उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में हीट वेव चिंताजनक
एसडीसी फाउंडेशन के साथ लाइव चर्चा में जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता चंद्रभूषण ने किया आगाह
औद्योगिक क्रांति के बाद धरती पर तेजी से बढ़ा तापमान, गरम दिनों की संख्या भी बढ़ी
देहरादून । जलवायु परिवर्तन व ऊर्जा के मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहने वाले नेशनल फेम एक्टिविस्ट व लेखक चंद्रभूषण ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में हीट वेव व हीट डेज (गरम हवाएं व गरम दिन) की संख्या में हुई वृद्धि पर चिंता जताई है।
उन्होंने आगाह किया कि यदि हमने जरूरी कदम नहीं उठाये तो आने वाले समय में स्थितियां हाथ से निकल जाएंगी और आज की तुलना में स्थिति और चिंताजनक व भयावह होगी।
दून स्थित एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल के साथ एक वर्चुअल चर्चा में जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता चंद्रभूषण ने कहा कि दुनिया में औद्योगिक क्रांति शुरू होने से पहले धरती का तापमान तीन लाख वर्षों में एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा था।
लेकिन उसके बाद के सिर्फ 150 से 170 वर्षों में ही तापमान में एक डिग्री की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। कहा कि धरती का तापमान एक डिग्री बढ़ने का अर्थ यह है कि कई जगहों पर यह 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है।
इसका अर्थ यह भी है कि हीट डेज की संख्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों में भी हीट डेज की संख्या बढ़ी है। हिमाचल प्रदेश में अप्रैल माह में हीट वेव व हीट डेज की संख्या 21 और उत्तराखंड में चार थी।
पहाड़ी इलाकों में यदि तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा और मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा दर्ज किया जाता है तो उसे हीट डे कहा जाता है। इसके अलावा यदि किसी दिन तापमान सामान्य से 4.5 से 6.5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो तो उसे भी हीट डे माना जाता है।
उत्तराखंड में अप्रैल माह में कई दिन ऐसे थे जब अधिकतम तापमान सामान्य से सात डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा दर्ज किया गया। चंद्रभूषण का कहना था कि देहरादून की स्थिति अब पूरी तरह से बदल चुकी है।
कुछ वर्ष पहले तक दून में आमतौर पर पंखे की भी जरूरत नहीं होती थी, लेकिन अब अप्रैल में ही एयरकंडीशन चलने लगते हैं। पिछले एक दशम में सभी हिमालयी राज्यों में हीट डे की संख्या बढ़ी है। उनका कहना है कि उत्तराखंड में हीट वेव और हीट डेज की संख्या बढ़ीने में वनाग्नि का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
दस-पंद्रह साल पहले राज्य में जंगलों में सालाना जहां आग की सौ-डेढ़ सौ घटनाएं होती थी, वहीं मौजूदा समय में इनकी संख्या तीन से चार हजार तक पहुंच रही है। साथ ही हीट वेव भी जंगलों की आग की घटनाएं बढ़ाने में सहायक हो रही है।
उन्होंने विकास के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाने को चिंताजनक बताया। कहा कि जिन शहरों में पेड़ों की संख्या ज्यादा है वहां का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत घरों की जगह कंक्रीट के घर बनाने की प्रवृत्ति को भी उन्होंने गलत बताया।
कहा कि यदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसी तेजी से निर्माण होते रहे तो आने वाले 20-30 वर्षों में पहाड़ों में भी दिल्ली जैसी स्थिति बन जाएगी। वचुर्अल संवाद के दौरान चिंतनशील प्रतिभागियों ने उनसे कई सवाल भी पूछे।