चुनाव नतीजों से पहले भाजपा- कांग्रेस दोनो का भरोसा डगमग

भाजपा में भितरघात के आरोप कर रहे आत्मविश्वास में कमी की तस्दीक

  • कांग्रेस का पोस्टल बैलट को लेकर हमलावर रुख भी यही संकेत कर रहा

देहरादून। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव के नतीजों का समय दस मार्च नजदीक आ रहा है भाजपा और कांग्रेस दोनो का जीत पर भरोसा डगमगाता दिख रहा है। यह बात और है कि भाजपा के नेता सार्वजनिक रूप से अब भी साठ पार की बात कर रहे हैं लेकिन जिस तरह भाजपा में भितरघात के इलजाम सामने आ रहे हैं।

वह साफ संकेत है कि कहीं न कहीं भाजपा उम्मीदवारों का आत्म विश्वास डिगा है। वहीं कांग्रेस भी कभी पूर्ण बहुमत और कभी 48 सीटें मिलने का दावा तो कर रही है लेकिन उसी के साथ जिस तरह पोस्टल बैलेट को लेकर वह सक्रिय है उससे लगता है कि उसे पोस्टल बैलट से बड़ी चुनौती मिल सकती है। साफ है कि भले ही कांग्रेस नेता दावा कुछ भी करें लेकिन उन्हें भी अपनी जीत पर अभी पूरा भरोसा नहीं हुआ है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार के चुनावों में वोटर की एक अजीब सी खामोशी , भाजपा की मतदाता का ध्यान महंगाई, रोजगार से हटाकर धार्मिक ध्रुवीकरण और मोदी फैक्टर की ओर ले जाने की पुरजोर कोशिश लेकिन फिर भी मतदाता का शांत रहना एक अजीब सियासी संभावना की ओर इशारा कर रहा ।

भाजपा के नेता अपना आकलन 22 से 38 तक ले जा रहे हैं।उधर, भाजपा में 10 मार्च के बाद चुनाव प्रबंधन की समीक्षा और उसमें खामी की पड़ताल के लिए चिंतन की बात सामने आ रही है। सवाल यह है कि जब भाजपा जीत ही रही है तो उसे खामियों की पड़ताल की जरूरत क्यों पड़ रही है। हालांकि भाजपा के लोग इसे राज्य में अगले साल होने वाले शहरी निकायों के चुनाव और फिर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किया जाने वाला मंथन बता रहे हैं लेकिन सवाल तो खड़ा ही हो रहा है कि आखिर ठीक चुनाव के बाद इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है क्या भाजपा को कुछ आशंका है।

बहरहाल 2014 के बाद से भाजपा चुनाव दर चुनाव जीतती रही है। 2014 के मोदी लहर के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटें जीतीं। विधानसभा सीटों की स्थिति के हिसाब से देखें तो भाजपा को 70 में से 63 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी।

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बढ़त घटी और उसे 57 सीटों पर ही बढ$त मिली। वर्ष 2018 में हुए नगर निकाय चुनाव और फिर त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव में और सहकारिता के चुनावों में भी भाजपा ने कांग्रेस हराया।

2019 के चुनाव पुलवामा के साए में हुए तो भाजपा ने फिर से पांचों लोकसभा सीटें जीतीं और उसे 65 विस सीटों पर बढ़त हासिल हुई। उधर कांग्रेस ने दिव्यांगों और बुजुर्गों के पोस्टल बैलेट की सूची और फिर फौजी वोटरों की फर्जी वोटिंग का मसला जिस तरह उठाया और शिकायत चुनाव आयोग तक की उधर भाजपा ने जिस तरह कांग्रेस के इलजामों की पड़ताल के बिना ही उन्हें खारिज करने की कोशिश की उससे साफ है कि दोनो के बीच एक-एक वोट को लेकर कड़ा संघर्ष रहा है।

Leave a Reply