नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी ने विज्ञान भवन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। मोदी ने कहा कि सरकार न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
देश के सामान्य नागरिकों में न्याय प्रणाली के प्रति भरोसा कायम रखने के लिए न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने की जरूरत है। आजादी के ‘अमृत काल’ में हमारी दृष्टि एक ऐसी न्याय प्रणाली के लिए होनी चाहिए जहां न्याय आसानी से, त्वरित और सभी के लिए उपलब्ध हो।
मोदी ने मुख्यमंत्रियों से यह भी अपील की कि वे काल विगत हो चुके कानूनों को खत्म कर लोगों को अनावश्यक कानूनों के जंजाल से मुक्ति दिलाने की पहल करें। केंद्र सरकार ने 2015 में ऐसे 1,800 कानूनों को चिह्नित किया था, जो अप्रासंगिक हो चुके थे। ऐसे 1450 कानून केंद्र ने समाप्त कर दिये हैं लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।
मोदी ने विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि इस समय देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं, जिन पर मुकदमे की कार्रवाई लंबित है, जिनमें अधिकतर गरीब या सामान्य परिवार के हैं।
मैं सभी मुख्यमंत्रियों, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से अपील करूंगा कि वे मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता दें। मोदी ने इसी संदर्भ में कहा कि हर जिले में जनपद न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, जो ऐसे मामलों की समीक्षा करती है।
उन्होंने कहा कि जहां तक संभव हो, विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने का विचार किया जा सकता है। न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के प्रोत्साहन पर बल देते हुए कहा, ‘‘इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा और वे इससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
किसी भी देश में स्वराज का आधार न्याय होता है। न्याय जनता की भाषा में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा भी सामाजिक न्याय का मुद्दा है। उन्होंने कहा कि न्यायिक निर्णयों को भाषा के कारण न समझ पाने की वजह से ही आम जन अदालतों की निर्णयों और शासन के आदेश में फर्क नहीं कर पाते। सामाजिक न्याय के लिए न्यायपालिका के तराजू तक जाने की जरूरत नहीं होती, कई बार भाषा भी सामाजिक न्याय का माध्यम हो जाती है।