आज़ादी के 7 दशक बाद भी नहीं पहुंची इस गांव में बिजली

मीनाक्षी

देहरादून । जहां एक तरफ उत्तराखंड में मतदान की तारीख करीब है और हर राजनितिक दल विकास की गंगा बहाने के दावे कर रही है। वहीं देवभूमि की जनता को लुभाने के लिए सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने बिजली मुफ्त का नारा दिया।

फिर क्या था, भाजपा और कांग्रेस ने भी देखा-देखी में मुफ्त बिजली पर कर दिया वायदा। बीजेपी और कांग्रेस ने बारी-बारी इस प्रदेश की सत्ता का स्वाद चखा है।

लेकिन फिर भी दोनों ही पार्टियां आजतक ये नहीं जान पाई की एक गांव ऐसा भी है, जहां बिजली ही नहीं पहुंची। मुफ्त बिजली का वायदा इस गांव के लोगों के लिए महज़ एक फूहड़ भद्दा मज़क है।

आधुनिक युग में कुमाऊं मंडल के नैनिताल ज़िले की रामनगर विधानसभा सीट के सुंदरखाल गांव में आज़ादी के बाद से लेकर अबतक बिजली नहीं आ पाई। उत्तराखंड़ के पहाड़ों पर आपदा आने के बाद लोग पहाड़ से विस्थापित हो जाते है और नीचे मैदानी इलाकों में अपने आशियाने बनाते है।

सुंदरखाल में रहने वाले लोग भी आपदा के बाद वहां बसे है। इस गांव के एक तरफ विश्व-विख्यात जिम कॉर्बेट पार्क और दूसरी तरफ कोसी नदी है। जिस ज़मीन पर ये गांव है , वह वन-विभाग के अंतर्गत आती है।

इस गांव में बिजली के खंबे लगने के बावजूद भी उनपर बिजली की तारें नहीं खींची गई। खंबों पर भी बिजली के इंतजार में खड़े -खड़े ज़ंग लग चुका है। इस गांव की आबादी लगभग 350-400 के करीब है।

नेता जितनी शिद्दत के साथ राजनीतिक मंचों से जनता के कल्याण की सोच का प्रमाण देता है, अगर उसका 10 फीसद भी ईमानदारी से करके दिखा दे तो निश्चित ही बदलाव संभव है।

सुंदरखाल के एक बुजुर्ग से ये पूछने पर की आपका रुझान किस तरफ होगा ? उनका जवाब था – “जो इस गांव में बिजली ले आए हमारे पूरे गांव का वोट जिंदगीभर उसे ही रहेगा”।

ये जवाब हैरानी वाला था जो ये सोचने पर मजबूर करने लगा की हम कौनसे भारत को विश्वगुरु बनाने की बात कर रहे है ? क्या उस भारत को जिसकी आम जनता आज़ादी के इतने दशकों बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है ? क्या भारत दो है, एक वह जहां मामूली से स्मार्टफोन ने दुनिया को कैद में कर लिया और एक वह जहां इस मामूली से फोन को चार्ज करने के लिए बिजली तक ही नहीं पहुंची।

आखिरकार ग्रामीणों ने थक-हारकर आपस में चंदा इकट्ठा किया और उससे सौर ऊर्जा के पैनल लगवाए। लेकीन उससे एक घर में एक ही बल्ब जल सकता है।

गांव की महिलाओं से बात करने पर पता चला कि शौच के लिए जंगल जाना पड़ता है। भारत सरकार द्वारा भारत की महिलाओं को सशक्त करने का वायदा किया था। लेकिन क्या जान को हथेली पर रखकर महिलाओं को सशक्त किया जायेगा ? ‘हर घर शौचालय’ योजना पर जिस बेशर्मी के साथ वाह-वाई लूटी गई थी , क्या उतनी ही जद्दोजहद कभी की जाएगी इन महिलाओं को योजना का लाभ देने के लिए।

बड़े-बड़े बैनर और होर्डिंग पर मोटे-मोटे अक्षरों में आंकड़े छापे जाते है लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसकी उलट है।

इस गांव का ज़िक्र अक्टूबर 2021 में भी काफ़ी हुआ था। पिछले साल अक्टूबर महीने में लगातार तीन दिन की मसूलाधार बारीश ने कुमाऊं मंडल के इन इलाकों पर अपना कहर बरपाया था। कोसी नदी के ज्यादा करीब घर बाढ़ में समाहित हो गए थे।

राज्य सरकार द्वारा उन्हें कुल 3800 रुपए के चेक थमाए गए और साथ में दिया गया एक घिसा-पीटा आश्वासन। पीड़ित ग्रामीणों से कहा गया की बहुत जल्द उन्हें वहां से विस्थापित कर दूसरी जगह पक्के मकान दिए जायेंगे। लेकीन अभीतक 3800 रुपए की तरस राशि के अलावा इन लोगों तक कुछ नहीं पहुंचा।

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