लालकुआं के चक्रव्यूह में सेनानायक , हरीश को घेरने भाजपा ने बनायी खास रणनीति

देहरादून। कांग्रेस के टिकट वितरण से चुनाव संचालन समिति प्रमुख हरीश रावत ने खुद ही अपने को भाजपा के चक्रव्यूह में डाल लिया है। चुनाव आगे बढऩे के साथ हरीश रावत को भाजपा के लोग राज्य के दूसरे हिस्सों में चुनाव प्रचार के लिए जाने पर रोक लेंगे।

इससे पूर्व सीएम अपनी कद काठी, संपर्क और अनुभव का लाभ दूसरे प्रत्याशियों को जिताने में नहीं बांट पाएंगे।इसके पीछे लालकुआं में भाजपा का मजबूत वोट बैंक और संगठनात्मक स्थिति के कारण छिपे हुए हैं। इससे चुनाव आगे बढऩे के साथ ही भाजपा दूसरी विस सीटों में खुटी बैटिंग कर सकेगी।

लालकुआं विस में ठाकुर से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं। एक अनुमान के अनुसार यहां कुल 33 फीसदी ठाकुर और चालीस फीसद ब्राह्मण वोटर हैं। इसके अलावा नौ फीसदी अनुसूचित एवं करीब छह फीसदी ओबीसी हैं।

सात फीसदी मुस्लिम, चार फीसदी गढ़वाली, दो फीसद वैश्य और दो फीसद पंजाबी मतदाता लालकुआं को कौमी गुलदस्ता की तरह बना देते हैं। आमतौर पर विकास ही चुनाव का मुख्य मुद्दा होता है, लेकिन इस बार भाजपा ने पूर्व सीएम हरीश रावत के चुनाव मैदान में आने से बाहरी का नारा दिया तो हरीश के पलटवार के बाद अब इस पर भाजपा नेता कुछ नहीं बोल रहे हैं।

एक तरह से यह भी मुद्दा नहीं बन पा रहा है। कांग्रेस ने हरीश रावत को अगले सीएम के तौर पर मतदाताओं के सामने रखने की कोशिश की है तो भाजपा इससे बेफ्रिक है। चूंकि भाजपा को लालकुआं का तिलिस्म टूटने का विल्कुल भी भय नहीं है।

इसके पीछे भाजपा के लोग लोस चुनाव नतीजों की याद दिलाते हैं। वास्तविक तौर पर लालकुआं विस का उदय 2008 में नए विस सीटों के परिसीमन के बाद हुआ। इससे पहले यह धारी विस सीट का हिस्सा थीं। पहले विस चुनाव में यहां कांग्रेस बागी हरीश चंद्र दुर्गापाल ने जीत हासिल की थीं।

इसके बाद 2017 के विस चुनाव में नवीन दुम्का ने रिकार्ड मतों से जीत हासिल की थीं। ये दोनों चुनाव नतीजे लालकुआं के चुनावी गणित को समझने के लिए काफी नहीं है। इसको समझने के लिए लोस चुनाव नतीजों को केंद्र में रखना होगा। भाजपा इससे ही चुनाव जीतने के लिए आश्वस्थ हैं।

राज्य गठन के बाद पहले लोस चुनाव 2004 में धारी ( लालकुआं) से कांग्रेस प्रत्याशी केसीसिंह बाबा को 22 हजार 617 वोट मिले थे। तब यहां कांटे का मुकाबला देखने को मिला। भाजपा प्रत्याशी विजय बंसल को 22 हजार 3 24 वोट मिले थे।

इसके बाद 209 के लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा भाजपा प्रत्याशी बची सिंह रावत से केवल 1594 वोट से आगे रहे। तब भी यहां नेक टू नेक फाइट देखने को मिली थीं। इसके बाद अगले लोस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी को 47 हजार 89 वोट मिले और कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा को केवल 16 हजार 868 ही वोट मिले।

यानि कोश्यारी ने 3 0हजार 2021 मतों से परास्त कर दिया। यह सिलसिला 2019 में भी जारी रहा। तब भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट ने कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत को 37 हजार 30 मतों से परास्त किया। तब हरीश रावत को 20 हजार 11 वोट मिले थे और अजय भट्ट को रिकार्ड 57 हजार 4१ वोट मिले थे। भाजपा इसी वोट बैंक की बजह से लालकुआं फतह करना चाहती है।

यहां पार्टी ने नए उम्मीदवार डा. मोहन सिंह बिष्ट को चुनाव मैदान में उतारा है। इससे पूर्व विधायक नवीन दुम्का के खिलाफ पैदा हुई सत्ता विरोधी रुझान कम होने का दावा किया जा रहा है। भाजपा कार्यकर्ता यहां राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान मानने को ही तैयार नहीं हैं।

भाजपा का कांग्रेस तो कांग्रेस का भाजपा के बागी पर भरोसा

लालकुआं में भाजपा के दो बागी चुनाव मैदान में हैं। इसमें पूर्व नपं अध्यक्ष पवन चौहान को शहरी क्षेत्र में ताकतवर माना जाता है। भाजपा का अनुमान है कि चौहान दो से ढाई हजार के भाजपा के वोट बैंक पर सैंधमारी कर सकते हैं। जबकि सैनिक कुंदन सिंह से ज्यादा नुकसान नहीं मान रही हैं।

इसी तरह से कांग्रेस के रणनीतिकार बागी संध्या डालाकोटी को हरीश रावत के बजाय भाजपा के लिए नुकसानदायक मान रहे हैं। यही कारण रहा कि पूर्व सीएम हरीश रावत ने संध्या को मनाने के लिए केवल औपचारिक तौर पर ही अनुरोध किया। बाद में उन्होंने लालकुआं के क्षत्रपों के कहने पर संध्या को मनाने का प्रयास छोड़ दिया।

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