उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी सहित अन्य क्षेत्रीय दलों का प्रचार प्रसार शुरू है। हां ,सभी पार्टियों के कार्यकर्ता सक्रिय हैं लेकिन मजेदार बात यह है कि उत्तराखंड की जनता खामोश है। अब समझने वाली बात यह है कि आम जनता की चुप्पी में क्या राज छिपा है…
रणविजय सिंह
उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बज चुका है। वर्ष 2022 के शुरू में होने वाले इस विधानसभा चुनाव में सरकार किस पार्टी की बनेगी यह तो उत्तराखंड की जनता ही तय करेगी। उत्तराखंड की जनता हर पार्टियों के कामकाज का आकलन कर रही है।
चाहे प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा हो या फिर विपक्ष में बैठी कांग्रेस। इसके अलावा विधानसभा की 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी भी। उत्तराखंड की जनता ने इन सभी पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की कुंडली भी खंगालना शुरू कर चुकी है।
इस बीच भाजपा, कांग्रेस और आप पार्टियों के शिखर के नेताओं का उत्तराखंड में किसी न किसी बहाने आना जाना शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कई दिग्गज नेता उत्तराखंड की जनता को सब्जबाग दिखाने में जुट गए हैं।
अब तो उत्तराखंड भी चुनावी मूड में आ चुका है। सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से धड़ाधड़ योजनाओं का लोकार्पण शुरू हो गया है। केवल इतना ही नहीं, प्रदेश सरकार अपनी उपलब्धियों को लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में लंबे चैड़े इश्तहार देने में भी किसी तरह का कोई गुरेज नहीं कर रही हैं।
करोड़ों की धनराशि विज्ञापन के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं। मजे की बात यह है कि सरकार विज्ञापन अन्य प्रदेशों के अखबारों और चैनलों में दनादन दे रही है। ताकि, प्रदेश के बाहर भी लोगों को पता चल सके कि उत्तराखंड सरकार की उपलब्धियां क्या हैं और भविष्य की योजनाएं क्या हैं।
लेकिन सरकारी इश्तहारों से प्रदेश के विकास की गति को तय नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जमीनी आकलन बेहद जरूरी होता है। उत्तराखंड की जनता ने भाजपा के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया और यही कारण है कि भाजपा ने भी पूर्ण बहुमत की सरकार का गठन किया लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन पांच सालों में तीन मुख्यमंत्री बनाए गए।
इससे यह बात तो साफ हो गयी है कि प्रदेश में सरकार द्वारा पोषित योजनाएं निश्चित रूप से प्रभावित हुई होंगी। क्योंकि कोई भी नया मुख्यमंत्री बनता है वह अपनी चलाने की कोशिश करता है।
आपको याद दिला दें कि मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) भुवन चंद्र खंडूड़ी को हटाकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने डा. रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन कई तरह की आशंकाएं प्रदेश में छा गईं जिससे भयभीत भाजपा हाईकमान ने पुन: एक बार खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया जिसका नतीजा यह हुआ है कि उस समय हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गयी।
राजनीति के जानकार भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मुख्यमंत्री बदलने का फैसला भाजपा पर हमेशा ही भारी पड़ा है। इस बार क्या होगा, यह तो जनता जनार्दन ही तय करेगी। उत्तराखंड की जनता के दिमाग क्या चल रहा है, इसका आकलन करना कोई सहज काम नहीं है।
लेकिन इतना तो तय है कि प्रदेश की जनता भाजपा के दिग्गज नेताओं से यह सवाल जरूर करेगी कि आखिर इन पांच सालों में मुख्यमंत्री क्यों बदले गए और जिस विकास का खाका मतलब घोषणापत्र में जो वादे किए गए थे, उनमें से कितनों पर अब तक अमल किया गया है। यह जवाब भाजपा के स्थानीय और केंद्रीय नेताओं दोनों के लिए कठिन जरूर दिख रहा है।
जहां तक सवाल कांग्रेस पार्टी का है। यह पार्टी फिलहाल अलग अलग धड़ों में बंटे होने के बावजूद आम जनता के अंदर यह मैसेज देने की कोशिश जरूर कर रही है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता एक हैं और किसी से भी कोई शिकवा-शिकायत नहीं है।
लेकिन राजनीति के पंडित यह मान रहे हैं कि कांग्रेस के नेता भले ही मौजूदा समय में एक होने की बात कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस में अंतरद्वंद्व कम नहीं है। गुटबाजी अब भी जारी है। लेकिन यह भी सच है कि जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है कांग्रेस के ग्राफ में वृद्धि हो रही है। कांग्रेस के नेता एक होकर भाजपा की सरकार पर हमलावर भी हैं।
साथ ही, कांग्रेस को ऐसा लग भी रहा है कि उत्तराखंड भी हर 5 साल में सरकारें बदलती रहती हैं। संभव है वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में कोई चमत्कार ही हो जाए। पर यह तो राजनीति है, इसमें कब क्या होगा, यह किसी को भी नहीं पता है। क्योंकि राजनीतिक समीकरण मौसम की तरह बदलते रहते हैं। इसलिए फिलहाल किसी भी तरह का कयास लगाना चतुराई नहीं हैं।
आम आदमी पार्टी सहित उक्रांद जैसे छोटे दल भी अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं लेकिन उत्तराखंड की जनता इन पर कितना भरोसा करेगी, अभी से यह बताना मुश्किल दिख रहा है। अन्य पार्टियों की तरह आम आदमी पार्टी ने भी उत्तराखंड की जनता को सब्जबाग दिखाना शुरू कर दिया है।
पार्टी के आम से लेकर खास कार्यकर्ता भी काफी सक्रिय हैं, लेकिन उत्तराखंड के लोग इस पार्टी को कहां तक स्वीकार कर पाएंगे, यह बताना मुश्किल है। क्योंकि उत्तराखंड, दिल्ली नहीं हो सकता है। उत्तराखंड के भौगोलिक हालत दिल्ली की तरह नहीं हैं।
यहां लोगों की मानसिकता दिल्ली के लोगों से बिल्कुल अलग है। यहां के लोग सीधे-साधे हैं। इसका मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि वे किसी भी पार्टी के बहकावे में आकर अपना वोट देंगे। उत्तराखंड के लोग सुलझे हुए हैं। शुरू से ही यहां की परंपरा हर पांच साल पर सरकार बदलने की रही है।
इसलिए इस बार वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऊंट किसी करवट बैठेगा, इसको समझना सहज नहीं है।
बहरहाल, उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी सहित अन्य क्षेत्रीय दलों का प्रचार प्रसार शुरू है। हां ,सभी पार्टियों के कार्यकर्ता सक्रिय हैं लेकिन मजेदार बात यह है कि उत्तराखंड की जनता खामोश है।
अब समझने वाली बात यह है कि आम जनता की चुप्पी में क्या राज छिपा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखंड की जनता जागरूक है और वर्ष 2022 में होने वाले चुनाव में सोच समझकर ही फैसला लेगी। लिहाजा, यह कहा जा सकता है कि अगली सरकार किसकी होगी यह तो जनता जनार्दन ही तय करेगी।