सामूहिक जिम्मेदारी का फार्मूला प्रीतम पर पड़ा भारी
चुनाव में बार-बार सामूहिक नेतृत्व में ही लडऩे की बात करते रहे प्रीतम व देवेन्द्र
- इसी को आधार बना प्रीतम को सीएलपी बनने से रोक गये हरीश-गोदियाल
देहरादून। राजनीति में कब कौन का पैंतरा किसके गले की हड्डी बन जाए कहा नहीं जा सकता है। कांग्रेसी सत्ता से दूर होने के घाव को ही सहलाने में लगे हैं, लेकिन चुनाव के दौरान भांजी गयी तलवारें अब अपने ही घाव पर चोट कर गयी है।
फिलहाल सामूहिक जिम्मेदारी का मामला प्रीतम सिंह को ही नुकसान पहुंचा गया।
कांग्रेस आलाकमान द्वारा राज्य कांग्रेस को दी गयी नयी टीम के सामने आने से यह बात काफी हद तक पुख्ता हो गयी है। कांग्रेसियों के एक दूसरे के रथ को रोकने के पैंतरे उनके अपने लिए भी घातक साबित हुए हैं।
कांग्रेस में गुटबाजी की लड़ाई चुनाव का ऐलान होने से पहले ही शुरू हो गयी थी। गुटबाजी का मुख्य कारण यह था सरकार बनने पर मुख्यमुंत्री की कुर्सी पर काबिज होना। पूर्व सीएम हरीश रावत व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की ओर से सीएम पद के लिए सबसे तगड़ी दावेदारी थी।
हरीश रावत पूरे चुनाव में खुद को सीएम फेस घोषित करने के लिए माहौल बनाते रहे तो प्रीतम सिंह व प्रभारी देवेन्द्र यादव तुरंत हरीश रावत की बात को काटकर किसी के चेहरे पर नहीं बल्कि सामूहिक रूप से चुनाव लडऩे की बात करते रहे। यही बात प्रीतम सिंह के रास्ते में रोड़ा बन गयी।
बताया जा रहा है कि हार के कारणों की समीक्षा हुई तो हरीश कैंप से यह तर्क दिया गया कि जब चुनाव सामूहिक रूप से लड़ा गया और हार की जिम्मेदारी भी सामूहिक ही हैं तो इसके लिए सिर्फ हरीश रावत व गणेश गोदियाल कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं। मुख्य चुनावी चेहरों में शामिल नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह सामूहिक हार के लिए जिम्मेदार होते हुए कैसे नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष का इनाम पा सकते हैं।
यही बात आलाकमान में बैठे प्रीतम सिंह के प्रति साफ्टकार्नर रखने वाले देवेन्द्र यादव व वेणुगोपाल ने नहीं नकार पाये और जिस सीएलपी के लिए प्रीतम सिंह व उनका पूरा कैंप आश्वस्त था वह एक झटके में ऐन चुनाव के समय भाजपा छोडक़र कांग्रेस में आये यशपाल आर्य की झोली में चला गया।अब दोनों ही गुट पीसीसी में अपने लोगों का एडजस्ट करने के साथ ही एआईसीसी में भी जगह पाने के लिए अपनी ताकत दिखाएंगे।