा खुश रह सकते हैं। उन्होंने खुशी को स्वधर्म बताया।
न्याय विदों के इस सम्मेलन में नैनीताल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रहे सर्वेश गुप्ता ने भी अपने अनुभव सुनाए कि किस प्रकार हम राजयोग के अभ्यास से स्वयं का सम्बंध परमात्मा से जोड़ सकते है और न्याय प्रदान करने भी भी यह विधि कारगर सिद्ध हो सकती है।
सम्मेलन का हिस्सा बने रुड़की के अधिवक्ता लक्ष्मण सिंह,नरेंद्र सिंह,संजय शर्मा,बबलू गौतम व प्रदीप पंवार ने माना कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान में आकर उन्हें आत्मिक सुख व असीम शांति की अनुभूति हुई है।लगता है जैसे उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा की बैटरी चार्ज हो गई हो और इससे अब वह नई सोच,इन ऊर्जा व नई दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।ऐसे ही अनुभव देशभर से आए अन्य न्यायविदों ने भी सुनाए।जिससे यह न्यायविद सम्मेलन सार्थक बन पाया।