बच्चों में निवेश देश के भविष्य में निवेश है: गैरोला
प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतिम दिन प्रतिभागियों को प्रणाम पत्र भी बांटे गए
देहरादून। अध्यक्ष उत्तराखंड विधुत नियामक आयोग व पूर्व प्रमुख सचिव न्याय एवं विधायी दिनेश प्रसाद गैरोला ने महिला कल्याण विभाग उत्तराखंड द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतिम दिन शनिवार को गढ़वाल मंडल क़ी बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष तथा सदस्यों एवं किशोर न्याय बोर्ड के सदस्यों को दीन दयाल उपाध्याय वित्त प्रशासन संस्थान सुद्धोवाला में आयोजित कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किये।
इस मौके पर गैरोला ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15, 45 व 47 में बच्चों के कल्याण तथा संरक्षण के प्राविधान किये गए हैं। समिति तथा बोर्ड के सदस्य याद रखें कि बच्चों में निवेश भारत के भविष्य में निवेश है। अपराधी जन्मजात नहीं होता, परिस्थितियों से बनते हैं। विधि विरुद्ध हर बच्चे की पृष्ठभूमि अनिवार्य रूप से देखें तभी उसके कृत्य पर निर्णय लें।
चौराहे पर भीख मांगने वाले बच्चों का स्थायी पुनर्वास तत्काल करवाये ताकि उन्हें भविष्य का अपराधी बनने से रोकने में मदद मिले। चाणक्य नीति में 5 वर्ष तक बच्चों को केवल प्यार देने ,5 की आयु के बाद सही गलत की शिक्षा देने तथा 16 वर्ष के बाद मित्रवत व्यवहार करने को कहा गया है। किशोर न्याय अधिनियम भी इन्ही सिद्धान्तों पर आधारित है। विद्यालयों में ध्यान दिया जाए कि गांव से आया विद्यार्थी inferiority काम्प्लेक्स का शिकार नहीं हो। गैरोला ने प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
अपर सचिव तथा महिला कल्याण के निदेशक प्रदीप रावत ने अनाथ बालिकाओं द्वारा बनाई गई ऐपन पेंटिंग भेंट की।प्रतिभागियों को किशोर न्याय अधिनियम 2015 की पुस्तक विभाग की ओर से भेंट की गई।
उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कांडपाल ने पूर्वाह्न सत्र की अध्यक्षता करते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण को बाल संरक्षण की कूंजी बताया। परिवार में अच्छे संस्कार देना बच्चों के संरक्षण के लिए जरूरी है। परिवार स्तर पर सुधार ही समाज मे सुधार लाएगा।
उन्होंने बताया कि महिला आयोग विवाह से पूर्व काउन्सलिंग पर जोर देगा ताकि लंबे समय में पारिवारिक स्तर पर महिलाओं तथा बच्चों के प्रति हिंसा को रोका जा सके।महिला आयोग द्वारा काउन्सलिंग विषय पर एक फोल्डर भी प्रशिक्षुओं को वितरित किया गया।
,उत्तराखंड महिला आयोग की सचिव कामिनी गुप्ता ने बताया कि परिवार में बच्चों से प्रतिदिन बात करने की आदत बनाएं, इससे उनके मन की बात खुलेगी और बच्चों के शोषण की घटनाओं में कमी आएगी। आजकल विवाह के बाद महिला के नाम से लोन लेने का चलन बढ़ रहा है, जिसमे सावधानी आवश्यक है। लिविंग इन जैसी पद्धतियों के बारे में बच्चों को समझाने की आवश्यकता है।
डीपीओ मुख्यालय अंजना गुप्ता ने महिला कल्याण की योजनाओं तथा संस्थाओं पर विस्तार से चर्चा की। स्पॉन्सरशिप, वात्सल्य योजना, पी एम केअर फ़ॉर चिल्ड्रन योजना, स्ट्रीट चिल्ड्रन का पुनर्वास आदि के अंतर्गत बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड की भूमिका विषय पर प्रशिक्षुओं के प्रश्नों के उत्तर दिए।
जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र की ओर से अनन्त प्रकाश मेहरा ने दिव्यांग बच्चों के संरक्षण में बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड के दायित्वों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि महिला कल्याण विभाग द्वारा समिति और बोर्ड के सदस्यों के लिए दिव्यांगता की पहचान और बच्चों के विषय पर विशेष प्रशिक्षण जनपद स्तर पर आयोजित कराएं जाएं ताकि सभी दिव्यांग बच्चों का समाज की मुख्यधारा में समावेशन हो सके। उन्होंने आवाह्न किया कि समिति तथा बोर्ड दिव्यांगता एडवोकेसी अभियान से जुड़ें।
प्राचार्य एवं निदेशक ILSR प्रो ओमकार नाथ तिवारी ने बतौर मुख्य प्रशिक्षक कहा कि जुवेनाइल कानून से जुड़े न्यायालयों के निर्णयों से समिति तथा बोर्ड के सदस्यों को अपडेट रहने की आवश्यकता है।उन्होंने उदाहरण देते हुए समिति तथा बोर्ड की शक्तियों और सीमाओं की चर्चा की। आदेश किस तरह लिखा जाए यह विस्तार से समझाया गया।
गिरीश पंचोली, संयुक्त निदेशक, प्रॉसिक्यूशन लॉ ने अपने संबोधन में बताया कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसीलिए बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड में सामाजिक कार्यकर्ता रखे गए हैं।
सौमिक अधिकारी, सहायक प्रॉसिक्यूशन अधिकारी देहरादून ने बाल अधिकारों और उनके उल्लंघन को ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में बताया। बाल संरक्षण के लिए संविधान के प्राविधानों व कानूनों की चर्चा की गई।
डॉक्टर कंचन नेगी, अंतर्राष्ट्रीय लाइफ ट्रेनर ने मोबाइल likes की एडिक्शन पर एक मूवी प्रस्तुत कर बताया कि बच्चों से नियमित रूप से बातचीत करते रहें। बच्चों के मोबाइल और इंटरनेट उपयोग पर इतिहास चेक करें ताकि गलत साइट्स की जानकारी मिलती रहे और उन्हें रोक सकें।
बच्चों के सामने अनुशासन में रहें और लगातार मोबाइल में न डूबे रहें। बच्चे आपकी नकल करेंगे। लिंक्डइन, फेसबुक, व्हाट्सएप्प, यूट्यूब, इंस्टाग्राम का उपयोग बच्चे सावधानी से करें ताकि ट्रोललिंग या साइबर बुल्लीइंग का शिकार न हो। बाल कल्याण समिति में साइबर सेफ्टी की कॉउंसलिंग का कौशल होना चाहिए।
डॉक्टर प्रतिभा शर्मा, क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट ने कहा कि परिवारों की नियमित कॉउंसलिंग जरूरी है ताकि बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण समय दें केवल उनकी बुराई या टोकाटोकी न करें, उनके गुणों की तारीफ भी करें। बच्चों की एनर्जी ठीक तरह से उपयोग हो, इसके लिए आउटडोर एक्टिविटी अवश्य करवाएं।
नैतिक कहानी बताकर लगातार बच्चों से जुड़ें रहे। अकेले रहने वाले बच्चे addict बनते हैं अतः उन पर विशेष ध्यान दें। जिद्दी बच्चों को समय दें, डांटे बिल्कुल नही। बच्चों को उपदेश देने से पहले अभिभावकों को अपने आचरण और भी ध्यान देना होगा ।
अंत में अंजना गुप्ता, DPO ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए DPO मीना, वर्षा, राजीव, अविनाश, सुनीता तथा निदेशालय महिला कल्याण के समस्त स्टाफ का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के समापन के मौके पर महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास के सचिव हरिचंद्र सेमवाल तथा वरिष्ठ अधिकारी मोहित चौधरी भी मौजूद रहे।