पारम्परिक प्रजातियों को संरक्षित करने की मुहिम

देहरादून। बर्तिया धान सिंचित अवस्थाओं के अनुकूलधान की एक कृषक प्रजाति है जो कि पिथौरागढ़ जिले में सेविला/तहसील मुन्स्यारी स्थानीय निकास/पंचायत के अन्तर्गत आने वाली चेटीचिमला (कवाधार) गाॅंव के कृषकों द्वारा इसकी उच्च उपजशीलता, पौष्टिकता के गुणों के कारण अनेक वर्षो से संरक्षित की गयी है तथा इस प्रजाति को मुख्यतः खाजा, च्यूड़ा, खीर इत्यादि बनाने में प्रयोग किया जाता है।

लक्ष्मण सिंह ब्रजवाल मुख्य कार्यपालक, हिमालय कृषि एवं ग्रामीण विकास स्वयत्त सहकारिता संघ-मुख्य बाजार, मुन्स्यारी, जिला पिथौरागढ़ नेविवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा को बर्तिया धान को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली के तहत संरक्षित करने हेतु आवश्यक कार्यवाही हेतु निवेदन किया तथा बर्तिया धान का बीज उपलब्ध कराया।

इस कृषक प्रजाति का संस्थान में प्रारम्भिक मूल्यांकन किया गया तथा इस प्रजाति को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली को भेजा गया। प्राधिकरण द्वारा संचालित डीयूस परीक्षणों में सफलता के पश्चात् वर्तमान में सन् 2022 में धान की कृषक प्रजाति बर्तिया धानप्राधिकरण द्वारा पंजीकृत कर ली गयी है।

प्राधिकरण के प्रावधानों के अन्तर्गत संरक्षित बर्तिया धान के संरक्षणकर्ता कृषक भविष्य में कई प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकते हैै जैसे केवल संरक्षणकर्ता कृषकों को पंजीकृत कृषक प्रजाति के उत्पादन एवं विपणन करने का विशेष अधिकार, कृषि विविधताके संरक्षण एवं विकास में योगदान हेतु पुरस्कार या मान्यता साथ ही अगर यह प्रजाति किसी नई किस्म के विकास करने में प्रयोग में आती है तो कृषकों को नई किस्म द्वारा अर्जित लाभों में लाभ साझा करने का अधिकार भी प्राप्त होता है।

इसके अलावा संरक्षित प्रजातिके कृषक किसी भी अन्य वाणिज्यकि प्रजनक द्वारा अघोषित उपयोग किये जाने पर भी मुआवजे की हकदार होते है। इस कृषक प्रजाति को संरक्षित करने की प्रक्रिया में डा. अनुराधा भारतीय (वरिष्ठ वैज्ञानिक), डा. जय प्रकाश आदित्य (धान प्रजनक), डा. लक्ष्मी कान्त, निदेशक, विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, श्रीमती चन्द्रा देवी जेष्ठय (प्रगति स्वयं सहायता समूह, कृषक समुदाय से अधिकृत व्यक्ति) एवं  लक्ष्मण सिंह ब्रजवाल, मुख्य कार्य पालक, हिमालय कृषि एवं ग्रामीण विकास स्वयत्त सहकारिता संघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

भविष्य में भी अन्य कृषक समुदाय अपने स्थानीय किस्में के संरक्षण हेतु निदेशक महोदय, विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा से सम्पर्क कर सकते है एवं पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के अन्तर्गत प्रावधानों के लाभ ले सकते है।

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