काश फिर कोई नगमा इस फिजा में लहरये ,दूर से सही लेकिन आप की तरह आये !
डी के भाई की प्रथम पुण्यतिथी पर श्रद्धांजलि
दुःख है उसके चले जाने का बड़े भाई डी के प्रजापति से मेरी मुलाक़ात हुई शायद ज़ब मे कक्षा 12 में पढ़ता था ! वे सहारा इंडिया में कार्य करते थे , साथ ही पत्रकारिता करते थे ! इसकी जानकारी मुझे बहुत दिनों बाद हुई ! मुलाक़ातो का दौर लगभग रोज होता , परन्तु कभी पता ही नहीं चला की मै इतने विशाल व्यक्ति से मिलता रहा हूँ . बात बहुत सहजता से होती थी कोई अपना है बस..
नववर्ष आगमन के अवसर पर रात को विवेकानंद कालोनी में सभी का भोजन और फुल मस्ती घर में छोटी दीदी वंदना पूरी व्यवस्था में साथ ! डी के भाई की एक ख़ास बात थी की सम्मान सभी को एक समान। ये गुण मेने उनसे कभी भी नहीं सीख पाया ,अब समझ आता है काश।
घर आना जाना शुरू हुआ, माँ बाबूजी ने भी अपना भरपूर स्नेह दिया। तब जब जातिवाद की बंदिश बहुत थी,लेकिन रसोईघर में बैठ कर खाना मिलता तब राकेश भाई से मुलाक़ात होती , बातचीत बहुत सीमित दायरे में एक प्रकरण पत्रकारिता का जीवन भर यादगार बन गया ।
एक नाबालिक बालिका की मौत का मामला डी के भाई ने एक पत्रिका में उठाया , उसी समय उनकी शादी के कार्यक्रम चल रहे थे ! तभी उसी मामले के लेकर उनको तत्कालीन पुलिस अधीक्षक से जबरदस्त तकरार हो गईं , क्योकि मामला बहुत ही हाई प्रोफाइल था ! मुझे आज भी वो दिन याद है ज़ब विवाह का भोज चल रहा था उसी समय पुलिस कर्मी भाई को गिरफ्तार करने आये ! तब भी उनके चहरे पर तनिक सा भी तनाव देखने को नही मिला !
उन्होंने इत्मिनान से भोजन किया और दोनों भाई (डी के और राकेश भाई) शेरों की तरह सबके सामने से निकाले और वे भूमिगत हो गए ! मामला बिगड़ता चला गया , उस समय बड़े-बड़े आर्थिक प्रलोभन भी मिले लेकिन एक गरीब परिवार को न्याय दिलाने का जूनून भी प्रलोभन को नजरअंदाज कर गया !
पुलिस अधीक्षक से टेलीफोन पर जम कर तीखी बहस हुई ,फिर तो उनकी गिरफ्तारी को लेकर सरगर्मी बढ़ गईं ! गिरफ्तारी के विरोध में पूरा जिला बार एसोसियेशन डी के भाई के साथ था ! हर कोई वकील साथी डी के भाई के लिए न्यायलय में लड़ने को बेताव था !ऐसा वाकया पहली बार देखने को मिला इस साधारण से दिखने बाले व्यक्ति का असाधारण व्यक्तित्व , अग्रिम जमानत मिल गई !
एक दिन जानकारी मिली की पुलिस गिरफ्तार करने वाली है और गिरफ्तारी नहीं दिखाएगी ,तब मजबूरी में बड़े भाई को मनाने के बाद जिले से बाहर भेजा गया (ये बात इसलिए की उस समय उनके परिवार की मदद के लिए कोई सामने नहीं आया ! कुछ लोग आये भी तो किसी न किसी दबाव में पीछे हट गए !
