नयी दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 94 वें स्थापना दिवस समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत प्रमुख फसलों के उत्पादन में दुनिया में पहले या दूसरे स्थान पर है जिस पर उसे गर्व है लेकिन कुछ फसलों की उत्पादकता को लेकर चुनौतियां हैं जिसे दूर करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि अन्य देशों में दलहनों , तिलहनों और कपास की उत्पादकता प्रति एकड़ भारत की तुलना में बहुत अधिक है।
वैज्ञानिकों को दलहनों , तिलहनों और कपास की उत्पादकता संबंधी चुनौतियों का मुकाबला करना करना चाहिये तथा इन फसलों की पैदावार विश्व स्तरीय करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कृषि विशेषज्ञों को इन फसलों की उत्पादकता बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए और आने वाले वर्षों में उसे पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश दलहनों की जरूरतों को पूरा करने की ओर तेजी से आगे बढ गया है और अब तिलहनों की कमी को पूरा करने का समय आ गया है ।
उल्लेखनीय है कि देश में खाद्य तेल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इसका बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
तोमर ने कृषि क्षेत्र में हुए बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि उच्च कृषि शिक्षा में नये पाठ्यक्रमों को लागू किया गया है और अब स्कूली शिक्षा में भी कृषि को शामिल करने का प्रयास तेज कर दिया गया है।
इस दिशा में भारमीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पहल शुरू कर दिया है। कृषि मंत्री ने कहा कि रासायनिक खेती से फसलों की उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई और देश खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हुआ बल्कि दुनिया की जरुरतों को भी पूरा कर रहा है लेकिन अब रासायनिक खेती के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
इसको देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकृतिक खेती की ओर ध्यान केन्द्रीत करना शुरु कर दिया है। श्री तोमर ने कृषि के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय वृद्धि के लिए परिषद की सराहना करते हुए कहा कि वैज्ञानिकों के प्रयास से देश के लाखों किसानों की आय दोगुनी से अधिक हो गई है।
देश के करीब 14 करोड़ किसानों में से लगभग 85 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं, जिन्हें आधुनिक तकनीक का बेहद फायदा हुआ है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारों की नीतियों , वैज्ञानिकों के अनुसंधान तथा किसानों के परीश्रम से आय में भारी वृद्धि हुई है।
उन्होंने कहा कि परिषद ने अब तक कुल 5800 बीजों को तैयार किया है जिनमें से पिछले आठ साल के दौरान ही करीब दोहजार किस्मों को जारी किया गया है जिससे उत्पादन में भारी बढोतरी दर्ज की गयी है।