दलबदल कानून में अब तक जा चुकी है कई की सदस्यता

2016 व 21 में दलबदल करने वाले कई माननीयों को खोनी पड़ी है सदस्यता 

देहरादून। खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की सदस्यता पर बसपा ने संविधान की जिन धाराओं में सवाल उठाये हैं, उन्हीं धाराओं के नाम पर उत्तराखंड में अब तक एक दर्जन से अधिक माननीयों की सदस्यता खत्म हो चुकी है। 
पिछले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा में शामिल हुए पुरोला के विधायक राजकुमार ने जब विधानसभा की सदस्यता नहीं छोड़ा तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की याचिका पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने उनकी सदस्यता को खत्म कर दिया था।
इसके साथ ही चुनाव से ठीक पहले 2021 में भाजपा में शामिल होने के बाद निर्दलीय विधायकों प्रीतम पंवार व रामसिंह कैड़ा को भी इस्तीफा देना पड़ा था। इन दोनों निर्दलीय विधायकों के भाजपा में शामिल होने पर अमरेंद्र बिष्ट ने विधानसभा में याचिका पेश की थी। इससे पूर्व भाजपा विधायक यशपाल आर्य व उनके बेटे संजीव आर्य ने कांग्रेस में शामिल होते ही विधायकी से इस्तीफा दे दिया था।
 दलबदल कानून को लेकर उत्तराखंड में सबसे बड़ा मामला 2016 में आया। तब कांग्रेस के बगावत करके भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के 9 विधायकों को तत्कालीन स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने दल-बदल कानून के उल्लंघन के आरोप में अयोग्य घोषित कर दिया था। भाजपा में शामिल हुए विधायकों ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में स्पीकर के फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने स्पीकर के आदेश को सही ठहराते हुए सभी नौ विधायकों की सदस्यता को बहाल करने से इनकार कर दिया था।
ऐसे में अब एक बार फिर से खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के मामले में सबकी निगाहें विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी पर टिक गई हैं। बृहस्पतिवार को जब बसपा नेता याचिका देने के लिए विधानसभा पहुंचे तो तब स्पीकर केरल के दौरे पर और विधानसभा सचिव सत्र की तैयारियों को लेकर भराड़ीसैंण गये हुए थे।
बहरहाल एक बार फिर से राजनीतिक गलियारों में इस मामले को लेकर चर्चाएं तेज हो गयी हैं। बसपा की याचिका के बाद सत्ता के गलियारों व राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो गयी है कि निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की भाजपा के कई आला नेताओं तक पहुंच है, ऐसे में यह क्या स्पीकर ऋतु खंडूड़ी इस मामले में कार्यवाही करने का साहस दिखा पाएंगी।

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