पहाड़ पर नहीं चढ़ा हाथी, बढ़ता रहा वोट, घटती रही सीट

हरिद्वार। बहुजन समाज पार्टी उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद तीसरा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा था। इन 20 वर्षों में बसपा का हाथी पहाड़ नही चढ़ सका बल्कि मैदान से भी हाथी को भगा दिया गया। जहां 2002 में 7, 2007 में 8 सीट बसपा जीती थी वही 2012 में 3 सीट जीतने  के बाद 2017 में बसपा सभी सीट हार गई। मैदानी क्षेत्र में जहां बसपा का हाथी शान से चलता था वही अब बिना घास पानी के हाथी मैदान में भी दम तोड़ रहा है।
आलम यह है कि सभी 7 0 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा करने वाली बसपा अभी तक मैदानी जिलों में भी अपने प्रत्याशी घोषित नही कर पाई। जबकि अब नामांकन के भी महज दो दिन ही शेष रह गए है।
राज्य गठन के बाद सबसे पहले हुए 2002 में विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी मैदानी जिले हरिद्वार व उधमसिंह नगर में बड़ी ताकत के रूप में उभरी थी। हरिद्वार की 5 व उधमसिंह नगर में दो सीटों पर 10.93 फीसदी मत पाकर जीत हासिल की थी। वही 2007 के हरिद्वार से 5 व उधमसिंह नगर से 3 सीट के साथ 11.76 फीसदी मत पाकर 8 सीट जीती।
लेकिन इसके बाद 2012 में हुए सीटों के नए परिसीमन में जहां मैदानी क्षेत्रों में विधानसभा की सीटे बढ़ी वही बसपा का वोट बैंक बंट गया। 2012 के चुनावों में बसपा का मत प्रतिशत को बढ$कर 12.19 फीसदी हो गया लेकिन सीट महज 3 ही मिली। इसके बाद तो लगातार बसपा का प्रदेश में ग्राफ गिरता ही जा रहा है।
कभी बसपा राज्य में किंग मेकर की भूमिका में थी लेकिन बदले समीकरण में इस पर ब्रेक लगा दिया। दो-दो बार भारी बहुमत से जीते विधायकों को जीत के लाले पड$ गए। आलम यह है कि बसपा अभी तक मैदान की कई सीटो पर अपने प्रत्याशी तक घोषित नही कर पाई है।
हालांकि इस बार घोषित बसपा प्रत्याशियों के दमदार तरीके से चुनाव लड़ने के आसार है। लक्सर,खानपुर,मंगलौर,भगवानपुर,कलियर,झबरेड़ा सीट पर पार्टी ने मजबूत प्रत्याशी उतारे है। जिन्हें देख माना जा रहा है कि शायद इस बार मैदान में हाथी दो-चार कदम बढ़ जाएं।

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