स्थानीय फब्बारा चौक पर पंडाल लगा कर राकेश भाई, अमरनाथ जी ( वरिष्ठ पत्रकार ) अपने कुछ अभिन्न मित्रो के साथ क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे गए ! हमने भी मामले से पीछे हटने के लिए कहा लेकिन डी के भाई ने साफ मना कर दिया की ज़ब तक मृतक बालिका को न्याय नहीं मिलता ,नहीं हटूंगा ,चाहे जान चली जाये। इतनी हिम्मत आज तक मेने जीवन में किसी में नहीं देखी । आज तो कैंडल मार्च बस ,बात खत्म होती )
ऐसे बहुत से मामले का में खुद गवाह हुँ ..
कभी कभी डी के भाई की बात से लगता था कि वे भगवान को मानते ही नहीं ,लेकिन ज़ब नवरात्रि आती उपवास और पूजन पूर्ण भक्ति भाव के साथ ! अधिकांशतः नास्तिकों जैसी बाते करने बाला शख्स आखिर इतना धर्मिक कैसे हो सकता है , गायत्री माता की साधना में ध्यानस्थ ..
15 अगस्त हो या 26 जनवरी या कोई रास्ट्रीय पर्व झंडा वंदन उनके आफिस में करते उसके बाद सभी को नाश्ता ! में हमेशा देर से पहुँचता भाई के गुस्से का शिकार होता लेकिन ठोड़ी देर में ही भाई का गुस्सा कपूर की तरह काफूर हो जाता
डी के भाई का क्रन्तिकारी व्यक्तित्व कहाँ से मिला पता नहीं ,क्योंकि बाबूजी माँ दोनों ही बहुत शांति से जीवन में रहते रहें ! लेकिन बड़े भाई में गरीब ,दबे ,कुचले ,शोषित ,सत्ता के सताये या किसी के साथ भी अन्याय हुआ बे तुरंत भिड़ जाते थे ..
जनहित के लिए रेल आंदोलन हो या जिले को कोई बड़ी सुविधा की दरकार , नेता पहुँचे डी के भाई के आफिस में बताया और गायब , परन्तु डी के भाई भिड गए आंदोलनों को आकार देते और अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेते ! परिणामो को लेकर नेता उसका श्रेय खुद लेते ,सब जानते हुए भी डी के भाई इस बात से ख़ुश होते की जनता को सुविधा मिली ,श्रेय लेना उनका कभी मकसद नही रहा,सिर्फ परिणामो पर उनकी नजर रहती थी
उनके दरबार में कई बहुरुपिये स्वार्थसद्धि के कामो के लिए आते , हम लोग अकेले मे उनका विरोध करते तो डी के भाई बोलते कई बार गंदे लोगो की भी मदद करनी पड़ती है ! ये याद रखने बाली बाते अब समझ में आती है कि वे ऐसा क्यों कहते थे, उस समय कई मतभेद होते गुस्सा आती लेकिन पता नहीं कुछ तो था उनमे जो हम फिर घर पहुंच जाते बाबूजी से मिलने का तो सिर्फ बहाना होता,असल में भाई से मिलना ! वो भी सब कुछ भूल कर बात करते लगता ही नहीं था की उन्होंने हाल ही में हमें डांटा, उल्टा सीधा बोला था !
उनके जाने के बाद समझ में आई बात की बड़े भाई का होना कितना जरूरी था ! कई बड़े भाई भी मिले लेकिन वे भी उपयोग कर निकल गए लेकिन डी के भाई ने कभी किसी का बेजा इस्तेमाल नहीं किया !
शादी की वर्षगांठ हो ,जन्मदिन दिन हो चाहे कोई और मौका पार्टी होंगी किसी भी ढाबे में गिनती के साथियो के साथ किसको क्या पसंद आर्डर पहले कर देते थे। बिटिया का जन्मदिन बाबूजी का हो मुझे कभी नहीं भूले
जातिवाद का इतना धुर विरोधी आज तक नहीं देखा मैंने , जार्ज फर्नांडिस , मेघा पाटकर ,रघु ठाकुर या दलित आंदोलनकारी के साथ जुड़े रहें ! सभ्रान्त परिवार में जन्म लेने के बाद दलितों के लिए इतना प्रेम क्यों रहा आज़ भी मेरे समझ के बाहर है!
