लोकपाल के बुझते हुक्के को हरदा ने फिर की सुलगाने की कोशिश
उनकी सरकार ने बेंच के गठन का काम कर दिया था पूरा
- सिर्फ राज्यपाल को देनी थी सहमति, अस्तित्व में होता लोकपाल
देहरादून। पूर्व सीएम व वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने एक बार फिर लोकपाल-लोकायुक्त का मुद्दा उठाया है। रावत ने कहा है कि अच्छी बात यह है कि आज भी कुछ पत्र और पत्रकार हैं, जो लोकपाल-लोकायुक्त का बुझता हुआ हुक्का गुड़गुड़ ने का शौक रखते हैं। रावत ने कहा है कि वे ऐसे लोगों को धन्यवाद देना चाहेंगे।
उन्होंने फेसबुक पर लिखी एक पोस्ट में कहा है कि लोकपाल तो 2014 में सत्ता परिवर्तन का टोटका था, जिसका इस्तेमाल कर सत्ता में आने वाले लोग उसको खुद ही एक अनचाही झंझट समझ कर भुला चुके हैं।
रावत कहते हैं कि जब वे संसदीय कार्य राज्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि तू भी अन्ना, मैं भी अन्ना, आओ मिल बैठकर चूसें गन्ना, वह गन्ना लोकपाल ही था। मगर मैं भूल गया एक बार चूस लिया गन्ना, फिर नहीं चूसा जाता।
लोकपाल रूपी यह गन्ना 2014 में चुस गया और अन्ना भी लोकपाल के गन्ने को भूल गये। इसके बदा 2016 में उन्होंने राज्य विधानसभा द्वारा संशोधित रूप में पारित कानून के तहत लोकायुक्त चयन की प्रक्रिया को आगे बढ़ने का हौसला किया। हाई कोर्ट के दिशा निर्देशन में दोनों कमेटियां, एक हाईकोर्ट के वरिष्ठ रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में और दूसरी कमेटी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के मार्ग निर्देशन में गठित हुई।
पहली कमेटी ने अपना दायित्व पूरा कर समय पर पत्रावली दूसरी कमेटी के सम्मुख प्रस्तुत कर दी। दूसरी कमेटी में राज्य के मुख्यमंत्री का मार्गदर्शन करने के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के तौर पर वरिष्ठतम न्यायाधीश, प्रतिपक्ष के तत्कालीन नेता, एक वरिष्ठ मंत्री और विधानसभा के स्पीकर बैठे।
सारी औपचारिकताओं को आगे बढ़ाया गया और औपचारिकताओं के आगे बढ़ने के बाद लोकपाल के प्रशासनिक विभाग द्वारा पत्रावली कमेटी के सम्मुख प्रस्तुत की गई और कमेटी ने सर्वसम्मति से न केवल लोकायुक्त का बल्कि लोकायुक्त बेंच का भी चयन कर राज्यपाल के पास अनुमोदनार्थ फाइल भेज दी। राज्य की राजनीति में कुछ परिवर्तन लाने की कोशिश हुई और उस कोशिश के बाद राज्यपाल के इंस्टिट्यूशन की राज्य में स्वायत्तता समाप्त हो गई।
इसका पहला शिकार बना उत्तराखंड को मिलने जा रहा लोकायुक्त और लोकायुक्त की बेंच। रावत कहते हैं कि उन्हें आश्चर्य है जब नई विधानसभा में सत्तारूढ़ दल औपचारिकता पूरी करने के लिए ताकि विधिवत तरीके से लोकायुक्त की मांग को दफनाया जा सके। प्रस्ताव लेकर के आया तो 2१६ के घटनाक्रम के पात्र भी इस बात को भूल गए कि राज्य विधिवत तरीके से लोकायुक्त का चयन कर राज्यपाल को पत्रावली भेज चुका है और पत्रावली के ऊपर राज्यपाल बैठे हुए हैं।
ऐसा लगता है सब शीघ्रता में थे, क्योंकि मालूम था कि यदि विधेयक प्रवर समिति के पास जाएगा तो फिर वह अति प्रवर ही हो जाएगा और अति प्रबल भी हो जाएगा। वह इतना प्रबल हुआ कि 5 साल न राज्यपाल के पास लंबित बिल के विषय में कुछ सुनने को मिला और न प्रवर समिति के लंबित प्रस्ताव पर कुछ सुनने को मिला।
रावत कहते हैं कि इस बुझते हुक्के को गुडग़ुड़कर फिर से सुलगाने वालों को वो धन्यवाद करते हैं।