भारत में जंगल के शहजादे के लिए करना होगा और इंतजार
हाल में उपयुक्त चीतों की तलाश में डब्लूआईआई देहरादून, मप्र व केंद्र के विशेषज्ञों ने किया है नामीबिया का दौरा
देहरादून। भारत में जंगल के शहजादे की आमद के लिए अभी और इंतजार करना होगा। दरअसल, इंतजार और लंबा हो गया है। माना जा रहा है कि अभी देश में चीता आने में महीनों का समय और लग सकता है।
बता दें कि केंद्र सरकार की योजना है कि नामीबिया या दक्षिण अफ्रीका से चीता भारत लाया जाए और उसे मध्य भारत में फिर से बसाया जाए। बता दें कि आजादी से पहले ही भारी शिकार के कारण देश से चीता विलुप्त हो गया है।
देश में जब कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन की सरकार थी तब तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने देश में चीते को दोबारा लाने की पहल की थी। तब योजना थी कि ईरान के खुरासान से या अफ्रीका से चीते लाए जाएं लेकिन करीब एक दशक बात भी भारत चीते का नया घर नहीं बन पाया है।
बहरहाल, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया-डब्लूआईआई), मध्य प्रदेश सरकार के कुछ अधिकारी और केंद्रीय वन मंत्रालय के अधिकारियों के विशेषज्ञ दल ने बीते हफ्ते उपयुक्त चीतों की पहचान की कवायद में अफ्रीका के देश नामीबिया का दौरा किया था।
हालांकि दल का दौरा सफल रहा मगर चीते का स्थानांतरण के लिए नामीबिया से अभी औपचारिक समझौता नहीं हो पाया है। नामीबिया में दल ने चीता कंजर्वेशन फंड व भारतीय दल के बीच विचार विमर्श भी हुआ।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञ व डीन ड. वाईवी झाला का कहना है कि दौरा कामयाब रहा है। दल ने 70 चीते देखे हैं। चीतों के ट्रांसलोकेशन के लिए औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर अभी होने हैं।
ट्रांसलोकेशन की पूरी प्रक्रिया में कई महीने लगेंगे। इसके लिए अभी समय बद्ध कार्यक्रम भी तय होना है। बता दें कि 7 जनवरी को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथरिटी की 7वीं बैठक में एक एक्शन प्लान लांच किया है।
जिसके मुताबिक भारत से विलुप्त हो चुके चीते को देश में दोबारा लाया जाना है। एक्शन प्लान के मुताबिक पहले चरण में नामीबिया या अफ्रीका से 10 से 12 युवा चीतों को देश में लाया जाएगा।
इसके लिए चीतों की पीढ़ियों के आनुवांशिक क्रम व इतिहास की भी पड़ताल की जाएगी ताकि जो चीते भारत मे लाए जाएं वे ऐसे न हों जिनमें आपस में ही प्रजनन हुआ हो क्योंकि अहर चीते ऐसे हुए को उनकी आबादी बढ़ना मुश्किल हो जाता है।
डॉ. वाईवी झाला के मुताबिक इसके लिए शुरुआत में कम से कम 35 के करीब चीते लाने होंगे। तय किया गया है कि पहले चीते मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर नेशनल पार्क में लाए जाएं। वैसे चीतों के लिए मध्य भारत में अन्य तीन फरेस्ट रिजर्वों पर भी विचार चल रहा है।
योजना के मुताबिक केंद्र सरकार व पर्यावरण मंत्रालय की चीता टास्क फोर्स देश में चीते दोबारा लाने के लिए एक औपचारिक फ्रेमवर्क बनाएगी और विदेश मंत्रालय के माध्यम से नामीबिया या दक्षिण अफ्रीका से समझौता किया जाएगा। कुनो नेशनल पार्क को एशियाई शेरों के लिए भी मुफीद जगह माना जाता है।
भारत में अभी शेर केवल गुजरात के गिर में ही बचे हैं लेकिन केंद्र सरकार और गुजरात सरकार शेर वहां भेजने की योजना से पैर पीछे खींचती रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि शेर की बजाय चीता पर फोकस बदल जाने से एशियाई शेरों को भी अपने लिए दूसरा घर नहीं मिल पा रहा है।