यह सर्वविदित है कि कांग्रेस में अब भी गुटबाजी चरम पर है। यदि वाकई गुटबाजी में कमी आई होती तो कांग्रेस का बीते विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन इतना खराब नहीं होता जितना आज दिख रहा है। खैर, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश कांग्रेस में जो भी बदलाव किया है, वह काफी सोच समझकर किया है।
रणविजय सिंह
उत्तराखंड कांग्रेस की कमान कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने करन माहरा को सौंपकर यह साबित करने की कोशिश की है कि आगामी लोकसभा चुनाव जो वर्ष 2024 में होने हैं उसके लिए उत्तराखंड कांग्रेस के दिग्गज नेता अभी से ही एक होकर भाजपा के खिलाफ मुखर हो जाएं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उत्तराखंड विधानसभा में बतौर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य को जिम्मेदारी सौंपी है।
आर्य काफी पुराने कांग्रेसी रहे हैं। बीच में वे भाजपा में शामिल जरूर हुए थे लेकिन जब तक आर्य भाजपा में रहे वे अपने आप को असहज महसूस करते रहे। अंतत: बीते विधानसभा चुनाव में आर्य कांग्रेस में शामिल हुए और विजयी भी हुए। आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने से कांग्रेस हाईकमान ने अपना दलित कार्ड खेलकर यह भी संदेश देने की कोशिश की है वह दलितों की सबसे बड़ी हितैषी है।
कांग्रेस में अंतर्कलह व्याप्त है। इसमें किसी को भी शक नहीं होना चाहिए। भले ही उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यह सफाई दे रहे हैं कि कांग्रेस एक है। दिग्गजों में मनमुटाव जैसी कोई चीज नहीं है। यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में हवा जरूर थी, राजनीतिक विश्लेषक भी इस तथ्य स्वीकार कर रहे हैं।
लेकिन गुटबाजी इतनी ज्यादा हावी रही है कि कांग्रेस को मात्र 17 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यह सर्वविदित है कि कांग्रेस में अब भी गुटबाजी चरम पर है। यदि वाकई गुटबाजी में कमी आई होती तो कांग्रेस का बीते विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन इतना खराब नहीं होता जितना आज दिख रहा है। खैर, अब विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, और अब कांग्रेस को आगे की बात सोचनी एवं करनी चाहिए। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश कांग्रेस में जो भी बदलाव किया है, वह काफी सोच समझकर किया है।
कुमाऊं मंडल पर सबसे ज्यादा फोकस खास रणनीति के तहत किया गया है। गढ़वाल मंडल के नेताओं को भी कई बार जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहले सौंपा है लेकिन पार्टी को कोई ज्यादा फायदा नहीं मिला है। माना जा रहा है कि इसलिए इस बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पिछले विधान सभा चुनाव में सामूहिक नेतृत्व वाले सभी कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर दिया है।
साथ ही, संकेत भी दे दिया है कि अब कांग्रेस हाईकमान किसी भी तरह के दबाव में आने आने वाला है। कांग्रेस हाईकमान को रिजल्ट चाहिए। इसको ध्यान में रखकर ही कांग्रेस हाईकमान काम करना शुरू कर चुका है। नयी तैनाती में एक और खास चीज देखने को यह मिली है कि कांग्रेस हाईकमान ने पहली बार खटीमा से विधायक बने भुवन कापड़ी को भी विधानसभा में उप नेता की जिम्मेदारी सौंपी है। कापड़ी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हराया है। माना जा रहा है कि कापड़ी को मुख्यमंत्री धामी को हराने का अवार्ड दिया गया है।
कुल मिलाकर यह देखा जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान अब अपने हिसाब से चीजों को तय कर रहा है। नए कांग्रेस के अध्यक्ष करन माहरा के सामने अब कई तरह की चुनौतियां भी हैं। संगठन में नयी जान फूंकना तो होगा ही। साथ ही, सीनियर नेताओं को भी साथ लेकर चलना होगा।
हरीश रावत और प्रीतम सिंह का अलग-अलग गुट है। कांग्रेस हाईकमान यह बात अच्छी तरह समझ रहा है। नए अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य तथा उप नेता भुवन कापड़ी को भी संयुक्त रूप से कांग्रेस के संगठन को एक बार फिर से खड़ा करने की कोशिश करनी होगी। उत्तराखंड में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया है। ब्लॉक स्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने की दिशा में नए अध्यक्ष को काम करने होंगे। कांग्रेस हाईकमान ने करन माहरा पर भरोसा जताया है।
हालांकि, कांग्रेस ने भाजपा के स्टाइल में इस बार काम किया है। जिस तरह से पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव हार गए थे इसके बावजूद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। संभवत: भाजपा ने धामी के अंदर की ताकत को पहचाना है।
इसलिए तमाम दिग्गजों को दरकिनार करते हुए धामी को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया है। ठीक इसी तरह कांग्रेस हाईकमान ने भी करन माहरा की ताकत को पहचाना है और उन्हें रानीखेत विधानसभा से चुनाव हारने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी है। वाकई प्रदेश कांग्रेस के लोगों के लिए यह एक अप्रत्याशित घटना है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने माहरा की ताकत को पहचाना है।
तभी तो उन्हें अध्यक्ष बनाया है। रही बात पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल की तो उनका करियर खत्म नहीं हुआ है। गोदियाल युवा है और जनाधार वाले नेता हैं। स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत को गोदियाल ने विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर दी। हरीश रावत और प्रीतम सिंह सिंह कांग्रेस के दो बड़े चेहरे हैं। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं। यह बात मान लेनी चाहिए हरीश रावत और प्रीतम सिंह अब ढलान पर है। इसलिए समय रहते कांग्रेस को नए चेहरे तलाशने की जरूरत थी।
इसको कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बखूबी समझा है और नए चेहरे को मौका दिया है। पुराने चेहरों के दिन अब लद गए हैं। इनके अनुभवों का लाभ पार्टी ले सकती है। लेकिन फिल्ड में युवा चेहरा अब जरूर हो गया है। अब नए चेहरे पर दांव खेलने का वक्त आ गया है।
लिहाजा सोनिया गांधी को करन माहरा और भुवन कापड़ी को जिम्मेदारी सौंपना सही समय पर सटीक फैसला है। कांग्रेस के पुराने नेताओं को माहरा और कापड़ी का सहयोग करना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए लोकसभा चुनाव के पहले उत्तराखंड में पंचायत और निकाय चुनाव होने हैं और कांग्रेस इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेगी।