- संक्षिप्त कार्यक्रम में हुई हरक की घर वापसी
देहरादून। छह दिन की कशमकश के बाद हरक सिंह रावत को उनके इंतजार का मीठा फल मिल तो गया है, लेकिन इस बात की कसक हरक सिंह रावत के मन में जरूर रहेगी कि उनकी वापसी जितनी धमाकेदार होनी थी नहीं हो पायी।
हरक सिंह के राजनीतिक सफर को याद करें तो यह सर्वविदित है कि वे राजनीति के परफेक्ट मौसम विज्ञानी माने जाते हैं। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हरक सिंह अपने राजनीतिक कैरियर के सामने आयी सबसे बड़ी आफत जेनी प्रकरण को भी हासिये पर धकेलने में कामयाब रहे।
इतना जरूर हुआ कि इस प्रकरण से उनका मंत्रिपद जाता रहा, लेकिन हरक सिंह ने हार नहीं मानी। इसके 207 में जब कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा तो हरक सिंह ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से नेता प्रतिपक्ष बनने में कामयाब रहे। कांग्रेस की सरकार आयी तो हरक सिंह हनकदार मंत्रियों में शुमार हो गये, पहले विजय बहुगुणा और उसके बाद हरीश रावत की सरकार में भी वह मजबूत मंत्री रहे।
18 मार्च 2016 को विजय बहुगुणा की अगुवाई में कांग्रेस से जो बगावत हुई, उसको सबसे बड़ी ताकत हरक सिंह रावत ने ही दी। अब जबकि हरक सिंह दोबारा कांग्रेस में आ तो चुके हैं लेकिन न तो उनके आने पर कांग्रेस की ओर से कोई जश्न मनाने का माहौल बना और न ही भाजपा को किसी तरह का राजनीतिक झटका लगा।
ऐसा इसलिए कि हरक सिंह को कांग्रेस का दामन थामने से पहले ही भाजपा मंत्रिमंडल व पार्टी दोनों से बर्खास्त कर चुकी थी और कांग्रेस में जहां चुनावी मौसम को देखते हुए जहां उनके लिए पलक पांवड़े बिछाना चाहिए थे, वहां विरोध के सुरों से उनका सामना हुआ।
इस बात की कसक हरक सिंह के मन में हमेशा रहेगी। उनकी वापसी के समय सोनिया गांधी तो दूर राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल या ऐसा कोई केंद्रीय नेता शामिल नहीं हुआ।