कुमांऊ में फिर चला मोदी मैजिक, दो पूर्व सीएम हारे

हरदा ने भी चमक खोयी और धामी भी नहीं बचा पाए अपनी धमक

हल्द्वानी। पांच साल बाद एक बार फिर कुमाऊं में मोदी मैजिक के खेल ने कांग्रेस का खेला कर दिया। लालकुआं से पूर्व सीएम हरीश रावत तो खटीमा से पुष्कर सिंह धामी हार गए। इसके साथ ही कुमाऊं से दून कैंट रोड सीएम आवास में कुमाऊं के किसी विधायक के रहने पर विराम लग गया।

लालकुआं से मिली करारी हार ने उम्र के इस पड़ाव में हरदा को राजनीति से संयास लेने या फिर मुख्यधारा में बने रहने की विकट चुनौती पैदा कर दी है। ताजा चुनाव परिणामों से हरदा की चमक और धामी की धमक सब गायब हो गई है। कुमाऊं की 29 सीटों में भाजपा के खाते में 18 सीटें चली गई हैं।

अल्मोड़ा की एक सीट में ईबीएम मशीन खराब होने के कारण नतीजा रोक दिया गया है। कांग्रेस के खाते में दस सीट आयी हैं। कांग्रेस का यह प्रदर्शन 2017 की अपेक्षा बेहतर है, तब कांग्रेस को केवल चार ही सीटें मिली थीं।

इन चुनाव परिणामों ने भाजपा को शानदार जीत मिलने के बाद भी कार्यकर्ता सीएम पुष्कर सिंह धामी की हार की बजह से जश्न नहीं मना पा रहे हैं। कुमाऊं में दो पूर्व सीएम के हारने के बाद एक तरह से नेतृत्व हीनता की स्थिति पैदा हो गई है।

कुमाऊं में समाचार लिखे जाने तक अल्मोड़ा की एक सीट को छोडक़र लगभग तस्वीर साफ हो गई है। पिथौरागढ़ की चार सीटों में दो भाजपा एवं दो कांग्रेस के खाते में गई हैं। अल्मोड़ा में अभी तक तीन सीट भाजपा के पक्ष में हैं और द्वाराहाट के रुप में एक सीट कांग्रेस के खाते में गई है।

अल्मोड़ा मुख्यालय की सीट में ईबीएम की तकनीकी दिक्कत चुनाव परिणाम में बाधक बना है। पहली बार जागेश्वर से गोविंद सिंह कुंजवाल चुनाव हार गए हैं। यह एक बड़ा उलटफेर है। यहां उनके कभी चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे मोहन सिंह ने मैदान मार लिया है।

बागेश्वर की दोनों सीटों में इस बार इतिहास दोहरा गया है। यहां कपकोट से सुरेश गडिय़ा और बागेश्वर से चंदन राम दास जीत गए हैं। सुरेश की जीत में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी का भारी योगदान है। सुरेश ने कोश्यारी के नाम पर ही वोट मांगे थे।

यही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कोश्यारी के नाम पर वोट मांगे थे। चम्पावत की सीट पर फिर कैलाश गहतोड़ी की आसान जीत हुई है। जबकि लोहाघाट में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी खुशाल सिंह अधिकारी ने जीत हासिल की है। चम्पावत में गहतोड़ी की जीत से सभी अंचभित हैं। पहले इस सीट पर कांग्रेस की आसान जीत समझी जा रही थीं।

नैनीताल में भी बागेश्वर की तरह से इतिहास रिपीट हो गया हैं। यहां बिल्कुल 2017 की तस्वीर है। सिर्फ जीतने वाले किरदार कुछ अलग हैं। जैसे नैनीताल से सरिता आर्या और लालकुआं से मोहन सिंह बिष्ट, हल्द्वानी सुमित हृदयेश।

बस अंतर इतना है कि लालकुआंवासियों ने कांग्रेस वरिष्ठ नेता हरीश चंद्र सिंह रावत को करारी हार के लिए विवश कर कांग्रेस के लिए आगे की विकट चुनौती पैदा कर दी है। हरीश रावत के लालकुआं से चुनाव में उतरते ही उनके हारने की खबरें आम थीं।

तब माना जा रहा था कि भाजपा ने मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने के लिए इस तरह का प्रचार किया है, लेकिन ईवीएम खुलते ही लालकुआं में तस्वीर पूरी तरह से साफ हो गई है। इस हार के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत की उत्तराखंड के विकास के लिए काम करने की कई योजनाएं की कसक रह गई है। मोदी मैजिक में हरीश रावत की कद काठी बोना साबित हो गई है।

नैनीताल की तरह से ऊधमसिंह नगर में भाजपा के लिए खुशी की खबरें नहीं मिली। यहां खटीमा से पुष्कर सिंह धामी कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी से चुनाव हार गए। यहां की नौ विस सीटों में पांच सीट कांग्रेस के खाते में गई और भाजपा को चार ही सीटों से संतोष करना पड़ा।

सबसे मजेदार बात यह रही कि गदरपुर से चुनाव जीतकर अरविंद पांडे ने शिक्षा मंत्री के दोबारा न जीतने के मिथक पर विराम लगा दिया। इसके अलावा नानकमत्ता, जसपुर, बाजपुर, किच्छा से कांग्रेस जीत गई हैं। एक तरह से तराई के किसानों ने भाजपा से नाराजगी दिख रही है। खटीमा में धामी के हार के कारणों में भीतरघात भी दिख रहा है।

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