70 साल से आधी आबादी से विधानसभा दूर

देश की आजादी के बाद से देहरादून जिले से नहीं बनी कोई महिला विधायक

देहरादून। आधी आबादी (महिलाओं) के लिए विधानसभा दूर है। जी हां, देहरादून के संर्दभ में यह बात सटीक बैठती है। क्योंकि जिले के अंतर्गत आने वाले 1 विधानसभा सीटों से अब तक कोई भी महिला विधायक बनकर विस नहीं पहुंची है।

पृथक राज्य बनने के बाद से ही नहीं, बल्कि देश आजाद होने के बाद से यह क्रम जारी है। यद्यपि राज्य के दूसरे जिलों में स्थित विस सीटों से हर चुनाव में कोई ना कोई महिला विधायक बनकर सदन जरूर पहुंचती है, पर देहरादून जिले की दस सीटों पर दशकों पुराना यह सूखा मिट नहीं रहा है।

अब देखने वाली बात होगी कि राज्य गठन के बाद इस बार हो रहे पांचवे आम विस चुनाव में क्या 70 साल पुराना सूखा मिटकर नया इतिहास बनता है या फिर वही पुरानी कड़ी आगे बढ़ती है।

देहरादून का चुनावी इतिहास बताता है कि वर्ष 1952 से शुरू हुई विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया के बाद से अब तक यहां कोई भी महिला विधायक नहीं चुनी गई। जबकि गांव की प्रधान से लेकर नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, राज्यसभा व लोकसभा में महिलाएं प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और वर्तमान में भी कई महिलाएं सिटिंग पोजीशन में हैं।

जिले के अंतर्गत आने वाली छह विस सीटें चकराता, विकासनगर, सहसपुर, कैंट, राजपुर व मसूरी टिहरी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है जिसका प्रतिनिधित्व मौजूदा समय में सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह कर रही है।

कांग्रेस की दिवंगत नेत्री मनोरमा डोबरियाल शर्मा राज्यसभा सांसद रह चुकी है। इससे पहले वह दो बार नगर निगम देहरादून की महापौर भी रही थी। वहीं जिला पंचायत की अध्यक्ष मधु चौहान तो ऋषिकेश नगर निगम में वर्तमान में अनीता ममगाईं मेयर है। 10 वार्डों वाले नगर निगम देहरादून में भी वर्तमान में तीस से अधिक महिला पार्षद हैं।

जिले के अंतर्गत आने वाली छावनी परिषदों में भी महिला सभासदों का पूरा प्रतिनिधित्व रहता है। यही नहीं आधे से अधिक गांवों में महिलाएं प्रधान भी हैं। लेकिन विधायकी अब भी महिलाओं की पहुंच से दूर है।

एेसा नहीं कि विधायक बनने के लिए महिलाएं सियासी मैदान में भाग्य आजमाने नहीं उतरती है। राज्य गठन के बाद हुए चार विस चुनाव में हर बार किसी न किसी सीट से महिलाएं मैदान में उतरी हैं, पर हर बार हार का ही सामना करना पड़ा।

बात अगर बीते सालों की करें तो वर्ष 2002 में हुए पहले विस चुनाव में जिले की किसी भी सीट से महिला प्रत्याशी की जीत नहीं हुई। जबकि सुशीला बलूनी जैसी महिला राज्य आंदोलनकारी खुद चुनावी मैदान में उतरी हुई थी। वर्ष 2007 के विस चुनाव में भी चकराता विस सीट से बतौर निर्दलीय मैदान में उतरी मधु चौहान विधानसभा पहुंचने से चूक गई थक्ष।

क्योंकि वह कांग्रेस के प्रत्याशी प्रीतम सिंह से 3741 वोट से हार गई। 2१२ के विस चुनाव में भी कोई महिला विधायक नहीं बनी। वर्ष 2017 के चुनाव में चकराता सीट से भाजपा ने मधु चौहान को कांग्रेस प्रत्याशी प्रीतम सिंह के मुकाबले मैदान में उतारा, पर इस बार भी वह 1543 वोटों से हार गई।

इसी तरह मसूरी सीट पर भाजपा के प्रत्याशी गणेश जोशी के मुकाबले मैदान में उतरी कांग्रेस प्रत्याशी गोदावरी थापली को भी 1267 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। बार-बार मिलने वाली हार के इस तिलिस्म को मिटाने के लिए अबकी चुनाव में भी जिले की दस सीटों पर 13 महिला प्रत्याशी मैदान में खड़ी हैं।

दशकों पुराना सुखा मिटाने को 13 महिलाएं मैदान में

जिले के अंर्तगत आने वाली दस में से आठ विधानसभा सीटों पर इस बार 13 महिला प्रत्याशी भी मैदान में डटी हुई हैं। सबसे अधिक तीन महिला प्रत्याशी रायपुर विस सीट से खड़ी हैं। इनमें बसपा की सरमिस्टा परिलियान, राष्ट्रीय समाज दल की सुमन कर्णवाल व न्याय धर्म सभा की प्रीति डिमरी शामिल है।

मसूरी सीट से भी कांग्रेस की गोदावरी थापली व यूकेडी की प्रत्याशी शकुंतला रावत भाग्य आजमा रही है। इसके अलावा ऋषिकेश सीट से रक्षा मोर्चा की बबली देवी व निर्दलीय ऊषा रावत मैदान में है।

कैंट सीट से भाजपा प्रत्याशी सविता कपूर व निर्दलीय गीता चंदोला, राजपुर रोड सीट से आम आदमी पार्टी की डिंपल सिंह, सहसपुर सीट से निर्दलीय कल्पना बिष्ट व विकासनगर से यूकेडी प्रत्याशी प्रीति थपलियाल मैदान में खड़ी है। डोईवाला व चकराता विस सीट पर कोई महिला प्रत्याशी नहीं है।

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