- प्रीतम का कैंप ही जुटा है हरक को लाने की पैरवी में
- भविष्य की पालिटिकल कैमिस्ट्री बढ़ाएगी दोनों में प्रतिद्वंद्विता
देहरादून। भाजपा व मंत्रिमंडल से निष्कासन से पहले ही कांग्रेस का एक धड़ा हरक सिंह रावत को कांग्रेस में प्रयासरत था, लेकिन अब जबकि हरक से भाजपा किनारा कर चुकी है, तो ऐसे में कांग्रेस में उनकी एंट्री को लेकर गतिरोध बढ़ता जा रहा है।
वर्तमान में कांग्रेस से एक धड़ा सीधे-सीधे हरक के आने का विरोध कर रहा है, जबकि एक धड़ा हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी को पार्टी के लिए फायदेमंद बता रहा है।
कांग्रेस की राजनीति व हरक के अब तक के राजनीतिक कैरियर पर नजर रखने वालों का मानना है कि उनके आने से चुनाव में कांग्रेस को कोई फायदा हो या न हो, लेकिन भविष्य में हरक सिंह कांग्रेस की राजनीति को जरूर प्रभावित करेंगे।
वर्तमान में कांग्रेस के भीतर सीधे-सीधे दो गुट हैं। एक गुट हरीश रावत व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल की छत्रछाया में चल रहा है, जबकि दूसरा गुट नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की अगुवाई में चल रहा है, जिसे प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव का खुला सर्पोट है।
हरक सिंह को कांग्रेस में लाने के लिए पहले से ही देेवेन्द्र यादव लग हुए थे, लेकिन वह अपने स्तर से हरक सिंह की सभी मांगें पूरी करने के लिए आश्वस्त नहीं कर सके।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रीतम सिंह का कैंप हरक सिंह को लाने के लिए पहले से प्रयासरत था। उसके पीछे शायद यह कारण रहा हो कि उन्हें खुद को शक्तिशाली बनाने के लिए किसी बड़े चेहरे का साथ चाहिए था।
हरीश रावत व प्रीतम सिंह के बीच चल रहे पावर गेम में इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद प्रीतम सिंह अकेले पड़ गये, उनके साथ जो हैं भी, वे सेकेंड थर्ड लाइन के कार्यकर्ता हैं, शायद यही वजह है कि प्रीतम सिंह की ओर से हरक को साथ लेकर खुद को मजबूत करने का विचार आया हो।
राजनीति के गलियारों में चर्चा यह है कि अभी तात्कालिक रूप से भले ही हरक के आने से प्रीतम सिंह का गढ़ मजबूत दिखे, लेकिन यह हरीश रावत को उतना नुकसान नहीं पहुंचा सकता। राजनीति के जानकार मानते हैं कि हरक सिंह भविष्य में प्रीतम सिंह के लिए ही बड़ी चुनौती बन सकते हैैं।
हरक सिंह और प्रीतम सिंह दोनों ही गढ़वाल के ठाकुर नेता हैं, ऐसे में उत्तराखंड की पालिटिकल कैमिस्ट्री में दोनों का टकराव स्वाभाविक है। कांग्रेस की आज की परिस्थितियों में माना जा रहा है कि उम्र के पड़ाव को देखते हरीश रावत के बाद भविष्य की बागडोर प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल व अन्य नेताओं के ही हाथ आनी है, लेकिन यदि हरक सिंह कांग्रेस में जम गये तो वे हरीश रावत के बाद खुद की दावेदारी करने में कतई नहीं चूकेंगे।
हरक सिंह को करीब से जानने वालों का मानना है कि वे राजनीतिज्ञ के चाणक्य हैं। 2016 में हरीश रावत का स्टिंग कराके एक तरह से हरीश रावत की राजनीतिक हत्या कराने जैसी स्थिति तक हरक सिंह ने ही पहुंचाया था। यही नहीं हरक सिंह वर्ष 2007 में नेता प्रतिपक्ष के लिए लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत की प्रबल दावेदारी के बावजूद इस कुर्सी पर अपना नाम लिखवा लिया था।
एक बात और भी है, प्रीतम सिंह को राजनीति में सौम्य, सरल, स्पष्टवादी और राजनीतिक तिकड़मों से दूर रहने वाला नेता माना जाता है। जबकि हरक सिंह का राजनीतिक कैरियर राजनीतिक उलट-पुलट करने वाला रहा है। ऐसे में हरीश रावत के रिटायरमैंट के बाद कोई शक नहीं कि भविष्य में प्रीतम सिंह और हरक सिंह एक दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बन जाएं।