पत्रकारिता मे लेखनी इतनी तीखी की आज देखने को नहीं मिलती मैंने कोशिश की लेकिन असफलता ही हाँथ लगी
डी के भाई की जिंदगी में डर नाम की कोई चीज ही नही थी , कई आंदोलन और उस समय की राजनैतिक व्यवस्था में हत्या तक होती थी,लेकिन भाई को डर ही नहीं , आज तक समझ नहीं आया की उनमे इतनी शक्ति कहाँ से आती थी ! आदरणीय एम आई खान ,शैलेन्द्र शुक्ला , मिश्री लाल बाबूजी, राजू महाराज और कितने नाम लिखूं सब ने उनके साथ जाने पर छोटे भाई जैसा स्नेह दिया मुझे !
मुझे कई बात उनकी तकलीफ देती थी कि कई धोखा देने वालों की मदद वे कर देते है गुस्सा आने पर उनका मोबाइल नंबर ब्लॉक कर देता था , फिर भाभी का फोन आएगा बात होंगी फिर वापस, समझते बेटा जिंदगी है ये ,सब होता है देखो और सीख लो..
आज समझ आती है उनकी बातें ..
ज़ब मुझे पता चला की 9 दिसम्बर 2020 को किसान आन्दोलन के दौरान आन्दोलन करते हुए उनका पेनक्रियाज फट गया है ! चिकित्सा जगत की भाषा में पेनक्रियाज कैंसर जैसी बीमारी ने उन्हें जकड़ लिया है ! चुकी मेरी हिम्मत ही नहीं थी की उनसे मिलूँ किन्तु इतना भरोसा था की वे ठीक हो जाएगी ! कभी हार की बात तक न करने बाले इस योद्धा को मौत ने खामोश कर दिया
मेरे मामा जो अतिथि विद्वानो के आंदोलन से जुडे थे, वे और उसके कुछ साथी डी के भाई से साथ मिलने गये उन्होंने बताया की भाई ने खूब बात की और उनको हॉस्पिटल में हौसला देते रहें ! मुझे भी लगा की अब मिल लूंगा लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था ! बस 24 फरवरी की रात मनहूस खबर मिली की गरीबो का मसीहा हम सब को छोड़ कर चला गया..
मेरा मानना है की उनके जैसा कोई आंदोलन और गरीबो की आवाज उठाने वाला अब तो नहीं आएगा ! बिना किसी स्वार्थ के जो डी के भाई ने किया, वह किसी और के बूते की बात नही ..
दुष्यन्त कुमार की कविता उनको प्रेरणा देती रही.. कौन कहता है की आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता , बस एक पथर तो तबियत से उछालो यारों..
सच कहता हूँ भाई वो आपने किया
लेकिन अब कोई नहीं कर सकेगा
अब कोई नई गंगा हिमालय से नहीं निकलेगी
शायद फिर कोई आप जैसा मुझे नहीं मिलेगा दुःख है जो मेरे साथ रहेगा, केवल आपकी यादें मुझे प्रेरणा देती रहेगी उन सबको भी जो आपके साथ रहें हो ..
राकेश भैया आपने बड़े भाई की यादो को पुनः प्रेरणा दी ,जो लिखा वो सब उनके साथ रहा हुँ देखा हुँ ! कम होते है छोटे भाई राकेश प्रजापति जैसे जो बड़े भाई को अपने और अपनो की लिए याद कराने में ! आपका स्नेह आशीर्वाद मुझे मिलता रहेगा
बड़े भाई की बात .. समाज को देना सीखो भले हम तकलीफ में हो सच है उनके बतावे मार्ग पर चलने का प्रयास जारी रखेंगे.. विनम्र श्रद्धांजलि
नाम फ़िल्म का वो गीत प्रासंगिक है उनके लिए .. तू कल चला जायेगा तो मै क्या करूंगा ..
ललित साहू , अधिवक्ता व वरिष्ठ पत्रकार