हरीश को लालकुआं तो भगत को कालाढूंगी में चुनौती

उलटने पलटने लगे हैं कई समीकरण, अब आस से मान मनौव्वल का खेल शुरू होगा

  • इंदिरा के गढ़ में मतीन ने ओवैसी के झंडे तले किया नामांकन
  • कांग्रेस को घेरने की तैयारी

हल्द्वानी । भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को बचाने के लिए चुनाव को महाभारत कहा जाता है। यहां रिश्तों की डोर टूटती है तो सिद्धांत और विचारधारा के संदर्भ बदलने लग जाते हैं। इसकी तस्दीक लालकुआं विस करने लगी है।

इस महासमर के भीष्म पितामह हरीश रावत के चुनौती देते हुए संध्या डालाकोटी ने बागी पर्चा दाखिल कर लिया है। कालाढूंगी में बंशीधर भगत के भाग्य पर पलीता लगाने के लिए गजराज ने भी बागी पर्चा भर दिया है।

कल तक कांग्रेस के झंडाबरदार मतीन सिद्दीकी ने ओवैसी की पार्टी से पर्चा दाखिल कर इंदिरा के सुरक्षित गढ़ को अटकलाजी के हवाले कर दिया है। अब इन नेताओं को बैठाने के लिए चुनावी रणनीतिकारों के कला कौशल प्रदर्शन का भी वक्त आ गया है।

रामनगर में हा और ना के बीच चुनाव न लड़ने की कसक पूर्व सीएम हरीश रावत की लालकुआं में पर्चा दाखिल करने के बाद भी नहीं जा सकती है। अब यहां संध्या डालाकोटी ने बागी पर्चा दाखिल कर दिया है।

इससे पहले घर पर महापंचायत की और रोने धोने के बाद पर्चा दाखिल कर लिया। अब संध्या डालाकोटी ने उत्तरारखंड के चुनावी रण 2022 के सबसे धुरंधर सेनानायक को अपनी बागी तेवर दिखाकर लहूलुहान करने की कोशिश कर दी है।

अब शनिवार से संध्या की मान मनौव्वल होगी, वे मानेगी या नहीं यह अलग सवाल है, लेकिन विपक्ष को कांग्रेस को घेरने के लिए एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। फिलहाल संध्या को मनाने की अभी तक की सारी कोशिश नाकायाब हो गई हैं। उन्होंने पहले टिकट देने और वाद में वापस लेने को अपना अपना अपमान बता रही हैं।

गजराज सिंह बिष्ट ने भी कालाढूंगी विस से पर्चा दाखिल किया

इधर 2012 से कालाढूंगी और इससे पहले भीमताल से टिकट की दावेदारी कर रहे भाजपा वरिष्ठ नेता गजराज सिंह बिष्ट ने भी कालाढूंगी विस से पर्चा दाखिल कर दिया है। गजराज काफी नाराज और व्यथित हैं। इससे भाग्यवादी बंशीधर को खुली चुनौती मिल रही हैं। हालांकि गजराज ने सभी विकल्प खुले रखे हैं। उन्होंने कहा कि वे सरल व्यक्ति रहे हैं। राज्य गठन के बाद से अब तक उनको टिकट देने का भरोसा दिया जाता रहा और मौका नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा कि पार्टी अधिकृत दावेदार के खिलाफ नामांकन करना अनुशासनहीनता नहीं है। वे भाजपा के एक ईमानदार सिपाही रहे हैं। इसके इतर हल्द्वानी में चुनाव आचार संहिता लागू होने तक कांग्रेस के वफादार मतीन सिद्दीकी ने ओवैसी की पार्टी से पर्चा दाखिल कर दिया है। मतीन को 2007 में तत्कालीन काबीना मंत्री इंदिरा हृदयेश की हार के बाद सभी जानते हैं।

तब मतीन ने हल्द्वानी में भीषण त्रिकोणी संघर्ष पैदा कर दिया था और इंदिरा करीब चार हजार से ज्यादा मतों से हार गई थीं। इस हार से सबक लेने के बाद ही इंदिरा ने मतीन को 2012 से पहले कांग्रेस में शामिल कराया और सरकार बनने के बाद कैबिनेट मंत्री का भी ओहदा दिया।

अब इंदिरा नहीं रही और उनकी फोटो को आग कर सुमित इंदिरा का गढ़ बचाने मैदान में हैं लेकिन ओवैसी के नामांकन ने सबके कान खड़े कर दिए हैं। भाजपा ने महापौर डा. जोगेंद्र पाल सिंह रौतेला को फिर मैदान में उतारा है। अगर मतीन ने पर्चा वापस नहीं लिया तो हल्द्वानी में मुकाबला बहुत ही रोमांचक स्थिति में आ सकता है।

इससे पहले लालकुआं से टिकट फाइनल होते ही पूर्व सीएम हरीश रावत ने पहले नाराज पूर्व काबीना मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल को अपने पक्ष में किया फिर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हरेंद्र बोरा को मनाया गया।

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार इसके बाद रावत ने संध्या डालाकोटी को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे जिद पर अड़ी हैं और त्रिया हठ ने पिलहार हरीश रावत के सामने बड़ी लकीर खींच दी है।

इससे पहले किरन डालाकोटी काफी समय तक हरीश रावत की करीबियों में भी शामिल रही हैं, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने अब एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है। सचमुच में यही तो भारतीय लोकतंत्र की शान है।

यही नहीं कांग्रेस पूर्व प्रदेश महासचिव मंजू तिवारी ने कालाढूंगी से आप से पर्चा दाखिल कर दिया है। उन्होंने पार्टी को भी अलविदा कह दिया है। 2019 के लोस के रण में हरीश रावत ही मंजू तिवारी को कांग्रेस में लाए थे।

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