कैंट का किला भेदने को मैदान में सियासी जंग का आगाज
मिश्रित आबादी वाली सीट पर अब तक भाजपा का ही रहा एकछत्र राज
- क्षेत्र में मलिन बस्तियां भी हैं तो वसंत विहार, इंदिरानगर जैसे पॉश इलाके भी
देहरादून। देहरादून जिले के अंतर्गत आने वाली कैंट विधानसभा सीट अनारक्षित है। यह क्षेत्र वर्ष 208 में हुए परिसीमन के तहत अस्तित्व में आया था। राज्य गठन से पहले यह विस देहराखास के नाम से जानी जाती थी। प्रेमनगर, पंडितवाड़ी, गांधी ग्राम, कांवली ग्राम, श्रीदेव सुमन नगर, जीएमएस रोड, कौलागढ़, पश्चिमी पटेलनगर और बिंदाल नदी के किनारे बसी मलिन बस्तियां इस विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं।
बसावट के लिहाज से कैंट विस क्षेत्र को मिश्रित कहा जा सकता है। यहां उच्च शिक्षित तबका आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। वसंत विहार, इंदिरानगर, इंजीनियर्स एन्क्लेव जैसे कई पॉश इलाके भी इस सीट के अंतर्गत हैं। वहीं एफआरआई, आईएमए, एफएसआई, ओएनजीसी जैसे प्रतिष्ठ्ति संस्थान भी इसी क्षेत्र में हैं। इसके उलट बिंदाल नदी के किनारे रहने वाली मलिन बस्तियों के लोग और अल्पसंख्यक समुदाय भी मतदाता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पिछले सालों के मुकाबले बदले समीकरण
राज्य गठन के बाद हुए विस चुनावों की बात करें तो इस सीट से भाजपा नेता हरबंस कपूर लगातार चार बार विधायक चुने गए। वर्ष 2002 में हुए पहले आम विस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरबंस कपूर ने कांग्रेस के प्रत्याशी संजय शर्मा को 2924 मतों से पराजित किया था।
वर्ष 2007 के दूसरे आम चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी हरबंस कपूर ने कांग्रेस प्रत्याशी लालचंद शर्मा को 7033 मतों के अंतर से पराजित किया था। वहीं वर्ष 2012 के तीसरे आम चुनाव में भी कैंट विस सीट पर भाजपा अपनी हैट्रिक बनाने में कामयाब रही।
भाजपा प्रत्याशी हरबंस कपूर ने कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र सिंह सेठी को 5095 मतों के अंतर से पराजित किया था। वर्ष 2017 के चौथे आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हरबंस कपूर ने कांग्रेस प्रत्याशी सूर्यकांत धस्माना को 16670 मतों के अंतर से पराजित किया था। लेकिन पिछले साल दिसंबर में विधायक कपूर का निधन होने के बाद से यह सीट रिक्त हो गई थी।
गढ़ी, डाकरा, पंडितवाड़ी, प्रेमनगर व मिठ्ठी बेहड़ी छावनी क्षेत्र के अलावा धर्मपुर, राजपुर व मसूरी विस सीट से सटे सिविल एरिया को समेटे कैंट सीट में पिछले सालों के मुकाबले अब सियासी समीकरण काफी हद तक बदल गये हैं।
मिश्रित मतदाता बनेंगे भाग्य विधाता
कैंट विधानसभा क्षेत्र में करीब 48 प्रतिशत मतदाता पर्वतीय मूल के हैं। इसके अलावा तकरीबन 2 प्रतिशत पंजाबी समुदाय के मतदाता हैं। वहीं 1 प्रतिशत मुस्लिम, आठ प्रतिशत अनुसूचित जाति और आठ प्रशित अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं। वैश्य समाज के पांच प्रतिशत मतदाता भी इस सीट पर डिसाइडिंग फैक्टर में हैं।
इस बार कैंट विस सीट पर 1.34 लाख मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। पर गौर करने वाली बात यह भी कि मतदान को लेकर इस सीट पर नीरसता दिखती है। पिछले विस चुनाव में यहां पर मतदान का प्रतिशत 57.14 फीसद रहा था। इस सीट पर अब तक हुए चुनावों के परिणाम से पता चलता है कि यहां पार्टी लाइन पर वोट पड$ता है।
लिहाजा कई बड़े चेहरों को भी जनता यहां दरकिनार कर चुकी है। पांच साल बाद फिर चुनाव का वक्त आ गया है,जबकि मतदाताओं को तय करना है कि इस सीट पर किसको सरताज बनाना है।
सविता को उतारा मैदान में, गामा समेत कईयों के दिल टूटे
कैंट विधानसभा सीट से भाजपा ने आठ बार लगातार विधायक रहे दिवंगत हरबंस कपूर की पत्नी सविता कपूर को टिकट दिया है। वरिष्ठ विधायक कपूर का निधन पिछले साल 13 दिसंबर को हो गया था।
बता दें कि कपूर ने पहला विस चुनाव 1985 को कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट के खिलाफ लड़ा था, लेकिन वह हार गए थे। 1989 में दोबारा चुनाव में कपूर ने बिष्ट को हरा दिया था और उसके बाद कपूर ने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगातार आठ बार विधायक रहे।
ऐसे में भाजपा ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सविता कपूर को ही टिकट देकर मैदान में उतारा है। सविता भी लंबे समय से सामाजिक कार्यों में सक्रिय रही है। कैंट विस सीट से सविता कपूर को टिकट मिलने पर नगर निगम के मेयर सुनील उनियाल गामा, जोगिंदर पुंडीर, दिनेश रावत समेत कईयों के दिल टूटे हैं।
क्योंकि इस सीट से टिकट के लिए सबसे अधिक 19 दावेदार कतार में खड़े थे। पर भाजपा ने दिवंगत विधायक हरबंस कपूर की पत्नी पर ही भरोसा जताकर उनका टिकट फाइनल किया है।
टिकट के लिए कांग्रेस में भी मारामारी
देहरादून कैंट विधानसभा सीट पर चुनाव लडऩे के लिए भाजपा से पहले आम आदमी पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल, समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतार चुकी है।
कई निर्दलीय भी मैदान में उतरने को तैयार हैं। लेकिन कांग्रेस ने अभी प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया है। भाजपा की ही तरह कांग्रेस से भी इस सीट पर कई दावेदार कतार में खड़े हैं। अब देखने वाली बात यह कि भाजपा व अन्य दलों के प्रत्याशियों का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस किसको मैदान में उतारती है।